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कोविंद को जिताने की रणनीति रही सुपरहिट, क्रॉस वोटिंग से विपक्षी एकता का फूटा गुब्बारा

राष्ट्रपति चुनाव में दलित कार्ड खेलकर विपक्ष ने अपनी कमजोरी को सार्वजनिक कर दिया है.

Kinshuk Praval

एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ऐतिहासिक जीत के साथ देश के 14वें राष्ट्रपति चुने गए. रामनाथ कोविंद को 66 फीसदी वोट मिले जबकि यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार को 34 फीसदी वोट मिले. रामनाथ कोविंद को 7 लाख 2 हजार 44 वोट मिले जबकि मीरा को 3 लाख 67 हजार 314 वोट मिले. सांसदों और 11 राज्यों के मतों की गिनती के दौरान 37 वोट अमान्य करार दिए गए.

जमकर हुई क्रॉस वोटिंग


राष्ट्रपति चुनाव से जो एक खास तस्वीर सामने आई, वो क्रॉस वोटिंग की रही. हालांकि यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार क्रॉस वोटिंग से इत्तेफाक नहीं रखतीं. उनका कहना है कि क्रॉस वोटिंग की जगह अंतरात्मा की आवाज पर वोटिंग कहना ज्यादा ठीक होगा.

ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में देशभर में एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के लिए अंतरात्मा की आवाज पर वोटिंग दिखाई दी. सिर्फ केरल को छोड़ दें तो हर राज्य से एनडीए के लिए सांसदों-विधायकों ने अंतरात्मा की आवाज पर कोविंद को ही अपना राष्ट्रपति चुना.

कहां हुई सबसे ज्यादा क्रॉस वोटिंग?

सबसे ज्यादा गुजरात और गोवा में एनडीए के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की खबर है जिसका निश्चित तौर पर कोविंद को फायदा पहुंचा है. गुजरात में रामनाथ कोविंद को 132 वोट और मीरा कुमार को 49 वोट मिले. जबकि गुजरात में बीजेपी विधायकों की तादाद 121 है. हालांकि यहां बीजेपी विधायक नलिन कोटडिया ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ वोट देने का ऐलान किया था. इसके बावजूद कोविंद के लिये यहां जमकर क्रॉस वोटिंग हुई.

यही हाल गोवा का भी रहा. गोवा में रामनाथ कोविंद को 25 वोट मिले और मीरा कुमार को मात्र 11वोट ही मिल सके.

पहले राउंड से ही कोविंद ने बढ़ाई बढ़त

मतगणना के पहले राउंड के रुझान से ही कोविंद की विशाल बढ़त दिखाई देने लगी थी. एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद 60,683 वोटों के साथ रेस में आगे निकल चुके थे जबकि मीरा कुमार को 22941 ही वोट मिले थे. पहले राउंड में कोविंद को 552 सांसदों के वोट मिले जबकि मीरा कुमार के पक्ष में 225 सांसदों के वोट आए.

पहले राउंड में असम, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र और बिहार के वोटों की गिनती हुई. अरुणाचल प्रदेश में रामनाथ कोविंद को 448 वोट मिले जबकि मीरा कुमार को 24 वोट मिले.असम में रामनाथ कोविंद को 10556 वोट मिले तो मीरा कुमार को 4060 वोट मिले. बिहार में रामनाथ कोविंद को 22490 वोट मिले तो मीरा कुमार को 18867 वोट मिले.

राष्ट्रपति चुनाव के लिए बदले सियासी समीकरणों का सबसे बड़ा असर बिहार के महागठबंधन पर दिखाई दिया. बिहार में आरजेडी यूपीए उम्मीदवार मीरा कुमार के पक्ष में खड़ी थी जबकि जेडीयू ने कोविंद को समर्थन दिया. यहां की तस्वीर देखकर क्रॉस वोटिंग को साफ समझा जा सकता है. हालांकि जेडीयू और बीजेपी के कई नेताओं ने कोविंद के खिलाफ वोट देने का ऐलान किया था.

इसी तरह यूपी और पश्चिम बंगाल में समाजवादी पार्टी और टीएमसी समेत कई दलों के नेताओं ने पार्टी के फैसले के खिलाफ जा कर कोविंद को वोट देने का ऐलान किया .

त्रिपुरा में टीएमसी के 6 विधायकों ने कोविंद के पक्ष में वोटिंग का ऐलान कर बगावत कर दी. पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में ममता बनर्जी के लिए ये बड़ा झटका है. दिलचस्प बात ये है कि इन विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन करने तक का ऐलान कर दिया.

यूपी में शिवपाल गुट और मुलायम सिंह कोविंद के पक्ष में खड़े दिखे जबकि अखिलेश यादव ने मीरा कुमार का समर्थन किया. शिवपाल सिंह यादव ने दावा किया कि पार्टी के 11 से 15 विधायक क्रॉस वोटिंग कर रामनाथ कोविंद को वोट दे सकते हैं.

आंध्र प्रदेश में मीरा कुमार को सबसे बड़ा झटका मिला. यहां उन्हें एक भी वोट नहीं मिला है. आंध्रप्रदेश में रामनाथ कोविंद को 27189 वोट मिले.

हिमाचल प्रदेश में मीरा कुमार के लिए स्थिति ठीक रही और कांग्रेस की सरकार रहने का फायदा मिला. मीरा कुमार को यहां 37 वोट मिले जबकि कोविंद को केवल 13 वोट मिले.

जबकि जम्मू-कश्मीर और झारखंड में भी कोविंद की लहर दिखी. झारखंड में कोविंद को 51 जबकि मीरा कुमार को 26 वोट मिले. जम्मू-कश्मीर में कोविंद को 56 वोट मिले तो मीरा कुमार को 30 वोट मिले.

इस बार राष्ट्रपति चुनाव में पिछले 65 सालों के बाद 99 प्रतिशत वोटिंग हुई. कुछ राज्यों में तो 100 प्रतिशत तक वोटिंग हुई. मतदान में कुल 4,896 मतदाताओं ने वोट दिया. जिनमें 4,120 विधायक और 776 निर्वाचित सांसद शामिल हैं.

यूपी से देश का पहला राष्ट्रपति

कोविंद की जीत के साथ ही यूपी के इतिहास में देश को पहला राष्ट्रपति देने का अध्याय दर्ज हो गया. इस चुनाव से एक बार फिर विपक्ष की कमजोर रणनीति ही सामने आई. राष्ट्रपति चुनाव के बहाने एकजुट होने का दावा करने वाली विपक्षी पार्टियां स्वघोषित मूल्यों और विचारों की लड़ाई हार गईं. क्रॉस वोटिंग ये साबित करने के लिए काफी है कि विपक्ष अपने ही सांसदों और विधायकों को एकजुट नहीं कर सका. जहां एनडीए का इस ऐतिहासिक जीत के साथ मनोबल ऊंचा हुआ तो वहीं विपक्ष को अब अपनी रणनीति पर मंथन करने की जरूरत है. राष्ट्रपति चुनाव में दलित कार्ड खेलकर विपक्ष ने अपनी कमजोरी को सार्वजनिक कर दिया है.