view all

राफेल डील विवाद: संजय भंडारी के खिलाफ ना तो UPA सरकार ने कार्रवाई की और ना ही NDA सरकार ने

जांचकर्ताओं ने साल 2013 की शुरुआत से शुरू हुई 17 महीने लंबी जांच में भंडारी के खिलाफ महत्वपूर्ण सबूत इकट्ठा कर लिए थे

Yatish Yadav

हथियार डीलर संजय भंडारी के खिलाफ एक जांच, जो मौजूदा राफेल विवाद से जुड़ी हुई है, को साल 2013 में यूपीए-2 द्वारा खामोशी से दफन कर दिया गया था. हालांकि, एनडीए सरकार भी भरपूर सबूतों के बावजूद खामोश रहने के लिए उतनी ही दोषी है और आखिरकार भंडारी 2016 के अंत में सुरक्षा एजेंसियों की नाक के नीचे से लंदन चले गए. फ़र्स्टपोस्ट को हासिल दस्तावेजों के मुताबिक संजय भंडारी के खिलाफ नियमित जांच 2013 में 6-10 फरवरी के दौरान बेंगलुरू में आयोजित एयरो इंडिया शो के तुरंत बाद शुरू हुई थी.

इस कदम से पहले, तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा भंडारी के संदिग्ध सौदों को लेकर 12 जनवरी 2013 को प्रारंभिक जांच शुरू की गई थी. भंडारी के स्वामित्व वाली तीन कंपनियां- ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड, माइक्रोमेट-एटीआई और अवाना सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड पर राफेल लड़ाकू विमान के निर्माता दसॉल्ट समेत विभिन्न रक्षा सौदों में कथित तौर पर कमीशन प्राप्त करने को लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में आई थीं.


मई 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने से ठीक पहले जांच को रोक दिया गया था. उस साल के अंत में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जांच दोबारा शुरू की गई जिसका अंत अप्रैल 2016 में आयकर छापे के रूप में हुआ. भंडारी को दोषी ठहराने वाले दस्तावेजों का विशाल जखीरा इकट्ठा कर लेने के बावजूद कार्रवाई में देरी हुई.

अंत में, अक्टूबर 2016 में भंडारी को शासकीय गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) के तहत आरोपित किया गया और दो महीने बाद ही वह वाया नेपाल लंदन भाग गए. सत्तारूढ़ बीजेपी अब राफेल निर्माता के साथ भंडारी के संबंधों को लेकर जाग गई है, लेकिन जनवरी 2013 में शुरुआती जांच शुरू होने के बाद से ही एजेंसियों को फ्रांसिसी रक्षा कंपनियों में उनके दखल के बारे में पता था.

2013 के एक गुप्त नोट में कहा गया था: 'इस समूह की कंपनियों (भंडारी के स्वामित्व वाली) के माध्यम से हजारों करोड़ रुपये के दसॉल्ट मिराज अपग्रेड प्रोग्राम संपन्न हुए हैं. दसॉल्ट, एमबीडीए और थाल्स जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से कमीशन का भुगतान किया गया है. इन सभी फ्रांसिसी कंपनियों ने कंसल्टेंसी के नाम पर भंडारी की फर्मों को भुगतान किया. ऑफसेट अनुबंधों के तहत, फर्जी बिलिंग के माध्यम से बड़ी मात्रा में कमीशन का भुगतान किया गया है.'

राफेल लड़ाकू विमान

भंडारी नई दिल्ली के पंचशील पार्क में एक ही कार्यालय से 6 और कंपनियां चला रहे थे, जबकि लंदन में उनके रिश्तेदार से जुड़ी एक कंपनी ओआईएस यूरोप लिमिटेड को भंडारी के आवास और कार्यालय परिसर पर आयकर के छापे के फौरन बाद बंद कर दिया गया था.

नोट में यह भी कहा गया है कि रक्षा एजेंटों पर प्रतिबंध के बावजूद, अधिकांश रक्षा सौदों को मध्यस्थ प्रभावित करते रहते हैं और आयकर विभाग को विभिन्न कंसल्टेंसी फर्मों का इस्तेमाल करके एजेंटों द्वारा भारतीय वायु सेना की महत्वपूर्ण खरीद में कर चोरी की जांच करनी चाहिए.

'विदेशी रक्षा कंपनियां इनकी सेवाएं लेने से हिचकती नहीं हैं. कंसलटेंसी की आड़ में काम कर रहे सभी डिफेंस एजेंट सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम के सेवानिवृत्त अधिकारी और यहां तक कि सरकार में पहुंच रखने वाले नौकरशाहों को अपने यहां तनख्वाह पर रखते हैं.'

जांचकर्ताओं को संदेह था कि भंडारी एयरोस्पेस, रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में काम करने वाली एक और फ्रांसिसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए भी काम कर रहे थे. उन्होंने वर्ष 2013 की शुरुआत से शुरू हुई 17 महीने लंबी जांच के दौरान कई विदेशी रक्षा कंपनियों, राजनेताओं और यहां तक कि यूपीए के वित्त मंत्रालय में एक खास शक्तिशाली नौकरशाह के साथ भंडारी के संबंध स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण सबूत इकट्ठा कर लिए थे. हैरानी की बात है कि ना तो यूपीए ना ही एनडीए सरकार ने कोई कार्रवाई की.