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राजस्थान: वो कौन लोग हैं जो गैंगस्टर आनंदपाल को बता रहे हैं भगवान?

आनंदपाल को जीते जी कुलीन राजपूतों ने अपनी बराबरी का दर्जा नहीं दिया था

Mahendra Saini

लगभग पखवाड़ा (दो सप्ताह) भर गुजर जाने और तमाम प्रयासों के बावजूद राजस्थान की बीजेपी सरकार गैंगस्टर आनंदपाल का अंतिम संस्कार करवा पाने में सफल नहीं हो सकी है.

आनंदपाल के परिवार के साथ ही पूरा राजपूत समाज अभी भी इस बात पर एकजुट है कि एनकाउंटर फर्जी है, आनंदपाल की हत्या की गई है और सीबीआई जांच ही सच सामने ला सकती है. हालांकि शुरू में अड़ी रही सरकार ने अब थोड़ी नरमी के संकेत देते हुए एनकाउंटर की एसआईटी जांच की बात कही है. लेकिन मामला अब सिर्फ एनकाउंटर के फर्जी होने या उसकी जांच तक सीमित नहीं है बल्कि अब तैयारी आनंदपाल को अवतार घोषित करने की जा रही है.


अवतार था आनंदपाल, बनेगा मंदिर!

आनंदपाल पर गाने और भजन तो सोशल मीडिया में पहले ही 'ट्रेंड' कर रहे थे. अब एक कथित राजपूत साधु कल्याण सिंह का ऑडियो संदेश भी वायरल हो रहा है. इस संदेश में कथित साधु दावा कर रहा है कि आनंदपाल कोई आम शख्स नहीं था जो आसानी से मर जाए बल्कि वह तो अवतार था.

उसने राजपूतों के उद्धार के लिए जन्म लिया था और अभी भी वह अपने शरीर के साथ मौजूद है. साधु के मुताबिक ये सिर्फ संयोग नहीं हो सकता कि जब आनंदपाल पहली बार पकड़ा गया था तब भी अमावस की रात थी और एनकाउंटर की रात भी अमावस की थी. अभी आनंदपाल की आत्मा किसी अन्य शरीर में प्रवेश करेगी जो राजपूतों के नवकल्याण का कार्य करेगा.

कथित साधु का ये भी दावा है कि जिस तरह शस्त्र से सुसज्जित मां काली या दुर्गा, शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं उसी तरह आनंदपाल भी शक्ति का ही अवतार था. इसलिए अब आनंदपाल उर्फ एपी का मंदिर बनवाया जाना चाहिए. यह मंदिर एपी के गांव सांवराद में बनना चाहिए.

हालांकि मंदिरों की देखरेख करने वाले देवस्थान विभाग के मंत्री राजकुमार रिणवां ने एपी के संभावित मंदिर पर चुटकी लेते हुए कहा कि राजस्थान में किसी का मंदिर बनना कोई बड़ी घटना नहीं होती क्योंकि यहां हर गांव-ढाणी में एक अलग लोक देवता होता है.

बहरहाल, अगर एपी का मंदिर बनता है तो ये इस तरह का पहला मामला नहीं होगा. पाली जिले में भी ओम बन्ना का एक मंदिर बनाया गया है जो अब लगभग सभी समुदायों में तीर्थ की तरह स्थापित सा हो गया है. ओम बन्ना राजपूत समुदाय से थे. जानकारों का कहना है कि एक बार नशा ज्यादा हो जाने की वजह से बुलेट पर जा रहे ओम बन्ना का एक्सीडेंट हो गया.

कुछ किवंदितियों के अनुसार हादसे के बाद से ही ओम बन्ना की आत्मा उस जगह पर लोगों की प्राणरक्षा करती है जहां उनकी मौत हुई थी. इस सत्य के बावजूद ओम बन्ना आज पूजनीय बना दिये गए हैं कि हादसे के वक्त वो नशे में थे.

कुल मिलाकर बात ये है कि एनकाउंटर का सच सामने आए या न आए लेकिन गैंगस्टर आनंदपाल को अवतार घोषित करने और पूजने की पूरी तैयारी उसी राजपूत समुदाय ने कर ली है जो कभी आनंदपाल जैसे 'दारोगों' को अपने बराबर भी नहीं बैठाते थे.

राजस्थान विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की विभागाध्यक्ष कुमारी मंजू के अनुसार दारोगा उनको कहा जाता है जो राजपूत गोत्रों का इस्तेमाल तो करते हैं लेकिन कुलीन इन्हें राजपूत नहीं मानते. दरअसल, सामंतशाही के दौर में राजपूत कन्याओं के साथ दहेज में कुछ दासियों को भी भेजा जाता था. दारोगा इन्हीं की संतान होते थे. ये संतानें अपने स्वामी के गोत्र के अलावा और किसी अधिकार पर दावा नहीं कर सकते थे.

इन्हें हमेशा से ही केवल सेवा और भोग के लिए वस्तु रूप में समझा गया. यही कारण है कि कई कुलीन राजपूत आज भी दारोगों को बराबरी में नहीं बैठाते. आनंदपाल भी रावणा राजपूत समुदाय से था लेकिन अब सभी राजपूत उसके पक्ष में लामबंद हो गए हैं.

क्या एपी को न्याय की मांग केवल सियासत है?

आनंदपाल को जीते जी कुलीन राजपूतों ने अपनी बराबरी का दर्जा नहीं दिया था. कहा जाता है कि एपी को उसी के गांव के कुलीन राजपूतों ने शादी के समय घोड़ी पर नहीं बैठने दिया था. तब एक जाट, जीवन राम गोदारा ने उसका साथ दिया था. बाद में गोदारा के मर्डर का आरोप आनंदपाल पर ही लगा. अब उसी आनंदपाल को राजपूतों का हीरो और जाटों का दुश्मन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है.

हालांकि राजस्थान में एपी और किसी जाट गैंग के बीच बिहार के रणवीर सेना-भाकपा (माले) जैसे स्तर पर जातीय हिंसा के मामले कभी नहीं रहे क्योंकि एपी के गैंग में कई जाट युवा भी शामिल थे और कम से कम तीन राजपूतों के मर्डर का आरोप आनंदपाल पर भी है.

इन्हीं तथ्यों के आधार पर पूर्व कैबिनेट मंत्री और कभी भैरों सिंह शेखावत के सिपहसालार रहे देवी सिंह भाटी सवाल उठाते हैं कि राजपूत समाज एक गैंगस्टर के लिए तो लामबंद है लेकिन उन राजपूत परिवारों को न्याय दिलाने की कभी कोशिश नहीं की गई जिनके घर के चिराग आनंदपाल ने बुझा दिए. क्या ये सिर्फ और सिर्फ राजनीति नहीं है?

खुद राजस्थान पुलिस भी राजपूतों के दोहरे व्यवहार पर अचंभित है. समाज एपी के लिए तो एकजुट है लेकिन उसकी गोली से घायल कमांडो सोहन सिंह के लिए सहानुभूति पर्याप्त रूप से कम दिख रही है. सोहन सिंह को एनकाउंटर के दौरान आनंदपाल की गोली लगी थी. सोहन सिंह की हालत अभी खतरे से बाहर नहीं है. जयपुर से एयर एम्बुलेंस के जरिए उसे गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में शिफ्ट किया गया है.

बहरहाल, सियासत अपनी जगह है लेकिन कई सवाल हैं जिनके उत्तर जरूरी हैं मसलन, मानवाधिकारों की रक्षा की मांग एकतरफा रूप से गैंगस्टर आनंदपाल के लिए ही क्यों?

क्या एपी का शिकार बने लोगों और कमांडो सोहन सिंह के मानवाधिकारों का कोई मूल्य नहीं? और फिर शव का 15 दिन तक भी अंतिम संस्कार न करना क्या अपने आप में मानवाधिकारों का सबसे बड़ा हनन नहीं है?