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राजस्थान: क्या फिर सुलगेगी गुर्जर आरक्षण की आग?

गुर्जरों को पहले भी 3 बार आरक्षण दिया गया है लेकिन कोर्ट ने हर बार इसे खारिज कर दिया है.

Mahendra Saini

राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार के लिए गुर्जर आरक्षण सांप-छछुंदर का खेल बनता नजर आ रहा है. सरकार न आरक्षण दे पा रही है और न ही आरक्षण के जिन्न को वापस बोतल में बंद कर पा रही है. दिन पर दिन नए-नए दांव खेले जा रहे हैं. इसी कड़ी में पिछले सारे दांव फेल होने के बाद सबसे नया ट्विस्ट ये आया है कि राजे सरकार ने अब गुर्जरों की 5% आरक्षण की मांग को पूरा करने का रास्ता ओबीसी कोटे से निकाला है.

सरकार की मंशा ये है कि ओबीसी के मौजूदा 21% आरक्षण को बढ़ा कर 26% कर दिया जाए. ये बढ़ा हुआ 5% आरक्षण सिर्फ गुर्जरों के लिए होगा. हालांकि इस तरह राजस्थान में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की 50% की सीलिंग से परे 54% पर चला जाएगा. राज्य में अभी 49% आरक्षण है. इसमें एससी का 16% और एसटी का 12% हिस्सा है.


ओबीसी कोटे के अंदर कोटे पर सहमति 17 अगस्त की शाम को मंत्रिमंडलीय समिति और गुर्जर नेताओं के बीच हुई वार्ता में बनी. जयपुर के इंदिरा गांधी पंचायती राज भवन में 4 दौर की वार्ताओं के बाद इसपर सहमति बनी. इसके बाद समिति ने समाज के नेताओं को आरक्षण के इस नए फॉर्मूले पर प्रस्ताव बनाने की सलाह दी.

प्रस्ताव बनते ही मंत्रिमंडलीय समिति और गुर्जर नेताओं ने सीएम हाउस पहुंचकर वार्ता का एक दौर और किया. सीएम हाउस में करीब दो घंटे की बातचीत के बाद ओबीसी कोटे से आरक्षण पर सहमति बन गई.

कोर्ट में टिक नहीं पाएगा गुर्जर आरक्षण

गुर्जर समाज के प्रवक्ता हिम्मत सिंह ने बताया कि सरकार जल्द ही विधानसभा में विधेयक पारित करवाकर गुर्जरों को ओबीसी कोटे से 5% आरक्षण पर मुहर लगाएगी. बाद में ओबीसी कोटे को 21 और 5 फीसदी की दो सब-कैटेगरी में बांट दिया जाएगा.

राजे सरकार की कोशिश ये है कि गुर्जर आरक्षण मसले पर ओबीसी कमीशन की सिफारिश को आधार बनाया जाए. कमीशन ने राज्य में ओबीसी जनसंख्या को 54% से ज्यादा माना था. इसी आधार पर राजे सरकार ओबीसी आरक्षण में बढ़ोतरी का ड्राफ्ट तैयार कराएगी.

हालांकि सरकार की सहमति के बावजूद लगता नहीं कि यह इतनी आसानी से लागू हो पाएगा. गुर्जरों को पहले भी 3 बार 5% आरक्षण दिया जा चुका है. लेकिन हर बार इसे कोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने हर बार ही इस आधार पर खारिज कर दिया कि गुर्जरों को अलग से आरक्षण देने से यह 50% से ज्यादा हो जाता है.

अब एक बार फिर सरकार ने आरक्षण लागू किया तो यह 54% हो जाएगा. ऐसे में किसी ने भी कोर्ट में चुनौती दी तो यह लागू नहीं हो पाएगा. इस बार फर्क सिर्फ ये होगा कि कोर्ट के फैसले से गुर्जरों के साथ ओबीसी की दूसरी 81 जातियां भी प्रभावित होंगी.

गुर्जरों को पहले ही ओबीसी से अलग 1% आरक्षण लागू है. इन्हें 5% आरक्षण देने के लिए गाड़िया लुहार और रैबारी जैसी कुल 5 जातियों को मिलाकर विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) बनाया गया था. राजस्थान विधानसभा से बाकायदा विधेयक पारित कराकर केंद्र को भेजा गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के खरिज किए जाने के बाद कई भर्तियां भी अटक गई थी.

गुर्जर आरक्षण में पेचीदगियों का इतिहास विवादों भरा और रक्तरंजित है. 2008 से ही आरक्षण की मांग को ले कर समय-समय पर हिंसा होती रही है. राजे सरकार के पिछले कार्यकाल में इस आंदोलन में करीब 72 जानें गई. दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-जयपुर और जयपुर-आगरा रेल और रोड मार्ग क्षतिग्रस्त कर दिया गया.

गुर्जरों की आरक्षण की मांग भी कभी एकरूप नहीं रही है. मंडल आयोग की सिफारिशों अनुसार गुर्जर जाति को ओबीसी में शामिल किया गया था. लेकिन बाद में इन्होंने एसटी में शामिल किए जाने की मांग शुरू कर दी.

ओबीसी नहीं, एसटी में चाहिए रिजर्वेशन: बैंसला

गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का कहना है कि मूल रूप से गुर्जर एक पशुपालक और खानाबदोश जाति है. आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से गुर्जर जाति अभी भी मुख्यधारा से दूर है. इसलिए गुर्जरों को ओबीसी के बजाय जनजाति (ST) में शामिल किया जाना चाहिए.

ओबीसी से एसटी में शामिल किए जाने की मांग शायद दो वजह से की गई. एक तो हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों के गुर्जर एसटी वर्ग में थे. दूसरा इसलिए कि पूर्वी राजस्थान में, जहां गुर्जर बहुतायत संख्या में हैं, वहां उन्होंने अपने समकक्ष एसटी वर्ग की मीणा जाति को आरक्षण के चलते नौकरियों से लेकर राजनीति तक में जबरदस्त फायदा उठाते और सामाजिक सोपान में ऊपर बढ़ते हुए देखा था.

वास्तव में गुर्जरों की एसटी वर्ग में शामिल करने की मांग का मूल भी राजनीतिक भागीदारी बढ़ाना ही था न कि नौकरियों में प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश.

राजस्थान में 200 विधानसभा सीट हैं जिनमें एसटी के लिए आरक्षित 25 सीटों पर मीणा समुदाय का एकछत्र राज है.

लेकिन एसटी कैटेगरी में शामिल होने की गुर्जरों की ख्वाहिश परवान नहीं चढ़ पाई क्योंकि आरक्षण की ये मांग पूर्वी राजस्थान में शक्तिशाली मीणाओं के साथ जातीय संघर्ष में बदल गई.

इस बीच फौरी राहत के तौर पर गुर्जरों को 1% आरक्षण जारी रहा. ये इसलिए ताकि सुप्रीम कोर्ट की 50% आरक्षण की सीलिंग का दायरा पार न हो.

2013 में वसुंधरा सरकार ने गुर्जर आरक्षण के समाधान का चुनावी वादा किया था. जाहिर है, इसे पूरा करना ही था. इसलिए विधानसभा से एक बार फिर 5% आरक्षण का विधेयक पारित करवाकर केंद्र को भेजा गया. लेकिन ये भी कानूनी पेचीदगियों में उलझ गया.

गुर्जर ओबीसी में आए तो मूल ओबीसी वाले होंगे नाराज

अब देखना ये है कि ओबीसी कोटे का दायरा बढ़ा देने से क्या मूल ओबीसी जातियां विरोध नहीं करेंगी? क्योंकि पहले जब-जब भी ओबीसी कोटे के वर्गीकरण की कोशिशें हुई हैं, मूल जातियों ने हमेशा कड़ा विरोध जताया है.

सरकार को इस बार भी आशंका थी कि गुर्जरों को 5% आरक्षण पर निश्चित रूप से जाट, सैनी, यादव जैसी कद्दावर जातियों की नाराजगी खतरे से खाली नहीं रहेगी. इसीलिए इस बात का ख्याल रखा गया है कि मजबूत वोट बैंक वाली पिछड़ी जातियों के कोटे को कम न किया जाए लेकिन गुर्जरों को भी खुश कर दिया जाए.