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राफेल डील: क्या बोफोर्स मामले में कांग्रेस का हश्र देखकर मोदी सरकार JPC जांच से बच रही है?

अब तक 6 बार अलग-अलग मामलों पर जेपीसी का गठन हुआ है. और हर बार जिस सरकार में जेपीसी बनी अगले चुनाव में उसकी वापसी नहीं हुई

Vivek Anand

अस्सी और नब्बे के दशक में देश में बोफोर्स तोप सौदे में दलाली की खबरों पर हंगामा मचा था. ठीक वैसा ही जैसा आज राफेल डील भ्रष्टाचार के आरोपों पर कांग्रेस लगातार एनडीए सरकार को घेरने में लगी है. 16 अगस्त 1987 को एक स्वीडिश अखबार ने एक व्हिसल ब्लोअर के हवाले से इस सनसनीखेज खबर का खुलासा किया था कि भारत के साथ तोप सौदे में बोफोर्स कंपनी ने भारत और स्वीडन के साथ कई देशों में बैठे लोगों को रिश्वत दी थी. इस खबर के ब्रेक होने के बाद पूरे देश में हंगामा मच गया. विपक्ष राजीव गांधी की सरकार को घेरने लगी थी. इस मामले में संसद में जेपीसी गठन कर जांच करवाने की मांग उठने लगी. उसी तरह से जैसे आज राफेल डील पर कांग्रेस जेपीसी की मांग कर रही है.

बोफोर्स तोप सौदे में दलाली की खबरों पर हंगामे के बीच 20 अप्रैल 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी संसद में जवाब देने के लिए खड़े हुए थे. लोकसभा के सांसदों को संबोधित करने हुए वो बोले- ‘आप मुझे कोई एक सबूत दिखा दो कि इस डील में कोई मिडिलमैन शामिल रहा हो या किसी को घूस दी गई हो, हम एक्शन लेंगे और हम ये देखेंगे कि कोई भी, चाहे कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न हो, बचने न पाए.


इसके बाद भी बोफोर्स तोप सौदे में दलाली लेने के आरोपों पर सरकार को घेरने का सिलसिला थमा नहीं. आखिर में अगस्त 1987 में दलाली के आरोपों की जांच के लिए जेपीसी को गठित कर दिया गया. इसके अगले साल जेपीसी ने अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी और बोफोर्स तोप सौदे में कांग्रेस की सरकार को क्लीन चिट दे दी. जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि 155 एमएम के 400 तोपों की खरीद के लिए हुई 1700 करोड़ की डील में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है. यहीं से एक सवाल उठता है कि बोफोर्स तोप सौदे में जेपीसी की जांच हो गई लेकिन आज ऐसा क्यों है कि मोदी सरकार राफेल डील पर जेपीसी की जांच से बच रही है?

लोकसभा में राफेल डील पर जेपीसी जांच का अरुण जेटली ने दिया जवाब

इस सवाल का जवाब बुधवार को वित्तमंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में दिया. वित्तमंत्री अरुण जेटली सिलसिलेवार तरीके से राफेल डील पर पूछे जा रहे सवालों के जवाब दे रहे थे. अपने जवाब के आखिरी हिस्से में उन्होंने संसद को संबोधित करते हुए कहा कि अब मैं आपको बताता हूं कि इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी) यानी जेपीसी का गठन क्यों नहीं हो सकता.

वो बोले- ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जेपीसी की जरूरत ही क्या है? जेपीसी का गठन पॉलिसी के सवाल पर होता है. राफेल डील में जांच को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिसपर सुप्रीम कोर्ट पहले ही फैसला सुना चुकी है. जेपीसी में सांसद सबूतों से ज्यादा अपनी पार्टी लाइन के हिसाब से राय जाहिर करते हैं. इसलिए जेपीसी के नतीजों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.

अरुण जेटली बोफोर्स तोप सौदा दलाली मामले में गठित जेपीसी का उदाहरण देते हुए बोले कि बोफोर्स की जांच के लिए बी शंकरानंद की अगुवाई में जेपीसी बनी थी. ये साबित हो चुका है कि बोफोर्स में भ्रष्टाचार हुआ था, लेकिन जेपीसी ने बोफोर्स में कांग्रेस सरकार को क्लीन चिट दे दी थी. जेटली ने कहा कि बोफोर्स घोटाले में फंसे लोग जेपीसी की मांग कर रहे हैं, ताकि मोदी सरकार पर अभी तक जो भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे, जेपीसी के जरिए यह फर्जी आरोप सरकार पर लगाए जाएं. इसलिए सरकार जेपीसी की मांग को ठुकराती है.

राफेल फाइटर प्लेन, फोटो रॉयटर से

अरुण जेटली के जवाब के बाद ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के आरोपों की जांच पर जेपीसी का गठन कैसे हुआ था, जेपीसी ने किस तरह से इन आरोपों की जांच की थी और नतीजों पर पहुंचने के लिए जेपीसी ने किस आधार को चुना था? लोकसभा की ऑफिशियल वेबसाइट पर बोफोर्स तोप सौदे में गठित जेपीसी की जांच रिपोर्ट मौजूद है.

आखिर बोफोर्स तोप सौदे पर गठित जेपीसी जांच में क्या हुआ था?

राजीव गांधी सरकार में रक्षा मंत्री केसी पंत ने लोकसभा में 6 अगस्त 1987 को जेपीसी का प्रस्ताव दिया. एक हफ्ते बाद 12 अगस्त को राज्यसभा ने भी इस पर मुहर लगाई. जिसके बाद सरकार ने कांग्रेस नेता बी शंकरानंद के चेयरमैनशिप में जेपीसी गठित कर दी. इस कमिटी में लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 मिलाकर कुल 30 सांसद थे. कमिटी ने 50 बैठकों में अपनी जांच पूरी की और 26 अप्रैल 1988 को अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी.

जेपीसी ने अपनी 242 पन्नों की रिपोर्ट में 15 बिंदुओं में अपने नतीजे बताए.

जेपीसी की रिपोर्ट के सबसे अहम बिंदु इस तरह से थे-

-कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि हमें ये पूर्ण विश्वास है कि बोफोर्स तोप का चयन पूरी तरह से स्वच्छ और पारदर्शी तरीके से हुआ. तोप की तकनीकी परख में कोई गड़बड़ी नहीं हुई और पूरी प्रक्रिया का पालन हुआ.

-टेक्निकल और ऑपरेशनल पैरामीटर में बोफोर्स तोप पूरी तरह से सक्षम और कारगर है.

-तोप सौदा करवाने वाली कमिटी ने सप्लायर्स के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा करवाकर कंपनी का चुनाव किया. बोफोर्स के कारोबारी समझौते में कीमतें और कॉन्ट्रैक्स के दूसरे टर्म तय करते वक्त किसी मिडिलमैन की भूमिका नहीं पाई गई. जिसके नतीजे में सरकार सबसे कम कीमतों और बेहतरीन फायनेंसियल टर्म्स पर डील करने में कामयाब रही.

-बोफोर्स तोप कॉन्ट्रैक्ट में पूरी तरह से फायनेंसियल और परफॉ़र्मेंस की गारंटी दी गई है. वांरटी बॉन्ड के जरिए बैंक गारंटी भी दी गई है.

-मीडिया में जिस तरीके से प्रचारित था, इस डील में चयन से लेकर सेलेक्शन तक किसी भी स्तर पर घूस या दलाली नहीं दी गई.

-सबूतों के आधार पर कमिटी ने अपनी जांच में पाया है कि बोफोर्स तोप का चयन पूरी तरह से मेरिट पर हुआ है.

-बोफोर्स ने जिन तीन कंपनियों को वाइंड अप कॉस्ट के तौर पर जो पैसे दिए, उसकी जानकारी देने में असमर्थता जाहिर की. बोफोर्स का कहना था कि इस बारे में जानकारी देना इन कंपनियों के साथ हुए कारोबारी करार का उल्लंघन होगा. एटार्नी जनरल के सुझाव पर कमिटी ने इस बारे में दिए गए बोफोर्स की बयान को संतोषजनक पाया गया.

-बोफोर्स ने किसे वाइंड अप कॉस्ट के नाम पर पैसे दिए, इसके बारे में सबूतों के साथ जानकारी देने के लिए कोई सामने नहीं आया. कमिटी को जो कानूनी सुझाव दिए गए उसके मुताबिक बोफोर्स इस बारे में जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है. इसमें फायदा पाने वाले की कोई जानकारी नहीं मिल पाई. ये भी पता नहीं चल पाया कि फायदा पाने वाला कोई भारतीय था या विदेशी.

-सिर्फ संदेह के आधार पर कि इस डील में कोई मिडिलमैन है, इस मामले में किसी भी तरह की जांच या कॉन्ट्रैक्ट को कैंसिल की जरूरत नहीं है. यही देश के अटॉर्नी जनरल की भी राय है.

इन नतीजों के साथ बोफोर्स जांच पर गठित जेपीसी ने कांग्रेस सरकार को दलाली के सारे आरोपों से बरी कर दिया. कांग्रेस सरकार के लिए राहत की बात थी. हालांकि विपक्ष ने जेपीसी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. जेपीसी में शामिल ज्यादातर सांसद कांग्रेस के थे. इसी सवाल को उठाते हुए विपक्ष ने संसद में इस जांच रिपोर्ट के नतीजों को मानने से इनकार कर दिया. इसी बात का हवाला बुधवार को वित्तमंत्री अरुण जेटली लोकसभा में कर रहे थे.

बोफोर्स तोप

जेपीसी जांच में कांग्रेस सरकार को बरी कर दिया गया. लेकिन तोप सौदे में दलाली को लेकर कांग्रेस सरकार बदनाम हो चुकी थी. जिसका नतीजा उसे अगले लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा. कांग्रेस बहुमत नहीं जुटा पाई और विपक्ष ने जोड़-तोड़ से सरकार बना ली. बोफोर्स की बदनामी का दाग कांग्रेस को ले डूबा.

एक तथ्य ये भी है कि अब तक 6 बार अलग-अलग मामलों पर जेपीसी का गठन हुआ है. और हर बार जिस सरकार में जेपीसी बनी अगले चुनाव में उसकी वापसी नहीं हुई. मोदी सरकार के लिए यही डर बना है. राफेल डील अभी तक विपक्ष का आरोप भर है. इस मामले में जेपीसी गठित करना आरोपों को ज्यादा मजबूती प्रदान करेगा. इसलिए मोदी सरकार जेपीसी से बच रही है.