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घाटी को दोबारा जन्नत बनाने के लिए पाकिस्तान की 'सर्जरी' के साथ अलगाववादियों का भी 'इलाज' जरूरी

कश्मीर को 'मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर' से बचाने के लिए जरूरी है कि अब कि पाकिस्तान के साथ घाटी के अलगाववादियों का भी इलाज 'सर्जरी' से किया जाए

Kinshuk Praval

कश्मीर में आतंकवाद के 30 साल के इतिहास में सबसे बड़ा हमला हुआ है. हमले से देश में शोक और आक्रोश की लहर एक साथ चल रही है. अपने 42 जवानों को खोने के बाद सीआरपीएफ ने कहा है कि वो न तो भूलेंगे और न माफ करेंगे. गम और गुस्से के माहौल में एक एक जवान के खून की कीमत का बदला लेने के लिए मुल्क का खून खौल रहा है.

पीएम मोदी ने पाकिस्तान का बिना नाम लिए कहा कि, ‘आप बहुत बड़ी गलती कर चुके हैं और उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी,’ इससे समझा जा सकता है कि अब पाकिस्तान के साथ आर-पार का निर्णायक मोड़ आ चुका है. पीएम ने कहा कि देश के सुरक्षा बल को पूरी छूट दे दी गई है. इससे सोचा जा सकता है कि पुलवामा हमले के गुनहगारों तक पहुंचने के लिए सेना और सुरक्षा बल अपनी कार्रवाई को किस हद तक ले जा सकेंगे.


लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि इस दौरान क्या घाटी में आतंकवादियों की फसल तैयार करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी? दरअसल, शहीदों के गुनहगार सिर्फ हमलावर ही नहीं बल्कि वो जिहादी और अलगाववादी भी हैं  जिन्होंने टेरर फंडिंग के जरिए घाटी में युवाओं को भटकाकर और बरगलाकर आतंक की राह पर चलने को मजबूर किया. ये कट्टरपंथी अलगावादी कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे का फायदा उठाते हुए भारत सरकार और सेना के खिलाफ जहर उगलने का लगातार काम करते हैं तो घाटी में पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी का राग अलापकर युवाओं को भड़काते रहे हैं.

सवाल ये भी है क्या अब पत्थरबाजों की उस बेकाबू और वहशी भीड़ के खिलाफ भी कोई कार्रवाई होगी जो कि सेना का काफिले पर पत्थर बरसाती है या फिर किसी आतंकवादी को पकड़ने गई सेना के कॉम्बिंग ऑपरेशन में गतिरोध पैदा करती है या फिर डीएसपी अयूब पंडित जैसे किसी अधिकारी की पीट-पीट कर हत्या कर देती है ? क्या अब कार्रवाई उन लोगों पर होगी जो कि घाटी में जुमे की नमाज के बाद पाकिस्तान और आईएस के झंडे लहराते हैं?

पुलवामा हमले के पीछे पाकिस्तानी साजिश को अंजाम तक पहुंचाने में स्लीपर-सेल की बड़ी भूमिका है. वहीं घाटी में स्लीपर-सेल को एक्टिव बनाने में कट्टरपंथी अलगाववादियों की बड़ी भूमिका है. कश्मीर में बैठे इन कट्टरपंथी अलगाववादियों की फितरत ऐसी कि जो भारत इनकी हिफाजत में करोड़ों रुपये खर्च करता है उसी के खिलाफ साजिश में ये पाकिस्तान से करोड़ों रुपये टेरर फंडिंग के लिए लेते हैं.

घाटी में जब NIA ने टेरर फंडिंग के मामले में कार्रवाई करते हुए अलगाववादियों को बेनकाब किया तो खुलासा हुआ कि किस तरह पाकिस्तान से हवाला के जरिए कश्मीर में बैठे अलगाववादियों को करोड़ों रुपये मिला करते थे. उन पैसों का इस्तेमाल घाटी में युवाओं को बरगलाने, पत्थर फेंकने और घाटी में दहशतगर्दी फैलाने के लिए किया जाता था. टेरर फंडिंग के जरिए भटके हुए युवाओं को सौ और पांच सौ रुपये थमा कर पत्थरबाजी कराई जाती थी तो सेना के खिलाफ लोकल इनपुट्स लेने और सेना के किसी कॉम्बिंग-ऑपरेशन में बाधा उत्पन्न करने के लिए स्थानीय खास लोगों की मदद ली जाती थी.लेकिन एनआईए ने अलगाववादियों की कमाई की कमर तोड़ दी. घाटी में बढ़ती आतंकी घटनाओं को देखकर साफ हो जाता है कि NIA की कार्रवाई का बदला किस किस रूप में लिया जा रहा है.

एक तरफ जहां जम्मू-कश्मीर में सेना बेहद मुश्किल हालातों में और जान की कीमत पर मुल्क की हिफाज़त में अपना फर्ज निभा रही है तो दूसरी तरफ घाटी में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो कि घुसपैठिए आतंकियों का बाहें फैलाए स्वागत कर उन्हें पनाह दे रहे हैं.

कश्मीरियत और कश्मीरी हक की बात करने वाले सियासी चेहरे घाटी में हिंसा पर रोक लगाने के लिए पाकिस्तान से मदद लेने की सलाह दे रहे हैं तो पाकिस्तान से बातचीत को जरूरी बता रहे हैं. तीस साल से ऐसे ही लोगों की जमात घाटी के हालात को बदतर बनाने के लिए जिम्मेदार है.

आज सवाल जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से भी पूछा जाना चाहिए कि जवानों के बलिदान के लिए वो पाकिस्तान को गुनगहार मानती हैं या नहीं? महबूबा मुफ्ती ने ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कहा था कि कश्मीर के हालात सुधारने के लिए पाकिस्तान से बातचीत जरूरी है. हाल ही में महबूबा मुफ्ती ने संसद पर हमले के गुनहगार रहे अफजल गुरू के शव को कश्मीर लाने की मांग की थी. एक आतंकवादी पर हमदर्दी दरअसल कश्मीर की सियासत का हिस्सा रही है. इससे पहले शोपियां फायरिंग के मामले में महबूबा मुफ्ती की सरकार सेना के जवान के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा चुकी थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें फटकार भी मिली थी.

पुलवामा हमले के कई घंटों बाद भी पाकिस्तान के नए वजीरे आजम का कोई बयान न आना कई सवाल खड़े करता है. आखिर इमरान खान की चुप्पी की क्या वजह है?  क्या इमरान भी सत्ता में आने के बाद पहली बार ये जान सके हैं कि आईएसआई असल में चीज़ क्या है?

अमेरिका भी ये मान चुका है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों में गहरी सांठगांठ है. ऐसे में क्या अब इमरान आईएसआई की पुलवामा हमले में भूमिका को लेकर नई कहानी और बहाना बनाने में जुटे हैं?

पाकिस्तान के रिकॉर्ड को देखते हुए ही अमेरिकी रक्षा विभाग के एक पूर्व अधिकारी माइकल रूबिन ने भी पाकिस्तान को आतंकी संगठनों को प्रायोजित करने वाला देश बताया था. उन्होंने कहा था कि आईएसआई लगातार तालिबान को मदद दे रहा है जबकि पाकिस्तानी सरकार जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को पनाह दे रही है. अमेरिका ने भी ये कहा था कि जरूरत पड़ने पर अमेरिका पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को खत्म करने से नहीं हिचकेगा.

ऐसे में अब वक्त आ चुका है कि पाकिस्तान पर दुनिया को संयुक्त रूप से किसी सख्त कार्रवाई का फैसला करना चाहिए क्योंकि ये सिर्फ खतरा हिंदुस्तान के लिए नहीं बल्कि समूची दुनिया के लिए है. अगर उत्तरी कोरिया की परमाणु मिसाइलों से पूरी दुनिया पर खतरा हो सकता है तो फिर आतंकी संगठनों को जमीन देने और ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों को पनाह देने वाले पाकिस्तान के परमाणु हथियार से दुनिया को खतरा क्यों नहीं हो सकता?

वैसे भी अमेरिका कई दफे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को लेकर चिंता जता चुका है. ऐसे में अब ये सही वक्त है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय निगरानी के हवाले सौंप कर पाकिस्तान के ब्लैकमेल से दुनिया को बचाने का काम किया जाए.

दुनिया ये जान चुकी है कि एक तरफ भारत आजादी के बाद शांति और तरक्की की राह पर किस तरह आगे बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान तबाही के रास्ते पर चलकर आतंक की नर्सरी तैयार करने में जुटा हुआ है. बहरहाल, सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की बैठक में पाकिस्तान को व्यापार क्षेत्र में बड़ा झटका देते हुए मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया गया. वहीं पीएम मोदी ने कहा कि पाकिस्तान जो गलती कर चुकी है उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. ऐसे में क्या माना जाए कि पुलवामा हमला पाकिस्तान के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा?