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डॉ राजा रामन्ना: भारत के पहले न्यूक्लियर परीक्षण के सूत्रधार

डॉ राजा रमन्ना विज्ञान के साथ-साथ कला के भी जानकार थे

Navneet kumar Gupta

भारत में परमाणु कार्यक्रम की नींव रखने का श्रेय डॉ होमी जहांगीर भाभा को जाता है, पर डॉ राजा रामन्ना का योगदान भी इस कार्य में कम नहीं है. 18 मई, 1974 में देश के पहले सफल परमाणु परीक्षण कार्यक्रम में अहम भूमिका निभाने के लिए राजा रामन्ना को याद किया जाता है. रामान्ना उन आरंभिक भारतीय वैज्ञानिकों में से हैं, जिन्होंने ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग के लिए पथप्रदर्शक कार्य किए और देश के स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए कार्य किया.

भारत को परमाणु संपन्न देश बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिक राजा रामन्ना का जन्म 28 जनवरी, 1925 को कर्नाटक के टुम्कुर में हुआ था. बचपन से ही विज्ञान और संगीत के प्रति गहरी रुचि रखने वाले रामन्ना राष्ट्रमंडल छात्रवृत्ति मिलने के बाद वर्ष 1952 में डॉक्टरेट करने के लिए इंग्लैंड चले गए. उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के किंग्स कॉलेज से वर्ष 1954 में परमाणु भौतिकी के क्षेत्र में पीचएडी की उपाधि हासिल की. यहां उन्होंने परमाणु ईंधन चक्रों और रिएक्टर डिजाइनिंग में विशेषज्ञता प्राप्त की.


वर्ष 1944 में छात्र जीवन के दौरान ही राजा रामन्ना की भेंट प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक भाभा से हुई थी और उनके आह्वान पर रामन्ना ने अपना जीवन देश के लिए समर्पित करने का मन बना लिया था. भारत लौटने पर रामन्ना टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ तकनीकी स्टाफ में शामिल हो गए, जहां उन्होंने होमी जहांगीर भाभा के साथ वर्गीकृत परमाणु हथियार परियोजनाओं में काम किया. रामान्ना ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में भौतिकी और रिएक्टर भौतिकी कार्यक्रमों में अग्रणी भूमिका निभाई.

अप्सरा और पोखरण

रामन्ना भाभा के नेतृत्व में युवा वैज्ञानिकों के उस समूह में शामिल थे, जो भारत के पहले शोध रिएक्टर अप्सरा की स्थापना के लिए कार्यरत था. रामन्ना ने उस दौरान मंदकों के संयोजन के लिए न्यूट्रान थर्मलाइजेशन का गहन अध्ययन किया. 1974 में रामन्ना और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र यानी बीएआरसी के अन्य अधिकारियों ने मौखिक रूप से इंदिरा गांधी को सूचित किया था कि भारत अपने छोटे से लघु परमाणु उपकरण का परीक्षण करने के लिए तैयार है. इंदिरा गांधी ने रामन्ना को इसकी अनुमति दी और रामन्ना और उनके समूह के मार्गदर्शन में इस कार्य की तैयारियां होने लगीं.

रामन्ना ने तत्काल पोखरण की यात्रा कर परमाणु परीक्षण स्थल का जायजा लिया. तैयारी बेहद गोपनीयता के तहत पूर्ण हो रही थी और पहला परमाणु उपकरण ट्रॉम्बे से पोखरण टेस्ट रेंज से रामन्ना के साथ भेजा गया था. रामन्ना और उनकी टीम ने परमाणु परीक्षण स्थल पर परमाणु उपकरण स्थापित किया. यह कार्य विभिन्न सरकारी संस्थाओं के बेहतर तालमेल से होना था. उस समय यानी परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होमी नौशेरवानजी सेठना थे और बीएआरसी में निदेशक के पद पर रामन्ना कार्यरत थे. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ का नेतृत्व कर रहे थे डॉ नाग चौधरी. इन सभी पर अन्य संस्थाओं के समन्वय से परमाणु परीक्षण को अंजाम देने की जिम्मेदारी थी.

18 मई, 1974 को बुद्ध जयंती थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस दिन एक फोन का इंतजार कर रही थीं. उनके पास एक वैज्ञानिक का फोन आता है और वह कहते हैं "बुद्ध मुस्कराए". इस संदेश का मतलब था कि भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दिया है, जो सफल रहा. सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर राजस्थान के पोखरण में परीक्षण के लिए विस्फोट किया गया था. इसके बाद दुनिया में भारत पहला ऐसा देश बन गया, जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य न होते हुए भी परमाणु परीक्षण करने का साहस किया.

विस्फोट स्थल का निरीक्षण करते हुए इंदिरा गांधी की तस्वीरें भारत में अखबारों के पहले पृष्ठ पर राजा रामन्ना सहित उस समय के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक जोड़ी के साथ थीं. इस उपलब्धि के बाद रामन्ना को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. इस सफलता के बारे में राजा रामन्ना ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि पोखरण परीक्षण देश के परमाणु इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है और यह भारत की तकनीकी प्रगति को साबित करता है, जिसके लिए हम आजादी के बाद से ही प्रयास कर रहे थे.

इस परीक्षण का बाद में यह निष्कर्ष निकाला गया कि देश में नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग शांतिपूर्ण कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है. वास्तव में नाभिकीय ऊर्जा को शांतिपूर्ण कार्यों में प्रयोग करने का बहुत बड़ा परीक्षण था. शांतिपूर्ण कार्यो में नाभिकीय ऊर्जा को प्रयोग करने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम था. रामन्ना सदैव नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग चिकित्सा, खेती कल्याकणकारी कार्यों में करने के पक्षधर थे. डॉ राजा रामन्ना ने देश के कई नाभिकीय रिएक्टरों के निर्माण और संचालन में अहम योगदान दिया. उन्होंने अप्सरा, सायरस, पूर्णिमा आदि नाभिकीय रिएक्टरों की स्थापना में अपना योगदान दिया. इनका मुख्य कार्य नाभिकीय विखंडन के क्षेत्र में रहा है.

विज्ञान के साथ कला भी

अक्सर आम लोगों की धारणा वैज्ञानिकों के लेकर अलग ही तरह की होती है. राजा रामन्ना उस धारणा से बिल्कुल विपरीत थे. जटिल नाभिकीय विज्ञान की समझ के साथ ही वह कला-प्रेमी भी थे. वह संगीत के अच्छे जानकार और कुशल संगीतज्ञ थे. इंग्लैंड प्रवास के दौरान उन्होंने यूरोपीय संगीत का खूब आनंद लिया और पश्चिमी दर्शन के बारे में पढ़ा और जाना. पश्चिमी संगीत और सभ्यता में राजा रामन्ना की रुचि और उत्साह जीवन भर रहा और भारत लौटने के बाद उन्होंने अपने आप को प्रतिभावान पियानो-वादकों जैसा पारंगत किया. यह जानकर किसी को भी हैरानी हो सकती है कि अपनी वैज्ञानिक गतिविधियों को निभाते हुए उन्होंने भारत और विदेशों में कई संगीत कार्यक्रमों में परंपरागत पश्चिमी संगीत का प्रदर्शन भी किया.

फोटो सोर्स- ट्विटर

उन्होंने संगीत पर एक पुस्तक 'दि स्ट्रक्चर ऑफ म्यूजिक इन रागा ऐंड वेस्टर्न सिस्टमस' भी लिखी थी. बैंगलोर स्कूल ऑफ म्यूजिक की स्थापना में भी रामन्ना का अहम योगदान था. राजा रामन्ना संस्कृत के विद्वान भी थे. उनकी दिलचस्पी दर्शन और योग में थी, जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है. राजा रामन्ना समाज के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता को हर समय रेखांकित करते थे.

राजा रामन्ना ने विभिन्न पदों पर रहते हुए साबित किया कि वह कुशल प्रशासक और सफल नेतृत्वकर्ता भी हैं. उन्होंने अनेक संस्थानों में कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया. वह भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक, परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी रहे. साथ ही वह राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किए गए और उन्होंने केंद्र में रक्षा राज्यमंत्री के पद पर भी कार्य किया.

राजा रामन्ना ने हर स्तर पर सृजनात्मकता को बढ़ावा दिया. उन्होंने युवा वैज्ञानिकों को विशेष तौर पर चुनौतियां स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने अपने निर्देशन में वैज्ञानिकों की एक पीढ़ी तैयार की, जो परमाणु एवं अन्य क्षेत्रों में देश की प्रगति के लिहाज से सक्षम साबित हुए. वह देश के अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं की स्थापना से सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े रहे. 24 सितंबर, 2004 को राजा रामन्ना का मुम्बई में निधन हुआ. भले ही आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन नई पीढ़ी के वैज्ञानिक उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और देश की प्रगति के लिए कार्यरत हैं.

(इंडिया साइंस वायर)