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पंजाब के युवाओं का पलायन पार्ट-1: जिंदगी खतरे में डाल नौकरी ढूंढ रहे युवा

पंजाब में अर्ध-कुशल या अकुशल नौजवानों का रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में खाड़ी के देशों में दशकों से जाने का सिलसिला कायम है

Arjun Sharma

Editor's note: 20 मार्च को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में घोषणा की कि पिछले साल इराक के मोसुल में अगवा किए गए 39 भारतीयों को इस्लामिक स्टेट ने मार दिया था, इनमें से अधिकतर पंजाब से थे. पंजाब में भयंकर बेरोजगारी की स्थिति में राज्य के गरीब और बेरोजगार युवा कई तरीकों के खतरों को नजरअंदाज करते हुए नौकरी की तलाश में खाड़ी देशों में जाते हैं. इस सीरीज में हम इस इलाके के बेरोजगारों के पलायन की स्थिति पर विश्लेषण कर रहे हैं.

इस साल 28 जनवरी के दिन जेद्दा से रियाद जाते हुए रास्ते में 48 वर्षीय बलजीत सिंह को हार्टस्ट्रोक (ह्दयाघात) आया. बलजीत की मौके पर ही मौत हो गई लेकिन बरनाला जिले के धनौला में रहने वाल परिवार-जन को उसकी मृत देह तीन महीने बाद भी नहीं मिल सकी. बलजीत की पत्नी परमजीत कौर और मां बलजिंदर कौर को इसके लिए बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ी, कई ठिकानों के चक्कर काटने पड़े.


बलजीत ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था, उसे सिर्फ ड्राइविंग आती थी और मौत से दो महीने पहले ही उसने नौकरी बदली थी. अभी उसका एम्पलॉमेंट कार्ड नहीं बन पाया था सो उसकी मृत देह को वापस स्वदेश भिजवाने की जिम्मेदारी ना तो उसके पिछले नियोक्ता (एम्पलॉयर) ने उठाई और ना ही उसके वर्तमान नियोक्ता ने.

युवा खाड़ी देशों में कर रहे हैं पलायन

पंजाब में रोजगार के अवसर कम हो गए हैं सो कम आमदनी वाले परिवारों के अर्ध-कुशल या अकुशल नौजवानों का रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में बहरीन, इराक, ओमान, कुवैत, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी के देशों में दशकों से जाने का सिलसिला कायम है. वे इन देशों में राजमिस्त्री, बढ़ई, ड्राइवर, प्लंबर, निर्माण मजदूर और दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं. इस क्रम में एजेंट उनसे अक्सर चालबाजी करते हैं. वे उन्हें ऐसे कामों में लगा देते हैं जहां कामकाज के हालात अच्छे नहीं होते और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं होती कि नौकरी अगले कुछ समय तक स्थाई बनी रहेगी.

सऊदी अरब में 25 साल बिता लेने के बाद बलजीत हमेशा के लिए धनौला लौट आने की तैयारी में लगा था. उसकी मां ने कहा कि परिवार के पास बस एक एकड़ जमीन है और इतनी जमीन परिवार के भरण-पोषण के लिहाज से नाकाफी है. बलजिंदर का कहना है, 'बलजीत मुझसे हमेशा कहता था कि मैं अपनी बेटी और बेटे को शिक्षित बनाना चाहता हूं. इसी चाह में वह सऊदी अरब गया. इस साल वह हमेशा के लिए वापस लौट आने की योजना बना रहा था. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था शायद.'

इस बीच सांसद भगवंत मान की कोशिशों से मामला विदेश मंत्रालय की नजर में आया और बलजीत की मृत देह को जल्दी स्वदेश वापस लाने की कोशिशें हो रही हैं.

खेती-बाड़ी में नहीं है कोई भविष्य

प्रभजोत सिंह चार सालों से इराक में काम कर रहा था. साल 2015 के आखिर में वह जालंधर जिले के अपने गांव बग्गा में लौटा. एक साल पहले खबर आई थी कि उग्रवादियों के एक समूह इस्लामिक स्टेट ने इराक में 40 भारतीयों को बंधक बना लिया है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस साल 20 मार्च को इस बात की पुष्टि की कि बंधक बनाए गए उन भारतीयों में 39 अब इस दुनिया में नहीं हैं. इनमें से 27 व्यक्ति पंजाब के थे. प्रभजोत का कहना है कि 'तमाम खतरनाक हालात के बावजूद अकुशल कामगार नौजवानों के पास घर छोड़ने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है क्योंकि खेती-बाड़ी के काम में कोई भविष्य नहीं है और इस काम में मजदूरी भी कम है.'

चंडीगढ़ के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन रुरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (सीआरआरआईडी) में प्रोफेसर अश्विनी कुमार नंदा का कहना है कि पंजाब के अकुशल कामगार नौजवान देख रहे हैं कि विकसित देशों में जाने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है और झटपट कमाई की संभावनाएं नजर आने के कारण वे काम से जुड़े जोखिम की अनदेखी कर रहे हैं.

विदेश मंत्रालय के मुताबिक पिछले साल अगस्त में 10 से 12 हजार कामगार इराक पहुंचे. मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है 'इनमें ज्यादातर कामगार बसरा, नजफ और कर्बला के इलाके में पहुंचे हैं. सरकार ने एडवाइजरी जारी की थी कि भारतीय जन इराक ना जाए, यह एडवाइजरी 2004 से 2010 के मई तक जारी रही लेकिन अब यह एडवाइजरी हटा ली गई है. ऐसे में इरबिल, सुलेमानिया और दोहुक सरीखे कुर्दिस्तान के इलाके में भारतीय कामगार बड़ी तादाद में पहुंच रहे हैं. यहां इस्पात के कारखानों, तेल कंपनियों और निर्माण-कार्य की परियोजनाओं में कामकाज की स्थितियां बेहतर हैं और वेतन भी अच्छा मिलता है.'

बेरोजगारी दर के हिसाब से 8वें नंबर पर है पंजाब

नौजवान कामगारों की बेरोजगारी दर के लिहाज से पंजाब शीर्ष के आठ राज्यों में शुमार है. इंडिया स्पेन्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 'पंजाब के ग्रामीण इलाकों में नौजवानों में बेरोजगारी की दर 2015-16 में 16.6 प्रतिशत थी जो ग्रामीण भारत की बेरोजगारी दर (9.2 प्रतिशत) से सात गुना ज्यादा है.'

अर्थशास्त्री सूचा सिंह गिल का कहना है कि पंजाब में बीते दशकों में खेती-बाड़ी के काम में हुए मशीनीकरण के कारण नौजवान ग्रामीण इलाकों से बाहर जाने के लिए मजबूर हुए हैं. लेकिन औद्योगिक मोर्चे पर भी हालात कोई बेहतर नहीं हैं. फेडरेशन ऑफ स्मॉल स्केल इंडस्ट्रिज के प्रेसिडेन्ट बेदिश जिन्दल का कहना है कि पंजाब में बनने वाली सरकारों की आर्थिक नीतियां लगातार कमजोरी की शिकार रहीं और कोई पक्का आंकड़ा तो मौजूद नहीं है फिर भी आर्थिक नीतियों की कमजोरी के कारण एक अनुमान के मुताबिक बीते 10 सालों में लघु उद्योगों की 10 हजार से ज्यादा इकाइयां बंद हुई हैं.”

सूचा सिंह गिल का कहना है कि दूसरी जगह से पलायन करके आने वाले मजदूर पंजाब में सस्ती कीमत पर मौजूद हैं सो स्थानीय नौजवानों के लिए यहां अवसर बहुत कम रह गए हैं.

कांग्रेस के मेनिफेस्टो में थी बेरोजगारी की समस्या

पिछले साल पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी और पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि वह बेरोजगारी की समस्या से निबटने के प्रयास करते हुए साल 2017-2022 यानी पांच सालों के भीतर पंजाब के हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोजगार मुहैया कराएगी. जबतक तमाम चिह्नित बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल जाता, उन्हें 2500 रुपये का बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा. सूबे में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चार लाख नौजवानों ने इस योजना में अपना नाम दर्ज करवाया और राज्य में कायम बेरोजगारी के हालात की गंभीरता उजागर हो गई. यह बात कांग्रेस पार्टी के लिए चुनावों में काम करने वाली टीम के एक सदस्य ने बताई.

ऐसे हालात के मौजूद रहते खाड़ी के देश पंजाब के नौजवानों के लिए रोजगार के लिहाज से एक आकर्षक गंतव्य बने हुए हैं. बरनाला जिले के करमजीत सिंह कारपेंटर हैं और उन्होंने दुबई में तीन सालों तक काम किया है. करमजीत सिंह बताते हैं कि पंजाब में दिहाड़ी मजदूरी करने वालों को महीने में पांच हजार रुपए बचा लेने के लिए भी बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं. वे कहते हैं कि 'खाड़ी के देशों में आपको रहने-ठहरने और भोजन की सुविधा कंपनी की तरफ से मिलती है और आप काफी रकम बचा सकते हैं. वहां कंपनियां ओवरटाइम का अलग से भुगतान करती है, लेकिन यहां ओवरटाइम के लिए भुगतान का आम चलन नहीं है.'

इस साल मार्च में लुधियाना में एक जॉब-मेला लगा. इसमें पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले साल में 1.61 लाख रोजगार के नए अवसर सृजित किए हैं, लेकिन उनकी बात से ज्यादातर लोग इत्तेफाक नहीं रखते. विपक्षी आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता सुखपाल सिंह खैरा का कहना है कि सरकार ऐसा माहौल नहीं बना पाई है कि उसमें रोजगार के अवसर पैदा हो सकें.

(लुधियाना में रहने वाले अर्जुन शर्मा फ्रीलांस लेखक तथा 101रिपोर्टर.कॉम के सदस्य हैं. 101रिपोर्टर.कॉम जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग करने वाले संवाददाताओं का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है. यहां पेश आलेख में बरनाला के सुखचरण प्रीत से प्राप्त कुछ सूचनाओं का उपयोग हुआ है.)