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अराकू घाटी माओवादी हमला: पड़ोसी चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में हाई अलर्ट

आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी में नक्सलियों ने दो दिनों पहले एक बड़ी घटना को अंजाम दिया था

Debobrat Ghose

आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी में नक्सलियों ने दो दिनों पहले एक बड़ी घटना को अंजाम दिया था. नक्सलियों ने तेलगु देशम पार्टी के विधायक सर्वेस्वरा राव और पूर्व विधायक एस सोमा की रविवार को गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद आंध्र प्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में पुलिस हाई अलर्ट पर है. दरअसल छत्तीसगढ़ में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं ऐसे में वहां चुनाव को प्रभावित करने के लिए नक्सलियों द्वारा इसी तरह की किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया जा सकता है.

आंध्र प्रदेश की इस घटना के बाद गृह मंत्रालय की तरफ से एक निर्देश जारी किया गया है जिसमें छत्तीसगढ़ के जन प्रतिनिधियों और राजनेताओं को अधिक सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया है. गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद राज्य पुलिस और सुरक्षा बलों ने नेताओं के साथ राज्य में भी सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी है.


छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार इस संबंध में चेतावनी जारी करने के साथ साथ सांसदों, विधायकों और राजनीतिक दलों के नेताओं को इस पूरी स्थिति से अवगत कराया जा रहा है. खास करके नक्सल प्रभावित बस्तर में लोगों को माओवादियों के खतरे के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही है. छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका माओवादियों का मजबूत गढ़ माना जाता है.

नक्सलियों के खतरे के बारे में बस्तर रेंज के इंस्पेक्टर जनरल विवेकानंद से फ़र्स्टपोस्ट ने बात की. विवेकानंद ने बताया, 'हमने बस्तर रेंज के के सभी सातों जिलों की सुरक्षा बढ़ा दी है. इसके अलावा हम सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और चुनाव की प्रक्रिया में शामिल सभी लोगों को नक्सलियों के खतरे के बारे में आगाह कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी विवेकानंद का कहना है कि उन सबको माओवादियों के गंभीर खतरे के प्रति सचेत किया जा रहा है.'

माओवादी राजनीतिक दलों के नेताओं पर पहले भी बड़े हमले करते रहे हैं. 2004 में अविभाजित आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडु के काफिले पर नक्सलियों ने बमों से हमला किया था. उसी तरह से छत्तीसगढ़ में भी नक्सली, नेताओं को अपना निशाना बनाते रहे हैं. मई 2013 में बस्तर के झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर नक्सलियों ने बड़ा हमला किया था. इस हमले में कांग्रेस के राज्य के शीर्ष नेतृत्व का नक्सलियों ने सफाया कर दिया था. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र करमा और नंद कुमार पटेल जैसे कांग्रेस के बड़े नेता मरने वालों में शामिल थे.

नक्सलियों के नेताओं पर हमले के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए और रविवार को पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में विधायक और पूर्व विधायक की हत्या को देखते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस ने अति महत्वपूर्ण और बड़े नेताओं के मूवमेंट पर नजर रखने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए हैं. चुनाव के दौरान राज्य में बड़े नेताओं का आवागमन होना है ऐसे में इन नोडल अधिकारियों की ड्यूटी होगी कि वो चुनाव प्रचार के दौरान आने वाले नेताओं के मूवमेंट की निगरानी रखें. नेताओं को सचेत करने के उद्देश्य से सांसदों और विधायकों को पुलिस ने हिदायत दी है कि वो बस्तर इलाके के दूर दराज गांवों में चुनाव प्रचार करने के लिए पुलिस को जानकारी दिए बिना नहीं जाएं.

बस्तर के सात नक्सल प्रभावित जिलों में से सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर का अबूझमाड़ सबसे ज्यादा संवेदनशील और खतरनाक इलाका है. इन इलाकों को माओवादियों को गढ़ माना जाता है. विवेकानंद का कहना है, 'हमने वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर नोडल ऑफिसर नियुक्त किए हैं. इन अधिकारियों का काम वीवीआईपी लोगों की मूवमेंट पर नजर रखना होगा.'

सुरक्षा एजेंसियों ने भी यहां पर अपनी कार्रवाई तेज कर दी है. सुरक्षा बलों ने बस्तर में कॉम्बिंग ऑपरेशन तेज कर दिया है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ सीमा से जुड़े उड़ीसा, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बॉर्डर के पास भी सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई को तेज कर दिया है.

क्या छत्तीसगढ़ के माओवादी भी अराकू घाटी के हमले में शामिल थे?

राज्य के इंटेलिजेंस सूत्रों की मानें तो वो इस बात की छानबीन करने में जुटे हैं कि क्या आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी में हुए हमले में छत्तीसगढ़ के माओवादियों का भी हाथ था? दरअसल माओवादियों का सटी हुई सीमा होने की वजह से एक राज्य से दूसरे में आना जाना लगा रहता है और कई बार वो एक राज्य में वारदात को अंजाम देने के बाद दूसरे राज्य में भाग जाते हैं.

इंटेलिजेंस के एक सूत्र के मुताबिक, 'माओवादियों का मूवमेंट एक राज्य से दूसरे राज्य में मूवमेंट होता रहता है. छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे राज्यों तेलंगाना, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आध्रप्रदेश में नक्सलियों का आना जाना लगा रहता है. छत्तीसगढ़ के बस्तर और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में बड़े ऑपरेशनों के बाद इन इलाकों में रहने वाले कुछ माओवादी उड़ीसा की तरफ शिफ्ट हो गए हैं. हम लोग इस बात की पड़ताल में लगे हैं कि क्या आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी में दो नेताओं पर हुए हमले में बस्तर के माओवादियों की भी संलिप्तता है?'

सूत्रों का दावा है कि विधायक सर्वेस्वरा राव और पूर्व विधायक सोमा की हत्या की हत्या में उड़ीसा के माओवादी भी शामिल थे. एक सूत्र ने जानकारी देते हुए बताया, '2013 में छत्तीसगढ़ के झीरम घाटी में हुए हमले में भी छत्तीसगढ़ के बाहर से आए हुए नक्सलियों की संख्या ज्यादा थी. इनमें से कुछ उड़ीसा से आए हुए माओवादी भी थे. बड़े ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए माओवादी दूसरे राज्यों के अपने कैडरों का इस्तेमाल करते हैं जिससे कि उन्हें स्थानीय लोग पहचान नहीं पाएं.'

माओवादियों की चेतावनी

प्रतीकात्मक तस्वीर

जिन्हें बस्तर के नक्सलियों के बारे में जानकारी है उन्हें ये पता है कि हरेक चुनाव के दौरान सीपीआई माओवादी की तरफ से स्थानीय लोगों को चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी जाती रही है. इसके अलावा लोगों को डराने के लिए चुनाव के समय कई घटनाओं को भी अंजाम दिया जाता है.

इसी तरह की एक घटना में बस्तर में कोंटा एरिया कमेटी की तरफ पिछले शुक्रवार को एक पोस्टर जारी किया गया. इस पोस्टर में आदिवासी ग्रामीणों से आने वाले चुनावों के बहिष्कार की अपील की गई है. कहा जा रहा है कि नक्सलियों ने चेतावनी दी है कि किसी भी विधायक या अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने किसी भी दूरदराज के गावों में घुसने की कोशिश की तो उन्हें ‘जनताना अदालत’ में पेश किया जाएगा.

‘जनताना अदालत’ या नक्सलियों की अदालत माओवादियों के द्वारा आदिवासी इलाकों में लगाई जाती है जिसमें आदिवासियों के बीच के आपसी विवाद का निपटारा नक्सलियों के द्वारा किया जाता है. इन अदालतों में दोषी ठहराए गए लोगों के साथ नृशंसतापूर्ण व्यवहार किया जाता है. खास करके उनके खिलाफ क्रूर कार्रवाई की जाती है जिन्हें नक्सली, पुलिस के गुप्तचर के रूप में पहचान करते हैं. नक्सलियों के द्वारा इस कोर्ट का इस्तेमाल अपने हित साधने के अलावा ग्रामीणों के मन में भय पैदा करने के काम में भी किया जाता है.

पुलिस और सुरक्षा एजेंसिया दोनों माओवादियों की धमकी की जांच पड़ताल कर रही हैं. बस्तर स्थित एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'हमेशा चुनाव से पहले माओवादी धमकी देते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर खबरों में बने रहने के लिए बम धमाकों का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ाने दावा किया है लेकिन बस्तर के संवेदनशील जिलों से आने वाले विधायक और नेता इन इलाकों की गतिविधियों को लेकर चिंतित हैं. विधानसभा चुनावों के नजदीक आने के साथ ही इन इलाकों में तनाव साफ दिखाई दे रहा है. हो सकता है कि अपनी धमक दिखाने के लिए नक्सली आने वाले दिनों में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की कोशिश करें.'