पांच अप्रैल को केन्द्रीय कैबिनेट ने रेल डेवलपमेंट अथॉरिटी के गठन को हरी झंडी दिखा दी है. इस फैसले के साथ ही किश्तों में रेलवे के निजीकरण का भी रास्ता साफ हो गया है.
केंद्रीय कैबिनेट के इस फैसले को रेलवे के निजीकरण की दिशा में बढ़ाया गया अहम कदम मानने के पीछे की वजह समझना जरूरी है. इसके लिए जरूरी है आरडीए को जानना. आरडीए यानी रेल डेवलपमेंट अथॉरिटी एक स्वायत्त संस्था होगी. ये रेल मंत्रालय के लिए काम करेगी.
आरडीए को मुख्यत: तीन कामों की जिम्मेदारी सौंपी गयी है -
1. रेलवे का यात्री किराया और मालभाड़ा तय करने का अधिकार
2. निवेशको के लिए आदर्श माहौल तैयार करने की जिम्मेदारी
3. रेलवे की तरफ से मिलने वाली बाकी सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार.
आरडीए ऐसा क्या करेगा जो अब तक नहीं हो रहा था?
आरडीए का खाका कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि इसमें रेलवे के अफसरों की जवाबदेही कम हो और बाहरी एक्सपर्ट की ज्यादा. आरडीए में एक चेयरमैन और तीन सदस्य होंगे, जो बाहरी एक्सपर्ट की मदद से रेलवे को मुनाफे की ओर ले जाने वाली योजनाएं बनाएंगे.
इन योजनाओं के आधार पर रेलवे बोर्ड को अपना सुझाव देंगे और उसी के आधार पर रेलवे के भविष्य का रोड मैप तैयार किया जाएगा. हालांकि आरडीए के सुझाव को मानने या ना मानने का अधिकार रेल मंत्री और उनके अधिकारियों के पास ही होगा.
कुल मिला कर इस अथॉरिटी का काम रास्ता दिखाने के अलावा और कुछ नहीं.
लेकिन आरडीए के बताए रास्ते पर चलना है या नहीं ये ये रेल मंत्री और उनकी
टीम ही तय करेगी. ठीक कमोबेश RDA काफी हद तक उसी तरह काम करेगी जैसे TRAI टेलीकॉम सेक्टर में काम करती है.
भारतीय रेल अगर निजी हो गई तो इससे मुझे क्या?
रेलवे को उम्मीद है कि ये अथॉरिटी ऐसे सुझाव दे जिससे घाटे में चल रही
रेल मुनाफा देने वाली बन जाए.
निजी निवेशको के सामने रेलवे के घाटे वाली इमेज का मेकओवर हो जाए ताकि
निजी निवेशक रेलवे की ओर आकर्षित हो. इसके लिए जो काम सबसे पहले करना होगा वो है किराए पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म करना.
रेलवे का मूल काम यात्रियों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाना है और उसी
में रेलवे को सबसे ज्यादा यानी करीब 36 हजार करोड़ का नुकसान होता है. इस
नुकसान में सबसे बड़ा हिस्सा लोकल ट्रेन के किरायों पर दी जाने वाली
सब्सिडी है.
रेलवे अब तक इस नुकसान की भरपाई मालभाड़े में बढ़ोतरी करके करता आया था. लेकिन इससे नुकसान ये हुआ कि महंगा होने की वजह से माल ढुलाई का काम भी रेलवे के हाथ से निकल गया.
तो कब से आपकी जेब कटना शुरू होगी?
रेलवे के मुताबिक ये रेल डेवलपमेंट अथॉरिटी एक अगस्त तक अपना काम शुरू कर देगी. अगर अथॉरिटी का काम काम रेलवे के सुस्त रफ्तार की बजाय तेज रफ्तार से हुआ तो एक नवंबर तक बढ़े हुए यात्री किरायों की ख़बर सुनने को भी मिल सकती है.
यात्री किराये बढ़ाने के बाद होने वाली छीछालेदर को देखते हुए केंद्र सरकार अपने हाथ में बंदूक लेकर यात्रियों को निशाना बनाने के मूड में नहीं है. ऐसे में सरकार ने उस कंधे की तलाश की जिस पर रखकर वो बंदूक चला सके और अब उसे वो कंधा मिला है आरडीए के रूप में.
पहले भी तो किराया बढ़ाया था उसका क्या हुआ?
बात यह है कि सरकार ने तीन साल में तीन बार- कभी फ्लेक्सी फेयर के नाम पर
तो कभी डायनमिक प्राइजिंग के नाम पर और कभी किराया बढ़ोतरी के नाम पर
यात्री किराये में भारी बढ़ोतरी की.
बावजूद इसके रेलवे के खजाने का हाल आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रुपया वाला ही है. इसलिए सरकार ने अब आमदनी बढ़ाने की जिम्मेदारी आरडीए को सौंपी है ताकि वो प्राइवेट एक्सपर्ट के साथ मिल कर 36 हजार करोड़ के घाटे से उबरने और मुनाफा कमाने का सटीक और टिकाऊ रास्ता सुझा सके.
किराया बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं?
जाहिर है किराया बढ़ाना तो एक रास्ता है ही. रेलवे के खर्च में कटौती
दूसरा रास्ता होगा और नॉन फेयर रेवेन्यू यानी आय के अतिरिक्त कमाई के
स्रोत ढूंढना तीसरा रास्ता होगा. लेकिन 36 हजार करोड़ के घाटे को एक साल
में एक बार किराया बढ़ाकर तो पूरा नहीं किया जा सकता.
इसलिए कोशिश ये की जाएगी कि सरकार 2-3 साल में पैंसेंजर सब्सिडी से पल्ला झाड़े और फिर मुनाफा कमाने की सोचे. एक बार मुनाफे की स्थिति में रेलवे आ जाए तो निजी निवेशकों की नजर में रेलवे में निवेश फायदे का सौदा होगा.
और इसी तरह साफ होगा रेलवे के निजीकरण का रास्ता.
और क्या क्या किया है सरकार ने?
सरकार ने अब तक ट्रेन चलाने के अलावा बाकी कई क्षेत्रों में निजी
निवेशकों को आने का मौका दिया. इसमें स्टेशन डेवलपमेंट भी एक अहम क्षेत्र
है लेकिन रेलवे ऑपरेशन नहीं होने की वजह से स्टेशन डेवलेपमेंट में भी कोई
निजी निवेशक आने को राजी नहीं.
यानी इसके बाद यात्री की दिक्कत चालू सरकार की खत्म? सरकार के लिए बड़ी दिक्कत तब होगी जब रेलवे ऑपरेशन निजी कंपनियों के हाथ चला जाएगा. भारतीय रेलवे में 14 लाख कर्मचारी काम करते है. कर्मचारियों के साथ-साथ यूनियनों की भी संख्या रेलवे में ज्यादा है. यही मुश्किल की जड़ है.
जैसे ही रेलवे के निजीकरण की बात उठती है रेलवे के सभी कर्मचारी यूनियन
भी विरोध में उठ खड़े होते हैं. इसीलिए सरकार ने रेलवे डेवलपमेंट अथॉरिटी
बनाकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं. क्योंकि सरकार जानती है कि सीधे
सीधे निजीकरण का रास्ता ना तो उसके लिए फायदेमंद है और ना ही आसान है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)