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राम मंदिर पर कोर्ट की ऐतिहासिक पहल शुभ संकेत है

कोर्ट की ऐतिहासिक पहल बदलते भारतीय सामाजिक तानेबाने के हिसाब से है.

Ambikanand Sahay

'होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा।।'

लोकनायक तुलसीदास जी की ये अमर पंक्तियां रामचरितमानस से ली गई हैं. आज ये बहुत प्रासंगिक नजर आती हैं. देखिए तर्क-वितर्क तो राम मंदिर मसले पर 1948 से चला आ रहा है और इसका अंत दिखाई नहीं दे रहा था.


आज अचानक भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह इस विवादित मसले पर मध्यस्थता करने को तैयार हैं, यदि दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर सहमति बनाने का राजी हों. यह बहुत बड़ी बात है. क्योंकि न्यायालय फैसले देने के लिए जाना जाता है, न कि सुझाव और सहमति बनाने के लिए.

जस्टिस केहर का यह कदम बहुत ही ज्यादा साहसी है. उनको मालूम है कि दीवानी मुकदमों का फैसला वर्षों तक लटका रहता है, कभी-कभी सदियों तक तक लग जाते हैं. ऐसा ही कुछ राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले में हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक संवेदनशील और भावनाओं से जुड़ा मसला है और अच्छा यही होगा कि इसे बातचीत से सुलझाया जाए. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों पक्षों को 'थोड़ा दे, थोड़ा ले' का रुख अपनाना होगा ताकि इस मुद्दे का कारगर हल निकल सके. यह समझदारी भरा सुझाव लगता है.

राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन का काल

आइए इसे थोड़ा राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने का भी प्रयास करते हैं. उत्तर प्रदेश आज हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला बनकर उभरा है. योगी आदित्यनाथ इसके नए मुखिया हैं. ये राम मंदिर आंदोलन से शुरू से ही जुड़े रहे हैं. अपने सबसे कमजोर दिनों में भी इन्होंने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के मुद्दे से डिगे नहीं. आज तो वह इस स्थिति में हैं कि उनका एक शब्द या बयान चीजों को अपनी दिशा में मोड़ सकता है.

हम सब आज परिवर्तन काल के साक्षी हैं. यूपी की राजनीति बदल गई. विधानसभा की संरचना बदल गई और न्यायालय का नजरिया भी बदल गया. अब कोर्ट भी सर्वमत बनाने की कोशिश में है. और सच मानिए ये शुभ संकेत हैं.

भारतीय संस्कृति के अनुकूल पहल

राजनीतिक दृष्टिकोण के अलावा मुद्दे का एक सामाजिक पहलू भी है. फैजाबाद के मोहम्मद हाशिम अंसारी ने बाबरी मामले में पहली याचिका दायर की थी. लेकिन पिछले साल उनका इंतकाल हुआ तो जिले के सभी आरएसएस और भगवाधारी नेता भी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए थे. बहुत कम लोगों को मालूम है कि हिंदू पक्ष के वादी और हाशिम अंसारी मामले एकसाथ कोर्ट जाया करते थे.

आप बनारस के घाटों पर चले जाइए, तो वहां हिंदू-मुस्लिम एकसाथ स्नान करते नजर आते हैं. अयोध्या में सरयू के जल का आनंद संत-महंत के साथ मुल्ले-मौलवी भी लेते हैं.

यही हिंदुस्तान की सामाजिक खूबसूरती है. कालांतर में यह सामाजिक खूबसूरती राजनीतिक कारणों से विद्रूप हो गई थी. आज फिर में उसमें बदलाव के संकेत हैं. अब लगता है कि समस्या सुलझ जाएगी.

बदल रहा है माहौल

आपने इसी महीने राजनीतिक बदलाव की लहर को यूपी में देखा, समझा और जाना है. अब सामाजिक बदलाव के भी शुभ संकेत सामने आ रहे हैं और यह बदलाव अवश्यंभावी है.

ये अल्लामा इकबाल की उन पंक्तियों को याद दिलाता है जिसको सुनने मात्र से आप रोमांचित हो जाते हैं-

'यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी. सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा'

हममें ये ‘कुछ बात’ क्या है कि हम जिंदा हैं जबकि यूनान और मिस्र जैसी सभ्यताएं गुम हो गईं- वह है हमारा एका. हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सदियों से साथ रहते आए हैं, साथ पुष्पित-पल्लवित होते रहे हैं. हिंदुस्तान एक है और हम सबको इस बात पर गर्व है.

कोर्ट की आज की ऐतिहासिक पहल इसी ओर इंगित करती है कि जटिल से जटिल मुददे भी आपसी सहमति से सुलझाए जा सकते हैं.