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पुलिस मेमोरियल- CBI में रार और वर्दी से तकरार

शहरों के नाम बदलने की तर्ज पर पुलिस की ब्रिटिशकालीन व्यवस्था को बदलने के ठोस प्रयास क्यों नहीं किए जाते? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2006 में मॉडल पुलिस कानून बनाया गया, इसके बावजूद कई राज्यों में 1861 के कानून से ही पुलिस का संचालन हो रहा है

Virag Gupta

लद्दाख में चीनी सैनिकों के हमले में 21 अक्टूबर, 1959 को 10 जवान शहीद हुए थे, जिसके बाद राष्ट्रीय पुलिस दिवस मनाने की शुरुआत हुई. इसके 60 साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के चाणक्यपुरी में राष्ट्रीय पुलिस मेमोरियल का उद्घाटन किया, जहां सर्वोच्च बलिदान करने वाले 34,844 जवानों के नाम लिखे गए हैं. इतिहास को सम्मान देने के साथ यदि वर्तमान को भी मान मिले, तभी देश आगे बढ़ सकेगा. सीबीआई में आंतरिक संघर्ष और पुलिसिया विवाद की अनेक घटनाओं से वर्दी पर छा रहे संकट को सत्ता द्वारा क्यों अनदेखा किया जा रहा है.

सीबीआई में राजनीतिक हस्तक्षेप और अफसरों में रस्साकशी 


सीबीआई में डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर के बीच चल रहे संघर्ष में एफआईआर दर्ज होने के बाद अब डिप्टी एसपी की गिरफ्तारी हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के 'तोता' कहे जाने के बावजूद, सीबीआई को भारत में जांच के लिए सर्वोच्च दर्जा मिला है. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक पद पर नियुक्ति में सुधार के लिए आदेश जारी किए हैं, जिनका राज्य पालन नहीं करना चाहते. कानून व्यवस्था और अपराध की जांच के लिए अलग ढांचा बनाने पर भी पिछले 12 वर्षों से कोई काम नहीं हुआ. अनेक आयोगों की रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद सरकारें और बड़े अफसर पुलिस की व्यवस्था में सुधार नहीं चाहते, तो फिर वर्दी का रौब कैसे लौटे?

गुरुग्राम में पीएसओ द्वारा जज की पत्नी की हत्या

हरियाणा के गुरुग्राम में जज की सुरक्षा में तैनात पुलिस अधिकारी द्वारा जज की पत्नी और बेटे को गोली मारे जाने की जांच एसआईटी कर रही है. सवाल यह है कि जज की सरकारी सुरक्षा में तैनात पुलिस अधिकारी को परिवारजनों द्वारा निजी कार से शॉपिंग मॉडल में ड्यूटी कराया जाना कितना जायज है? अफसरों के कर्मचारियों का निजी कामों के लिए इस्तेमाल और वीआईपी ड्यूटी के बढ़ते चलन के बाद हम पुलिसकर्मियों से जांबाजी की उम्मीद कैसे करें?

दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक जज के सुरक्षाकर्मी ने उनकी पत्नी और बेटे को सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी

लखनऊ में हत्या के मामले में रक्षक ही भक्षक

राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेने और न्यायिक प्रणाली से परे जाकर बदमाशों के एनकाउंटर से भी पुलिसकर्मियों की अराजकता को बढ़ावा मिल रहा है. लखनऊ में आधी रात को कार नहीं रोकने पर पुलिस कॉन्स्टेबल प्रशांत चौधरी ने विवेक तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी. सरकार को आरोपी पुलिसकर्मी को बर्खास्त करने और गिरफ्तारी के साथ मृतक की पत्नी को नौकरी और मुआवजा भी देना पड़ा.

यूपी सरकार ने विवेक हत्याकांड में आरोपी कॉन्स्टेबल प्रशांत चौधरी को सेवा से बर्खास्त कर दिया है (फोटो: पीटीआई)

मीडिया के नकारात्मक चित्रण के जवाब में पुलिसकर्मियों का ध्रुवीकरण अनुशासन के लिहाज से शुभ नहीं है. द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग और प्रकाश सिंह मामले में वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, शिकायत के लिए राज्यों में यदि अथॉरिटी का गठन कर दिया जाए तो पुलिस को बेलगाम होने से बचाया जा सकता है.

पुलिस कर्मियों को छुट्टी और मकान की समस्या 

दिल्ली में एसएचओ या थानेदारों को हफ्ते में सातों दिन ड्यूटी करनी पड़ती है. दिल्ली में 20 फीसदी पुलिसकर्मियों को ही सरकारी मकान की सुविधा मिली हुई है. पुलिसकर्मी भी हमारे जैसे इंसान हैं तो उन्हें बच्चों और परिवार के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी क्यों नहीं मिलनी चाहिए? ट्रैफिक पुलिस के सिपाहियों के लिए पीने का पानी और फर्स्ट ऐड की व्यवस्था नहीं होती, जिसके लिए पीआइएल पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है. अवसादग्रस्त पुलिस कर्मियों को जब मूलभूत सुविधायें भी नहीं मिल पाती तो फिर उनसे मानवाधिकार के उच्च आदर्शों के पालन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?

देश में पुलिस विभाग में लाखों की संख्या में रिक्तियां खाली हैं मगर अलग-अलग सरकारें आती हैं और चली जाती हैं लेकिन यह समस्या वर्षों से बरकरार है

पुलिस में हथियार, वाहन और आधुनिक तकनीक की कमी

डिजिटल इंडिया की बात कर रहे देश में साइबर अपराधों की बाढ़ सी आ गई है पर पुलिस की सुविधाओं में जरूरत के अनुसार इजाफा नहीं हुआ. देश में कुल बजट का महज 3 फीसदी हिस्सा ही पुलिस पर खर्च होता है. देश में कुल 26.35 लाख पुलिसकर्मी हैं परंतु 24 प्रतिशत पद खाली हैं. सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान पुलिस में 75 फीसदी तक हथियारों की कमी हो सकती है.

बीपीआरडी के अनुसार देश के पुलिसबल के पास 30.5 फीसदी वाहनों की कमी है. पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए स्वीकृत फंड से 2015-16 में सिर्फ 14 फीसदी ही खर्च हो सका. अनेक कमियों से जूझ रहे पुलिसकर्मियों का जब मौके पर हथियार नहीं चलता तो नकली 'ठांय-ठांय' कर के अपराधी को पकड़ने की बहादुरी भी सोशल मीडिया की फेक स्टोरी बन कर रह जाती है.

यूपी पुलिस के जवान ने पिछले दिनों हुई एक मुठभेड़ के दौरान हथियार जाम हो जाने पर 'ठांय-ठांय' की आवाज निकाली थी. इसे लेकर वो काफी सुर्खियों में रहे थे (फोटो: ट्विटर वीडियो ग्रैब)

अंग्रेजों के समय की पुलिस व्यवस्था में बदलाव क्यों नहीं

कॉन्स्टेबल रहे सुशील कुमार शिंदे देश के गृह मंत्री बने और भैरों सिंह शेखावत उपराष्ट्रपति बन गए पर पुलिस की व्यवस्था उस तर्ज पर नहीं बदली. शहरों के नाम बदलने की तर्ज पर पुलिस की ब्रिटिशकालीन व्यवस्था को बदलने के ठोस प्रयास क्यों नहीं किए जाते? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2006 में मॉडल पुलिस कानून बनाया गया, इसके बावजूद कई राज्यों में 1861 के कानून से ही पुलिस का संचालन हो रहा है.

जटिल कानूनों की वजह से पुलिस वालों का अधिकतर समय बेवजह के राजनामचे और अदालतों के चक्कर लगाने में नष्ट हो जाता है, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है. दिल्ली में कार के एक्सीडेंट से कुत्ते के मरने पर एफआईआर होने के साथ ड्राइवर को तुरंत जेल हो जाती है. दूसरी तरफ अमृतसर के रेल हादसे में 61 लोगों की मौत जांच की फाइलों के हवाले हो जाती है. गांवों में लोगों को एफआईआर के लिए मशक्कत करनी पड़ती है लेकिन सोशल मीडिया की खबरों पर बगैर औपचारिक शिकायत के ही एफआईआर होने का ट्रेंड संवैधानिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है.

(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं )