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कैसे कह दूं कि मेरा देश महान, जब सेल्फी के चक्कर में इंसानियत होती है शर्मसार

जबतक ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी तबतक मौत के वीडियो बनते रहेंगे और सड़कों पर घायल मदद न मिलने की वजह से दम तोड़ते रहेंगे.

Kinshuk Praval

मानवता को शर्मसार करने वाली एक खबर राजस्थान के बाड़मेर से निकली जो कि विचलित कर देने वाली तस्वीर बन गई. टीवी चैनलों को इस खबर को दिखाते समय ये डिस्क्लेमर जरूर लगाना चाहिये कि ‘ये तस्वीर आपको विचलित कर सकती है’. दरअसल खबर सड़क हादसे से जुड़ी थी लेकिन तस्वीरें इंसानियत को तार तार कर रही थीं. मोटर साइकिल पर सवार तीन लोग एक स्कूल बस की टक्कर का शिकार हो गए थे. एक शख्स की मौके पर मौत हो गई थी तो दो लोग बुरी तरह घायल होने की वजह से सड़क पर तड़प रहे थे. ये लोगों से अस्पताल पहुंचाने की गुहार लगा रहे थे. लेकिन उस भीड़ की आंखों में ये मंजर सेल्फी के सीन के लिए किसी लोकेशन सा दिखाई दे रहा था. कुछ लोग उन घायलों की अस्पताल पहुंचाने की गुहार को अनसुना कर मौत से पहले का वीडियो बनाने में जुटे हुए थे तो कुछ उनसे दो कदम आगे चल कर खून से लथपथ घायलों के सामने खड़े हो कर सेल्फी ले रहे थे.

सेल्फी भी ले ली गई और मौत का वीडियो भी बन गया. सेल्फी लेने वालों की जिंदगी में एक नई उपलब्धि उस मोबाइल में कैद हो गई तो मौत का वीडियो बनाने वाले भी किसी विजेता की तरह इंसानियत की लाश पर पांव रखकर आगे बढ़ गए. परिवारवालों के लिये सड़क हादसे की खबर के जख्म पर मौत का वीडियो बनाने वालों ने नमक छिड़कने का काम किया. अपने लोगों की आखिरी वक्त की जिंदा तस्वीरें और तड़पती फरियाद ताउम्र न भूलने वाली टीस बन गई. किसी ने भी ये नहीं सोचा कि घायलों को तुरंत ही नजदीक के अस्पताल ले जाया जाए ताकि जिंदगियां बच सकें. न कोई फिक्रमंद था और न ही किसी के भीतर संवेदनाएं मौजूद थीं.

आखिरकार दो लोगों ने भी अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया. मौके पर पहुंची पुलिस का कहना था कि अगर इन्हें समय रहते अस्पताल पहुंचा दिया जाता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी. लेकिन लानत है इस बात पर कि उस भीड़ में और तेज रफ्तार ट्रैफिक में कोई इंसान ‘फरिश्ता’ बनने का साहस नहीं दिखा सका. इन मौतों के सबसे बड़े गुनहगार वो लोग हैं जो तमाशबीन सेल्फीमेन थे. स्कूल बस की टक्कर तो हादसे की वजह बनी थी लेकिन मौत का वारंट तो  सेल्फीमेन और वीडियो बनाने वालों ने पहले ही जारी कर दिया था.

ऐसा पहली दफे नहीं हुआ. न ही ऐसा सिर्फ राजस्थान में हुआ. संवेदनहीनता के ‘जिंदा पुतले’ मृतप्राय भावनाओं के साथ देश के कई हिस्सों की सड़कों पर ऐसी सेल्फी और वीडियो लेते दिख जाते हैं. ये हैवान बनी भीड़ में साक्षात् यमदूतों की तरह होते हैं जिनके चेहरे पर कोई भाव नहीं होता. सिर्फ सेल्फी लेते वक्त ही एक भाव आता है.

ऐसे लोगों की तादाद की कोई गिनती नहीं की जा सकती. ये तभी नजर आते हैं जब दिल दहला देने वाली घटना आकार ले रही होती है. कहीं पर कोई भीड़ सिर्फ अफवाह के चलते चंद लोगों को बच्चा चोर बता कर मौत के घाट उतार देती है और उस भीड़ में कुछ लोग मौत का वीडियो तैयार कर रहे होते हैं. कहीं पर गौरक्षा के नाम पर भीड़ चंद लोगों का हिसाब बराबर कर रही होती है और उस मार-पिटाई की चीख में कुछ सेल्फीबाज वीडियो तैयार कर रहे होते हैं. कहीं किसी बुजुर्ग औरत को डायन बता कर मारा जा रहा होता है और वीडियो बनाने वाले वृद्ध महिला की एक एक चीख और एक एक फरियाद को मोबाइल में कैद रहे होते हैं. सवाल उठता है कि ऐसे लोग सभ्य समाज का हिस्सा कैसे हो सकते हैं?

दिल्ली के बुराड़ी इलाके में एक ही घर से 11 लोगों के शव मिलते हैं. दिल्ली पुलिस फांसी पर चढ़े लोगों की मानसिक स्थिति समझने की कोशिश करती है. दरअसल वो मामले की जांच के लिये जानना चाहती है कि इतने सारे लोगों की खुदकुशी के वक्त सोच क्या थी. सवाल ये भी उठ सकता है कि जो इस दुनिया से जा चुके हैं उनकी मानसिक स्थिति जान कर हासिल क्या हो सकता है? लेकिन फांसी की फितरत को देखते हुए ये जरूरी है कि आखिर कैसे पूरा का पूरा परिवार अंधविश्वास के साए में गले में फंदा डाल सकता है. इसी तरह इन ज़िंदा सेल्फीबाज़ों और मौत का वीडियो बनाने वाले लोगों की भी मानसिक जांच होनी चाहिये जो आत्मा की गहराई तक भावनात्मक रूप में सिर्फ शून्य हो चुके हैं.

मोबाइल के कनेक्टेड वर्ल्ड में ये इंसानियत से कितना कट चुके हैं. कभी किसी घायल को सड़क पर कराहता देख कर इनकी आत्मा नहीं पसीजती है तो कभी किसी बेकसूर पर कहर बन कर टूटती भीड़ को देखकर इनका कलेजा नहीं फटता है और ये वीडियो बनाने में मशगूल रहते हैं. ये सामाजिक दायित्व से कटे हुए वो लोग होते हैं जिनके मन में किसी की मदद का कोई भाव होता ही नहीं है. ऐसे लोग समाज के लिये कितना बड़ा अभिशाप हैं. ऐसे ही लोग समाज को दूषित बनाने वाले सबसे बड़े पैरासाइट भी हैं. इन्ही लोगों की देखादेखी दूसरे इलाकों में होने वाली घटनाओं के वक्त नए ‘सेल्फी अवतार’ प्रकट हो जाते हैं तो मौत का वीडियो बनाने वाले कैमरामेन भी.

ऐसे लोगों को मानसिक इलाज की सख्त जरूरत है जो किसी की जान बचाने की बजाए सेल्फी लेने का दुस्साहस जुटा लेते हैं और किसी घायल शख्स की मौत हो जाने तक वीडियो बनाते रहते हैं.

सड़क हादसे के वक्त किसी की मदद न करने का पहले एक कानूनी बहाना भी होता था. लोग कोर्ट-पुलिस की पूछताछ की पेचीदगियों से बचने के लिये किसी घायल को अस्पताल पहुंचाना जरूरी नहीं समझते थे. लेकिन अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी ये कह दिया है कि किसी घायल को अस्पताल पहुंचाने वाले शख्स को सुरक्षा दी जाएगी. इसके बावजूद लोगों के भीतर किसी घायल की मदद करने का इंसानी जज्बा नहीं जाग सका है. किसी परिवार के लिये शोक की घटना की सेल्फी लेना का शौक हावी हो चुका है. जबतक ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी तबतक मौत के वीडियो बनते रहेंगे और सड़कों पर घायल मदद न मिलने की वजह से दम तोड़ते रहेंगे.