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पोखरण I: जब इंदिरा ने निकाल दी पाक-अमेरिका की हेकड़ी और 'बुद्ध मुस्कुराए'

इंदिरा गांधी ने कुछ ऐसा किया कि हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया का भारत को देखने का नजरिया ही बदल गया

Avinash Dwivedi

भारत के लिए पिछली सदी का 70 का दशक बहुत ही महत्वपूर्ण रहा. एक ओर भारत ने बांग्लादेश के निर्माण में सशक्त भूमिका निभाई. पाकिस्तान को आजादी के बाद से बुरी तरह हराया तो वहीं इमरजेंसी की धब्बा भी भारत ने झेला.

इसी बीच 'गूंगी गुड़िया' कही जाने वाली इंदिरा गांधी ने कुछ ऐसा किया कि हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया का भारत को देखने का नजरिया ही बदल गया. बात हो रही है 'संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद' से बाहर किसी देश के पहली बार परमाणु परीक्षण कर दिखाने के पराक्रम की. भारत के पहले परमाणु विस्फोट की.


भारत उस वक्त पाकिस्तान का अभूतपूर्व दुश्मन बन चुका था

भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संग्राम में मदद की और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. पाकिस्तान ने इस प्रक्रिया में अपना आधे से ज्यादा भू-भाग और आधी जनसंख्या खो दी. इसके बाद से भारत, पाकिस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ था.

उधर अमेरिका और पाकिस्तान में सांठ-गांठ चल रही थी. क्योंकि अमेरिका सोवियत यूनियन के खिलाफ पाकिस्तान को एक एयरबेस के रूप में यूज कर रहा था. चूंकि दोस्त का दुश्मन, दुश्मन होता है, इसलिए भारत के खिलाफ अमेरिका ने दुश्मनी का रवैया अपना लिया था. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति से भी अमेरिका को चिढ़ थी.

साफ है, दुश्मनी मोल लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और स्टेट सेक्रेटरी किसिंजर भारत को कम आंक रहे थे. पाकिस्तान से उनकी दोस्ती ने दुनिया के सामने उनकी पोल खोल रखी थी. विडंबना ही कहा जाएगा कि मानवाधिकारों का बहुत बड़ा समर्थक बनने वाला अमेरिका उस वक्त पाकिस्तान का समर्थन करने चला था जब वहां नागरिक अधिकारों की अनदेखी हो रही थी और मखौल इस हद तक था कि डेमोक्रेसी लाने के लिए याह्या खान की 'तानाशाह' सरकार काम कर रही थी.

इसी दौरान जल्दबाजी में अमेरिका ने एक बेहद गलत कदम उठाया और भारत पर दबाव बनाने के लिए हिंद महासागर में एयरक्राफ्ट कैरियर बैटल ग्रुप भेज दिया. भारत फिर भी नहीं माना तो उसने भारतीय सेना को ढाका की ओर बढ़ने से रोकने के लिए सेवेंथ फ्लीट नाम का जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज दिया.

ये बड़ी गलती थी क्योंकि इससे भारत के आत्मसम्मानी स्वभाव को ठेस पहुंची और परमाणु बम के समर्थन में भारत में फिर से आवाज बुलंद होने लगी.

पोखरण में इंदिरा गांधी

भारत ने ऐसे में एक तीर से कई निशाने साधने का मन बनाया

भारत को अपने खिलाफ चीन और पाकिस्तान के गठबंधन का डर आज भी रहता है. उस वक्त भी चीन पाकिस्तान का साथी बना हुआ था. भारतीयों का तर्क था, 'यदि भारत ने परमाणु परीक्षण नहीं किया तो चीन 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का समर्थन कर सकता है. जबकि भारत के भी परमाणु शक्ति संपन्न होने से भारत और चीन के बीच शक्ति संतुलन बनेगा.'

'फिर चीन पाकिस्तान का साथ देने की गलती नहीं करेगा. भारत के परमाणु शक्ति संपन्न होने के बाद उसके दुनिया की बड़ी ताकतों में शामिल होने के रास्ते साफ हो जाएंगे. इसके साथ ही भारत दक्षिण एशिया की बड़ी ताकत भी बन जाएगा. भारत को सहायता के लिए सोवियत यूनियन का मुंह भी नहीं देखना पड़ेगा और बढ़ती ताकत के साथ भारत के प्रति अमेरिका का रवैया भी दोस्ताना हो जाएगा या कम से कम अमेरिका भी दुश्मनी तो नहीं ही रखना चाहेगा.'

नियति को भी शायद यही मंजूर था

इससे भी ज्यादा बड़ा बदलाव आया, जब 30 दिसंबर, 1971 में परमाणु बम के विरोध में खड़े भारत के अग्रिम पंक्ति के वैज्ञानिक और IAEC के चेयरमैन विक्रम साराभाई की मौत हो गई. और होमी सेठना जो पहले से ही बार्क यानि भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के हेड थे, उन्होंने IAEC के चेयरमैन की जिम्मेदारी भी संभाल ली.

सेठना परमाणु शक्ति के पक्के समर्थक थे. मतलब भारत को परमाणु कार्यक्रम की ओर बढ़ने से रोकने वाली सबसे बड़ी आवाज को, इसकी ओर बढ़ने की चाहत रखने वाली सबसे उत्साही आवाज ने दबा दिया. भारत ने परमाणु विस्फोट का मन बना लिया. तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गईं.

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हिरण्यकश्यपु की हत्या वाले स्टाइल में इंडिया ने पूरा किया अपना काम

1973 के मध्य तक सारी तैयारियां पूरी होने को थीं और ऐसे में भारत विस्फोट के लिए एक ठीक-ठाक जगह की तलाश में था. पर इसमें समस्या ये थी कि एक दशक पहले 1963 में भारत PTBT नाम के एक परीक्षण के खिलाफ समझौते पर हस्ताक्षर कर चुका था.

इस समझौते के हिसाब से, 'कोई भी देश परमाणु हथियार या किसी भी दूसरे रूप में परमाणु विस्फोट वातावरण में नहीं कर सकता है, वातावरण जिसमें आसमान भी शामिल है, वो न ही पानी के अंदर विस्फोट कर सकता है, न ही अपने देश की सीमा में आने वाले सागर में कर सकता है और ना ही ऐसे समंदर में कर सकता है, जिस पर किसी भी देश का अधिकार न हो.'

भारत ने विस्फोट के वक्त ये सारी बातें वैसे ही मान लीं जैसे हिरण्यकश्यपु के वरदान की विष्णु ने मानी थीं और सूझ-बूझ का परिचय देते हुए, विस्फोट जमीन के भीतर करने का निर्णय लिया. हालांकि भारत की इस चालाकी के बाद सभी तरह के परमाणु विस्फोटों पर पाबंदी लगा दी गई.

देश के रक्षा मंत्री को तब पता चला जब ऑपरेशन सक्सेफुल रहा

विस्फोट के कर्ता-धर्ता रहे राजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा 'इयर्स ऑफ पिलग्रिमिज' में इस बात का जिक्र किया है कि इस ऑपरेशन के बारे में इससे जुड़ी एजेंसियों के कुछ लोग ही जानते थे. इंदिरा गांधी के अलावा मुख्य सचिव पीएन हक्सर और एक और साथी मुख्य सचिव पीएन धर, भारतीय रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. नाग चौधरी और एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन एच. एन. सेठना और खुद रमन्ना जैसे कुछ ही लोग इससे जुड़े प्रोग्राम और बैठकों में शामिल थे.

इंदिरा गांधी सरकार ने इस ऑपरेशन में बस 75 वैज्ञानिकों को लगा रखा था. भारतीय सेना के प्रमुख जनरल जी.जी. बेवूर और इंडियन वेस्टर्न कमांड के कमांडर ही सेना के लोग थे, जिन्हें होने वाले इस ऑपरेशन की जानकारी थी.

इसे भारत के इतिहास के सबसे सीक्रेट ऑपरेशन्स में से एक माना जाता है. राज चेंगप्पा तो अपनी किताब में दावा करते हैं कि तत्कालीन रक्षामंत्री जगजीवन राम को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्हें इस बारे में तभी पता चला जब ये ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा हो गया.

विस्फोट से पहले की अंतिम बैठक में इंदिरा गांधी के आइकॉनिक अंतिम शब्द

फाइनल मीटिंग इस विस्फोट को लेकर होनी थी. राजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, 'मेरा मानना था कि ये एक फॉर्मेलिटी होगी पर उस मीटिंग में तीखी बहस हो गई. पीएन धर ने इस विस्फोट का जोरदार विरोध किया क्योंकि उन्हें लगा था कि ये विस्फोट भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा.'

पीएन हक्सर के साथ इंदिरा गांधी

हक्सर ने भी कहा कि अभी इसके लिए सही वक्त नहीं है और इसके पीछे अपने तर्क दिए. रमन्ना ने खुद कहा कि अब जितनी तैयारियां हो चुकी हैं और जिस मुकाम पर वो आ चुके हैं इसके बाद टेस्ट को टालना नामुमकिन है. और रमन्ना इसे सौभाग्य की बात कहते हैं कि तभी इंदिरा गांधी जो शांत बैठी थीं, बोलीं, 'इस साफ-सीधी बात के लिए इस परीक्षण को निर्धारित तारीख पर हो जाना चाहिए कि भारत को (दुनिया के सामने) एक ऐसे प्रदर्शन की जरूरत है.'

फिर हुआ महान विस्फोट यानी बुद्ध मुस्कुराए

ये परमाणु डिवाइस जब पूरी तैयार हो गई तो ये षट्कोणीय आकार की थी. जिसका व्यास 1.25 मीटर और वजन 1400 किलो था. ये डिवाइस रेल से वहां पर ले जाई गई थी. इसके लिए आर्मी ने वहां रेल की पटरियां बिछाई थीं. आर्मी डिवाइस को बालू में छिपाकर ले गई थी.

ये परमाणु विस्फोट पोखरण, राजस्थान में इंडियन आर्मी बेस में किया गया, वक्त हुआ था, सवेरे के 8 बजकर, 5 मिनट. विस्फोट इतना तेज था कि एक बड़ा सा गड्ढा जमीन पर हो गया था. जिसका व्यास 45 से लेकर 75 मीटर तक था. जमीन में 10 मीटर नीचे तक इसका प्रभाव था. इस विस्फोट के चलते आसपास के 8 से 10 किमी के इलाके में तेज झटका लगा था.

ये ऑपरेशन बुद्ध जयंती के दिन किया गया. जो 1974 में 18 मई के दिन पड़ रही थी. ऑपरेशन की सारी तैयारी के दौरान इसे शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट कहा जा रहा था. ऑपरेशन पूरा होने पर वैज्ञानिकों ने इंदिरा गांधी को फोन किया और खबर दी, 'बुद्ध मुस्कुराए.'

पोखरण-I के गुमनाम हीरो- पीके अयंगर

परमाणु डिवाइस को बनाने वाले डॉ. पीके अयंगर का इस मिशन में महत्वपूर्ण योगदान था. हालांकि अधिकांशत: रमन्ना को हीरो के रूप में पेश किया जाता है. पर अगर अयंगर ने एटम बम को डिजाइन न किया होता तो शायद इसका भविष्य कुछ और ही होता.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने भारत के बराबर आने के लिए घास खाने को कहा

सुरक्षा परिषद के बाहर किसी देश ने पहली बार ऐसा किया था. इसलिए सुरक्षा परिषद के देशों ने इसकी बहुत आलोचना की. अमेरिका ने कहा, 'अमेरिका हमेशा से ही परमाणु प्रसार के खिलाफ रहा है. क्योंकि इससे दुनिया की स्थिरता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.ट कुछ भी हो पर इंदिरा गांधी ने अमेरिका को तो सबक दिया ही, चीन और पाकिस्तान की दोस्ती को भी कागज का शेर बना दिया.

जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ इंदिरा गांधी

इस परीक्षण के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने देशवासियों से एक महान वादा किया कि वो पाकिस्तान को भारत की परमाणु ताकत से कभी ब्लैकमेल नहीं होने देंगे. और इस बात को लेकर उन्होंने जनता के सामने घोषणा की कि भारत के साथ परमाण्विक बराबरी पाने के लिए पाकिस्तान के लोग कोई भी बलिदान देंगे यहां तक कि अगर उन्हें घास भी खानी पड़ी तो खाएंगे.

ऐसे में एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि भारत का ये पहला परमाणु परीक्षण जिसका प्लान पिछले एक दशक से हो रहा था निस्संदेह आयरन लेडी इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति की मिसाल है. पाकिस्तान, चीन और अमेरिका की तिकड़ी का दबाव झेलने के बाद ये इंदिरा गांधी का एक ऐसा कदम था जिसके बाद 25 साल तक (कारगिल तक) पाकिस्तान भारत की ओर नजरें उठाकर भी नहीं देख सका.

चलते-चलते

इस पहले पोखरण विस्फोट में अपेक्षाकृत युवा और छोटे पद पर काम कर रहे और आगे चलकर देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक बनने वाले एपीजे अब्दुल कलाम को एक ख्वाब दिया. जो इस नए परमाणु संपन्न देश को ऐसी मिसाइलें देने का था ताकि इन बमों का प्रयोग दुश्मनों पर आसानी से किया जा सके. इसलिए उन्होंने 'अग्नि' मिसाइलों का ख्वाब बुना और बहुत ही जल्द उसे सफल कर दिखाया.

पाकिस्तान इसके बाद से परमाणु हथियारों को बनाने में ही अपना सारा बजट खर्च करने लगा, जबकि इसी वक्त में भारत ने अपनी मिसाइल टेक्नॉलजी, स्पेस प्रोगाम और न्यूक्लियर प्रोजेक्ट तीनों में ही बेहतरीन काम किया. जिसपर आज हर भारतीय गर्व कर सकता है.

(सोर्सेज- राजा रमन्ना, इयर्स ऑफ पिलग्रिमेज, ले. जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह, टाइम्स ऑफ ट्रायल, जॉर्ज पैर्कोविच, इंडियाज न्यूक्लियर बॉम्ब, अशोक कपूर, इंडियाज न्यूक्लियर ऑप्शन, आर्म्स कंट्रोल एंड डिस्आर्मामेंट एग्रीमेंट्स, टेस्ट्स एंड हिस्ट्रीज ऑफ द नेगोशिएशंस, बी. रहमतुल्लाह, इंडो-अमेरिकन पॉलिटिक्स, राज चेंगप्पा, वेपेंस ऑफ पीस, भभानी सेन गुप्ता, न्यूक्लियर वीपन्स? पॉलिसी ऑप्शनंस फॉर इंडिया, मार्निंग न्यूज कराची, 20 मई, 1974, वाशिंगटन पोस्ट, 19 मई, 1974)