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राहुल गांधी, रहीम स्टर्लिंग और जोस बटलर: सोशल मीडिया बेवजह के मुद्दों को तूल देने लगा है

लब्बोलुबाब ये कि जो बात आप मन में सोच रहे हैं, यानी जो आप की निजी सोच हो, उसे सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर उथल-पुथल मचा देना और फिर माफिया मांगते फिरना, अब कितना आसान हो चला है

Bikram Vohra

क्या आप जानते हैं कि राहुल गांधी, मशहूर क्रिकेटर जोस बटलर और फुटबॉल खिलाड़ी रहीम स्टर्लिंग में कौन सी बात कॉमन है? इन तीनों की जिंदगी सोशल मीडिया ने नर्क बना दी है और अब इनकी कोई प्राइवेसी बची नहीं रह गई है. नतीजतन इनके सेलिब्रिटी स्टेटस की ऐसी-तैसी हो गई है.

इनकी जिंदगियों में सोशल मीडिया की घुसपैठ कुछ इस कदर हो गई है कि हम और आप उनकी जगह होते तो शायद खुदकुशी कर चुके होते. बावजूद इसके हममें से ज्यादातर लोग मानते हैं कि मशहूर होने का इतना ‘टैक्स’ तो बनता है. मशहूर होते ही आप चूंकि पब्लिक प्रॉपर्टी बन जाते हैं, इसलिए आपको उसके कुछ बुरे नतीजे भी भुगतने होते हैं.


मिसाल के तौर पर हाल ही में योग करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वीडियो टीवी और सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो राहुल गांधी की प्रतिक्रिया हैरान करने वाली थी. नाक-भौं सिकोड़ते हुए उन्होंने इसे ‘अजीबोगरीब’ कह डाला. अब कोई मुझे ये बताए कि बड़ी-बड़ी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे देश में क्या यही एक मुद्दा है?

हम 24 घंटों में कई सारी बातें करते रहते हैं, लेकिन हमारे कहे को, अगर किसी दूसरे संदर्भ में पेश किया जाय तो कोई भी हैरान रह जाएगा. राहुल गांधी ने मोदी के वीडियो पर जो भी प्रतिक्रिया दी, वो मोदी के प्रति राहुल के बैर भाव के मुकाबले तो बड़ी ही सामान्य सी प्रतिक्रिया है. और ऐसी प्रतिक्रिया हम लोगों से मिलते-जुलते, दिन भर में शायद दर्जनों बार देते होंगे. लेकिन संदर्भ की वजह से उनकी प्रतिक्रिया बड़ी हो गई.

क्रिकेटर जोस बटलर की मिसाल लीजिए. क्रिकेटर्स को खेलते हुए टीवी पर हमने कितनी ही बार देखा होगा जब कैमरा उन्हें कुछ ऐसा करते पकड़ लेता है, जो अजीबोगरीब होती हैं. पीठ खुजाते हुए, थूकते हुए, बार-बार अपने एब्डॉमिनल गार्ड्स को संभालते हुए और कभी-कभी तो ड्रेसिंग रूम की खिड़कियों के शीशे के भीतर से कपड़े बदलते हुए भी. अगर ऐसा कुछ किसी दफ्तर में हो जाए, या किसी के घर में, कपड़े बदलते आप किसी पर कैमरा टिका दें, तो आप शायद उसके खिलाफ अदालत चले जाएं.

क्रिकेटर्स मैदान पर ढिठाई से भरपूर ऐसी हरकतें खूब करते हैं. ऐसी अजीबोगरीब भी कि किसी महफिल में बैठे हों, तो जोस बटलर पर आप चर्चा करना भी पसंद नहीं करेंगे. जैसे बटलर ने अपने बैट पर अंग्रेजी के F से शुरू होने वाले जो चार अल्फाबेट लिख रखे थे, उन पर बेशक खूब बवाल हुआ हो, सोशल मीडिया पर बटलर को टारगेट किया गया हो, वो शब्द इतना सामान्य हो चला है कि अब तो उसे अपशब्द माना ही नहीं जाता. उस शब्द के उच्चारण के तरीके पर जाइए तो उसके 400 मायने निकलते हैं. तो खेलों में ही बटलर से ज्यादा ‘पापी’ खिलाड़ी दूसरे हैं. कहने का मतलब ये कि छोटी-छोटी बातों को लेकर गुस्सा भड़काते वक्त हम ये क्यों मानने लगते हैं कि हम ही सही कह रहे हैं.

अब फुटबॉल खिलाड़ी रहीम स्टर्लिंग की ही मिसाल ले लीजिए. छोटी सी बात थी. एक मैच में उन्होंने दाहिने पैर पर एक टैटू बनवाया था, उसे लेकर लोगों के गुस्से का सामना उन्हें करना पड़ा. हालांकि उन्होंने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने अपनी जांघ पर बंदूक की तस्वीर इसलिए गुदवाई क्योंकि वो इसके जरिये अपने पिता को याद करना चाहते थे , जिनकी हत्या की जा चुकी है. वो कहते हैं कि गोली की ही तेजी से मैं अपने दाहिने पैर से गोल मारूंगा. लेकिन उसकी सफाई किसी ने नहीं सुनी.

इंग्लैंड के इस फुटबॉलर को ये कह कर आलोचना का शिकार बनाया गया कि ऐसा टैटू गुदवा कर दरअसल स्टर्लिंग ‘गैंग कल्चर’ को प्रोत्साहित कर रहे हैं. अब स्टरलिंग चूंकि अफ्रीकी मूल के काले खिलाड़ी हैं, इसलिए ये टैटू बनवाना अपराध साबित कर दिया गया. लेकिन अगर यही टैटू वेन रूनी ने बनवाया होता तो क्या इतना हंगामा मचता? ये नस्ली सोच है. खिलाड़ियों को एक खास खांचे में फिट देखना की चाह रखना नस्लवाद बढ़ाता है. और अगर आपकी सोच मूलरूप से ही वही है तो नियम कानून कैसे भी बनाइए, नस्लवाद रोका नहीं जा सकता.

हर कोई चाहता है कि उसकी बात सुनी जाय और वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल तेज भागने वाले घोड़े की तरह कर रहा है. बस घोड़े पर बैठे और नाम हासिल कर लिया. अपना हिस्सा मांगते निराश रिटायर्ड फौजी, पूर्वाग्रह से ग्रस्त राजनेता, व्यक्तिगत दुश्मनियां निकालने की हद तक जाने वाले आलोचक, सेलिब्रिटीज के बिना सोचे-समझे दिए गए विवादित बयान और उस पर हंगामे के बाद उन पर मांगी गई माफियां, सब मिलकर सोशल मीडिया को जिंदा रखते हैं.

दुनिया के मशहूर शेफ अतुल कोचर का हाल में ही ट्विटर पर प्रियंका चोपड़ा से जुड़ी टिप्पणी करना काफी महंगा पड़ा. माफी तो मांगनी ही पड़ी, दुबई के मैरियट होटल से नौकरी से निकाल दिया गया. कोचर की मिसाल ये बताने के लिए काफी है कि अच्छे भले लोग सोशल मीडिया पर गैरवाजिब टिप्पणी कर हंगामा मचाते हैं, फिर खुद ही कैसे अपने ही शिकार बन जाते हैं.

लब्बोलुबाब ये कि जो बात आप मन में सोच रहे हैं, यानी जो आप की निजी सोच हो, उसे सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर उथल-पुथल मचा देना और फिर माफिया मांगते फिरना, अब कितना आसान हो चला है. इसीलिए जैसे-जैसे फेक न्यूज और छिछले, घटिया मुद्दे सोशल मीडिया पर भीड़ लगाएंगे, वैसे वैसे गोपनीयता का मुद्दा बदतर होता जाएगा.