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'लिव इन' रिलेशनशिप को राजस्थान राज्य महिला आयोग ने बताया अपवित्र रिश्ता

अध्यक्ष सुमन शर्मा ने इस अभियान के पीछे तर्क दिया कि आयोग के पास 40 से ज्यादा केस 'लिव इन' रिलेशनशिप से पीड़ित महिलाओं के आए

FP Staff

लिव इन रिलेशनशिप पर राजस्थान में नया बवाल खड़ा हो गया है. राजस्थान राज्य महिला आयोग ने इसे 'अपवित्र' रिश्ता बताकर इसके खिलाफ अभियान चलाने का फैसला किया है. आयोग युवतियों और महिलाओं की काउंसलिंग करेगा, प्रचार अभियान चलाएगा कि वे इस रिश्ते को नहीं अपनाए. अगर है तो छोड़ दें.

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने इस अभियान के पीछे तर्क दिया कि आयोग के पास 40 से ज्यादा केस 'लिव इन' रिलेशनशिप से पीड़ित महिलाओं के आए. वे इंसाफ मांग रही हैं लेकिन इस रिश्ते की कानूनी मान्यता नहीं होने से आयोग मदद नहीं कर पा रहा है क्योंकि शादी के रिश्ते में केस दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है, लिव इन के रिश्ते में नहीं.


सुमन शर्मा ने कहा दूसरी वजह ये है कि ये रिश्ता हमारी संस्कृति के खिलाफ है. इन दो वजहों से तय किया गया कि युवतियों और महिलाओं को जागरुक किया जाएगा कि वे लिव इन में रहने के बजाय शादी करें.

आयोग के फैसले को लेकर बवाल खड़ा हो गया है. कांग्रेस ने आयोग के इस रिश्ते की खिलाफत को महिलाओं को रिश्ता चुनने की आजादी के खिलाफ बताया. कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता अर्चना शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी इस रिश्ते से पैदा होने वाले बच्चे को मान्यता दे चुका है. इस रिश्ते की दुनियाभर मे स्वीकार्यता बढ़ रही है. अर्चना शर्मा ने आरोप लगाया कि आयोग का आरएसएस का एजेंडा थोप रहा है.

2014 में लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को कानूनी अधिकार दिए

भारत में इस रिश्ते को लेकर विवाद की शुरुआत 2008 से हुई थी तब तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने संसद में इसे कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया था. कहा गया कि समाज का बड़ा तबका इसके खिलाफ है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2013 और 2014 में लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को कानूनी अधिकार दिए. सबसे ऐतिहासिक मामला था पूर्व राज्यपाल नारायणदत्त तिवारी के लिव इन रिश्ते से पैदा हुए बेटे रोहित शेखर तिवारी का.

रोहित ने कानूनी लड़ाई के बाद ये हक हासिल किया. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने दादा के बीस साल से एक महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप के रिश्ते को मान्यता देकर लिव इन पार्टनर को दादा की संपत्ति में पार्टनर के बतौर पत्नी हकदार माना था. कोर्ट ने लिव इन पार्टनर को रखैल या उप पत्नी के बजाय पत्नी माना और लिव इन की नई परिभाषा गढ़ी. बावजूद अभी तक इस रिश्ते को पूरी तरह कानूनी मान्यता नहीं है.

(न्यूज़ 18 से साभार भवानी सिंह की रिपोर्ट)