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कैराना में राजनाथ सिंह किसकी मां के दूध का हिसाब मांग रहे हैं!

भाजपा हमेशा चुनावो में ध्रुवीकरण के जरिए वोट हासिल करने की रणनीति पर काम करती आई है.

Sandipan Sharma

बॉलीवुड को प्रसिद्ध पटकथा लेखक जोड़ी सलीम-जावेद का उत्तराधिकारी चाहिए तो उसे भारतीय जनता पार्टी में भाषण लिखने वालों के संपर्क मे आना होगा.

ऐसा इसलिए कि देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह का कैराना भाषण किसी फिल्मी डायलॉग से कम नहीं था. ‘हम देखेंगे कि उसने कितना ‘मां का दूध’ पिया है, जो ताकत के दम पर लोगों को डरा रहा है’.


सिल्वर स्क्रिन पर अमिताभ बच्चन ने मर्द में ‘डब्बे का दूध पीने’ वाले खलनायकों को सबक सिखाया तो खून पसीना में ‘मां का दूध’ पीने वालो को ललकारा. फिल्म में अमिताभ के इन संवादों पर हॉल में जमकर सीटियां और तालियां बजीं, सिक्के भी उछाले गए.

अंदाजा लगाइए असल जिन्दगी में जब राजनाथ सिंह ने कैराना में यही डायलॉग मारा होगा तो क्या मंजर बना होगा.

किसी फिल्मी हीरो के गुस्से जाहिर करने का पैमाना धर्मेन्द्र का ‘कु....ते मैं तेरा (दूध) खून पी जाऊंगा’ हो सकता है.

राजनाथ सिंह का भी गुस्सा इससे कहीं कम नहीं रहा होगा. जैसे वो पिछले साल जेएनयू में हुए हंगामे के पीछे हाफिज़ सईद का हाथ होने की जानकारी मिलने के बाद हुए थे. शायद इसीलिए, गुस्से में आपा खो चुके राजनाथ पर्दा फाड़ देने वाला डायलॉग बोल रहे हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर वो लोग हैं कौन, जिनके बचपन के खानपान में राजनाथ सिंह इतनी दिलचस्पी रख रहे हैं?

जाहिर है, बीजेपी के लिए कैराना नया मुजफ्फरनगर या अयोध्या हो सकता है. भाजपा कैराना को उत्तरप्रदेश में हिन्दुओं पर खतरे के प्रतीक के तौर पर स्थापित करना चाहती है. खतरा किससे, यह आप भी समझ सकते हैं.

चाहे वह अयोध्या हो, गुजरात हो, मुजफ्फरनगर, लव जिहाद, गौमांस या फिर कोई और भावनात्मक मुद्दा. भाजपा हमेशा चुनावो में ध्रुवीकरण के जरिए वोट हासिल करने की रणनीति पर काम करती आई है.

इस चुनाव में कैराना मुद्दा बनेगा

कुछ महीने पहले भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने कैराना से पलायन करने वाले हिन्दु परिवारों की लिस्ट जारी की थी. तब पार्टी ने बिना मौका गंवाए मौके को लपक कर पकड़ लिया था. लेकिन इस हुकुम सिंह के दावों की पोल खुलने के बाद पार्टी की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का खुलासा हुआ कि  स्थानीय गुटों की बीच झड़प की वजह से कैराना में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो गई थी. हुकुम सिंह ने इसे तोड़मरोड़ कर पेश करने की कोशिश ठीक उसी तरह से की जिस प्रकार पश्चिम बंगाल के मालदा के मुद्दे पर साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए जानबूझकर किया गया था.

इसके बावजूद भाजपा कैराना का मुद्दा छोड़ने को राजी नहीं है. यही वजह है कि उत्तरप्रदेश चुनाव में पार्टी ‘माँ-बहनों की आन में, बीजेपी मैदान में’ नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. इस तरह के नारे फिल्मों में सलीम-जावेद दौर की याद दिलाते हैं.

उत्तरप्रदेश में चुनावी मैदान में मौजूद पार्टियों के जो हालात हैं उसके मद्देनजर बीजेपी के लिए यह चुनाव आसान नजर आते हैं. समाजवादी पार्टी परिवार में महाभारत छिड़ी है, राहुल गांधी ‘खून की दलाली’ की बात करने को मजबूर हैं और मायावती के समर्थक दुविधा में.

लेकिन एक बार फिर पार्टी सांप्रदायिकता छोड़ने को तैयार नहीं है.

इन हालातों में बीजेपी के पास अपनी साम्प्रदायिक छवि तोड़ने का मौका था. लेकिन विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने के बजाय एक बार फिर भावनात्मक मुद्दे के साथ मैदान में उतर रही है.

जिसने ‘मां का दूध’ पिया हो केवल वही उत्तरप्रदेश में राजनीति के दिशा बदलने की हिम्मत जुटा सकता है. शायद राजनाथ सही हैं.