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क्या कोयले की कमी के कारण दिल्ली-एनसीआर में गहरा सकता है बिजली संकट?

दिल्ली-एनसीआर सहित देश के कुछ हिस्सों में पावर कट को लेकर भारी समस्या खड़ी हो गई है.

Ravishankar Singh

दिल्ली-एनसीआर सहित देश के कुछ हिस्सों में पावर कट को लेकर भारी समस्या खड़ी हो गई है. बिजली की किल्लत से लोग परेशान नजर आ रहे हैं. खासकर दिल्ली-एनसीआर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में अगले कुछ दिनों तक बिजली आंख-मिचौली भी खेल सकती है. दिल्ली सरकार के ऊर्जा मंत्री ने दिल्लीवालों को आगाह किया है कि बिजली सप्‍लाई करने वाले पावर प्‍लांट में कोयले की कमी हो गई है जिसके चलते दिल्ली में बिजली संकट गहरा सकता है.

बीते शुक्रवार को ही सत्येंद्र जैन ने मीडिया से कहा था कि दिल्ली को बिजली सप्लाई करने वाली दादरी, झज्जर और बदरपुर पावर प्‍लांट में सिर्फ 20 घंटे की बिजली के लायक ही कोयला बचा है, जिसके बारे में केंद्र सरकार को पहले ही जानकारी दे दी गई है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए गए हैं.


सत्येंद्र जैन के मुताबिक बिजली देने वाले तीन प्लांटों से दिल्ली को 2 हजार 426 मेगावाट बिजली देने का प्रावधान है. इन प्‍लांटों में कम से कम 15-20 दिन का कोयला होना चाहिए, लेकिन हाल ये है कि इनमें एक दिन का कोयला भी नहीं है. फिलहाल इनमें अब 20 घंटे से भी कम समय का कोयला बचा है.

दिल्ली सरकार के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन का कहना है कि दिल्ली में बिजली का संकट गहराने की बात उन्होंने 17 मई को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को पत्र के जरिए बता दी थी, लेकिन इतने दिन बीत जाने के बाद भी पीयूष गोयल ने कोई कदम नहीं उठाया. सत्येंद्र जैन ने इसे मानवजनित आपदा करार दिया है.

बता दें कि इससे पहले एनटीपीसी दादरी ने तकनीकी कारणों से बंद पड़ी 490 मेगावाट की एक इकाई को रविवार को दोबारा से शुरू कर दिया था. यह इकाई 25 मई से बंद पड़ी थी. कोयले की कमी के कारण यह प्लांट अभी भी पूरी क्षमता से परिचालन में नहीं आया है और महज 60 प्रतिशत ही बिजली उत्पादन कर रहा है.

गर्मी के दिनों में बिजली संकट आम बात है. गर्मी में अमूमन बिजली की खपत पहले की तुलना में बढ़ जाती है. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है बिजली की डिमांड भी बढ़ने लगती है. दिल्ली में बीते सोमवार को ही बिजली की डिमांड 6 हजार मेगावाट से अधिक पहुंच गई. इस मौसम में पहली बार दिल्ली में बिजली की डिमांड यहां तक पहुंची है.

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में भी पिछले कुछ दिनों से पावर कट बढ़ गया है. गाजियाबाद के वैशाली इलाके में जहां सोमवार की रात को बिजली आंख-मिचौली खेलती नजर आई वहीं मंगलवार सुबह भी चार-पांच घंटों के लिए इस इलाके में बिजली गुल रही.

अगर देखा जाए तो पिछले साल की तुलना में दिल्ली-एनसीआर में बिजली की डिमांड्स में काफी बढ़ोतरी हुई है. जानकार मानते हैं कि इस बार दिल्ली-एनसीआर में बिजली की डिमांड पिछले सारे पुराने रिकॉर्ड्स को तोड़ देगी. इस समय पूरे एनसीआर में बिजली की डिमांड में पिछले साल की तुलना में 5 से 10 फीसदी का इजाफा हुआ है.

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी ने इस बारे में दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (डीईआरसी) के कई अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन सभी अधिकारी मंत्री के बयान पर कुछ बोलने से परहेज करते रहे. डीईआरसी चेयरमैन ऑफिस के एक अधिकारी ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहा, देखिए मंत्री के बयान पर डीईआरसी की तरफ से कोई बयान जारी नहीं होगा. कोयले की कमी के कारण बिजली पैदा नहीं होगी इसका रेगुलेटरी के साथ कोई ताल्लुक नहीं है. कोयला मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है. सभी बिजली जेनरेटिंग कंपनी के लिए सरकार को हर हाल में कोयला उपलब्ध कराना ही कराना है.

अधिकारी आगे कहते हैं, ‘डीईआरसी का बिजली जेनरेटिंग कंपनी से कोई ताल्लुक नहीं होता है. एनटीपीसी जैसी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ही बिजली मुहैया कराती है. सरकार का काम होता है कि वह कोयला मुहैया कराए. डीईआरसी एक रेगुलेटिंग कंपनी है, जिसका काम होता है डिस्ट्रीब्यूशन प्रोवाइड करने वाली कंपनी पर नजर रखना, टैरिफ प्लान निर्धारित करना. डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों की तरफ से जो मांगें भेजी जाती है डीईआरसी उसका ऑडिट करती है. इसी बेस पर टैरिफ फिक्सिंग की जाती है. इसके अलावा बिजली कंपनियों के आपस के विवादों को भी डीईआरसी सुलझाती है.’

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी ने दिल्ली सरकार के ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन से भी इस बारे में संपर्क करने की कोशिश की. सत्येंद्र जैन तो फोन पर नहीं आए लेकिन, उनके फोन को रजत नाम के व्यक्ति ने रिसीव किया. रजत से फ़र्स्टपोस्ट हिंदी ने कोयले को लेकर दिए गए बयान पर जानकारी हासिल करनी चाही तो रजत का जवाब था कि अभी तक केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल जी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. दिल्ली में अंधेरा छाने की वाली बात पर रजत का कहना था कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है.

अब सवाल यह उठता है कि दिल्ली में कोयले को लेकर वाकई में अंधेरा छाने वाला है? जब मंत्री के ही एक सहयोगी इस बात से कन्नी काट रहे हैं तो आखिर में यह बयान क्यों और किस परिस्थिति में दिया गया. इस जवाब को ढूंढने के लिए फर्स्टपोस्ट हिंदी ने एनटीपीसी के एक अधिकारी से बात की. उस अधिकारी का कहना था कि कोयला समय पर नहीं पहुंचने के कई कारण होते हैं. यह पहली बार नहीं हो रहा है, जब कोयले की किल्लत है. आप निश्चिंत रहे प्लांट बंद नहीं होने वाला है. राजनीतिक लोग अपने-अपने फायदे और नुकसान के हिसाब से इसका इस्तेमाल करते हैं.

कुल मिलाकर मौसम का मिजाज गर्म होने के बाद राजनेता भी बिजली को लेकर गर्मी और संदेह पैदा कर रहे हैं. बिजली का मीटर भी बिजली जेनरेट करनी वाली कंपनियों की पोल खोल रहा है. एक तरफ जहां तेज गर्मी और उमस भरी रात ने लोगों को परेशान कर रखा है. तो वहीं एक सप्ताह पहले जो फीडर 50-60 एम्पीयर अधिकतम लोड पर चलते थे, आज उन पर लोड बढ़ कर 150 एम्पीयर तक हो गए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर ( रॉयटर्स इमेज )

डिमांड में अचानक आई इस तेजी ने लोगों का बुरा हाल कर रखा है. गांव-गांव और शहर-शहर के लोग बिजली को लेकर परेशान नजर आ रहे हैं. शाम होते ही लोगों का बाहर निकलना बंद हो जाता है. लोग कूलर और पंखे के सामने से हटने का नाम ही नहीं लेते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में तो लोग आधी-आधी रात तक जग कर बिजली कंपनियों को फोन करने में व्यस्त दिखते हैं. बिजली गुल होने का असर अब पानी सप्लाई पर भी पड़ने लगा है.

दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन भले ही कोयले की कमी को लेकर बयान दे रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार बीती 24 मई को ही देश में बढ़ती बिजली की मांग को देखते हुए कोल इंडिया को केंद्र और राज्य सरकार के पावर प्लांट को कोयले की सप्लाई में प्राथमिकता देने की बात कह चुकी है.

केंद्र सरकार ने 24 मई से पहले 17 मई को भी कोयला कंपनियों को निर्देश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि निजी बिजली कंपनियों को 19 मई से 30 जून तक कोयले की सप्लाई बढ़ाई जाए. इसके बावजूद निजी कंपनियों की मुश्किलें इसलिए बढ़ गई हैं क्योंकि ये कंपनियां पहले से ही कोयले की कमी से जूझ रही हैं, जबकि कोयला उत्पादन में इन कंपनियों की हिस्सेदारी भी सरकारी कंपनियों से ज्यादा है.