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PM मोदी ने 44वीं बार की अपने 'मन की बात', जानिए 10 बड़ी बातें

प्रधानमंत्री ने कटक के प्रकाश राव नाम के एक चाय बेचनेवाले की तारीफ करते हुए जिक्र किया कि वो अपनी आय का 50 प्रतिशत बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन की व्यवस्था करने में करते हैं

FP Staff

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को आकाशवाणी के जरिए 'मन की बात' की और राष्ट्र को संबोधित किया. इस रेडियो कार्यक्रम का यह 44वां संस्करण था. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के सभी नेटवर्क पर सुबह 11 बजे इस कार्यक्रम का प्रसारण किया गया.

प्रधानमंत्री ने मन की बात की शुरुआत भारतीय नौ-सेना की 6 महिला कमांडरों की ओर से 250 से भी ज्यादा दिन समुद्री मार्ग से आईएनएसवी तारिणी में पूरी दुनिया की सैर कर 21 मई को भारत वापस आने पर उन्हें नौ सेना और भारत का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए बधाई देते हुए की.


यह है आज के 'मन की बात' की मुख्य बातें 

-सेंस ऑफ एडवेंचर कौन नहीं जानता. अगर हम मानव जाति की विकास यात्रा देखें तो किसी न किसी एडवेंचर की कोख में ही प्रगति पैदा हुई है. विकास एडवेंचर की गोद में ही तो जन्म लेता है. कुछ कर गुजरने का इरादा, कुछ लीक से हटकर करने का मायना, कुछ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी करने की बात, मैं भी कुछ कर सकता हूं-ये भाव, करने वाले भले कम हों लेकिन युगों तक कोटि-कोटि लोगों को प्रेरणा मिलती रहती है.

-जब मैं फिट इंडिया की बात करता हूं तो मैं मानता हूं कि जितना हम खेलेंगे, उतना ही देश खेलेगा. सोशल मीडिया पर लोग फिटनेस चैलेंज का वीडियो शेयर कर रहे हैं. उसमें एक-दूसरे को टैग कर उन्हें चैलेंज कर रहे हैं. फिट इंडिया के इस अभियान से आज हर कोई जुड़ रहा है. चाहे फिल्म से जुड़े लोग हों, स्पोर्ट्स से जुड़े लोग हों या देश के आम-जन, सेना के जवान हों, स्कूल टीचर हों, चारों तरफ से एक ही गूंज सुनाई दे रही है-हम फिट तो इंडिया फिट.

-सदियों से एवेरेस्ट मानव जाति को ललकारता रहा है और बहादुर लोग इस चुनौती को स्वीकारते भी रहे हैं. 16 मई को महाराष्ट्र के चंद्रपुर के आश्रम-स्कूल के 5 आदिवासी बच्चों–मनीषा धुर्वे, प्रमेश आले, उमाकांत मडवी, कविदास कातमोड़े, विकास सोयाम ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई की है.

-ये बात सही है कि जो खेल कभी गली-गली, हर बच्चे के जीवन का हिस्सा होते थे, वे आज कम होते जा रहे हैं. ये खेल खासकर गर्मी की छुट्टियों का विशेष हिस्सा होते थे.

कुछ खेल तो ऐसे भी हैं, जो पूरा परिवार साथ में खेला करता था– पिट्ठू हो या कंचे हो, खो-खो हो, लट्टू हो या गिल्ली-डंडा हो, न जाने कितने ही अनगिनत खेल कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से कामरूप तक हर किसी के बचपन का हिस्सा हुआ करते थे.

हम में से शायद ही कोई हो जिसने बचपन में गिल्ली-डंडा न खेला हो. ये तो गांव से लेकर शहरों तक में खेले जाने वाला खेल है. आंध्रप्रदेश में इसे गोटिबिल्ला या कर्राबिल्ला के नाम से जानते हैं. उड़ीसा में गुलिबाड़ी तो महाराष्ट्र में इसे वित्तिडालू कहते हैं.

-मुझे विश्वास है कि सभी लोग ईद को पूरे उत्साह से मनाएंगे. इस अवसर पर बच्चों को विशेष तौर पर अच्छी ईदी भी मिलेगी. आशा करता हूं कि ईद का त्योहार हमारे समाज में सद्भाव के बंधन को और मजबूती प्रदान करेगा. सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं.

अब से कुछ दिनों बाद लोग चांद की भी प्रतीक्षा करेंगे. चांद दिखाई देने का अर्थ यह है कि ईद मनाई जा सकती है. रमजान के दौरान एक महीने के उपवास के बाद ईद का पर्व जश्न की शुरुआत का प्रतीक है.

-मैं टी.वी. पर एक कहानी देख रहा था. राजस्थान के सीकर की कच्ची बस्तियों की हमारी गरीब बेटियों की. हमारी ये बेटियां, जो कभी कचरा बीनने से लेकर घर-घर मांगने को मजबूर थीं - आज वे सिलाई का काम सीख कर गरीबों का तन ढकने के लिए कपड़े सिल रही हैं.

यहां की बेटियां, आज अपने और अपने परिवार के कपड़ों के अलावा सामान्य से लेकर अच्छे कपड़े तक सिल रही हैं. वे इसके साथ-साथ कौशल विकास का कोर्स भी कर रही हैं. हमारी ये बेटियां आज आत्मनिर्भर बनी हैं.

-कल ही मुझे डी. प्रकाश राव से मिलने का सोभाग्य मिला. श्रीमान डी. प्रकाश राव पिछले पांच दशक से शहर में चाय बेच रहे हैं. एक मामूली सी चाय बेचने वाला, आज आप जानकर हैरान हो जाएंगे 70 से अधिक बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा भर रहा है.

उन्होंने बस्ती और झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए ‘आशा आश्वासन’ नाम का एक स्कूल खोला. जिस पर ये गरीब चाय वाला अपनी आय का 50% धन उसी में खर्च कर देता है. वे स्कूल में आने वाले सभी बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन की पूरी व्यवस्था करते हैं. में डी. प्रकाश राव की कड़ी मेहनत, उनकी लगन और उन गरीब बच्चों के जीवन को नई दिशा देने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं.

--प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना, प्रकृति की रक्षा करना, यह हमारा सहज स्वभाव होना चाहिए, हमारे संस्कारों में होना चाहिए. पिछले कुछ हफ्तों में हम सभी ने देखा कि देश के अलग-अलग क्षेत्रों में धू-आंधी चली, तेज हवाओं के साथ भारी बारिश हुई जो कि अनसीजनल है. यह सारी चीजें मूलतः वेदर पैटर्न में बदलाव के कारण है.

-अभी पिछले दिनों ‘स्वच्छ गंगा अभियान’ के तहत बीएसएफ के एक ग्रुप ने एवेरेस्ट की चढ़ाई की, पर पूरी टीम एवेरेस्ट से ढेर सारा कूड़ा अपने साथ नीचे उतार कर लाई. यह कार्य प्रशंसनीय तो है ही, साथ-ही-साथ यह स्वच्छता के प्रति, पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है.

- वर्षों से लोग एवरेस्ट की चढ़ाई करते रहे हैं और ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने सफलतापूर्वक इसे पूरा किया है. मैं इन सभी साहसी वीरों को, खासकर के बेटियों को ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं.