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PNB फ्रॉड: नए दस्तावेजों से सामने आया नीरव मोदी के झूठे बिजनेस डील का राज

अमेरिकी बैंकरप्सी एग्जामिनर जॉन जे कार्ने और उनकी टीम ने नीरव मोदी के भरोसेमंद सहयोगी मिहिर भंसाली से इन संदिग्ध सौदों से संबंधित दस्तावेज जब्त किए हैं

Yatish Yadav

भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी के फर्जी सौदों के बारे में नया खुलासा सामने आया है. अमेरिकी जांचकर्ताओं के मुताबिक, 'एआर-एपी (जनवरी 2018)' टाइटिल वाली एक स्प्रेडशीट में नीरव मोदी के संदिग्ध लेन-देन का विस्तार से जिक्र है. मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक को चूना लगाकर अपने फर्जी सौदों के लिए वित्तीय मदद हासिल कर अवैध बिजनेस साम्राज्य खड़ा करने का आरोप है.

अमेरिकी बैंकरप्सी एग्जामिनर जॉन जे कार्ने और उनकी टीम ने नीरव मोदी के भरोसेमंद सहयोगी मिहिर भंसाली से इन संदिग्ध सौदों से संबंधित दस्तावेज जब्त किए हैं. इसमें मोदी के मालिकाना हक वाली इकाई फायरस्टार डायमंड इंटरनेशनल व हांगकांग और दुबई में मौजूद संदिग्ध इकाइयों के बीच हुए बिजनेस सौदों का जिक्र है.


इससे पहले फ़र्स्टपोस्ट ने 13 अगस्त को फर्जी कंपनियों के साथ नीरव मोदी के संदिग्ध सौदों के बारे में खबर दी थी. इन सौदों के जरिए वैध कारोबारी लेनदेन की आड़ में पैसे की हेराफेरी के बारे में बताया गया था. कार्ने की रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि पंजाब नेशनल बैंक की ब्रेडी हाउस शाखा द्वारा जारी फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स (एलओयू) से प्राप्त रकम को ठिकाने लगाने के तहत लाखों डॉलर को एक इकाई से दूसरी इकाई में ट्रांसफर किया गया.

रिपोर्ट में बताया गया है, 'कार्ने ने अपनी जांच में इस स्प्रेडशीट को काफी अहम पाया. इसमें वैध, विदेशी या अन्य किसी भी तरह के ग्राहकों का जिक्र नहीं था, बल्कि सिर्फ संदिग्ध इकाइयों की सूची थी. स्प्रेडशीट में एक ऐसा कॉलम भी है, जिसमें संदिग्ध इकाई से जुड़े एंप्लॉयीज की पहचान की गई है. ये फायरस्टार के पूर्व या मौजूदा कर्मचारी थे.' फायरस्टार द्वारा लाखों डॉलर की हीरे की कथित बिक्री कई संदिग्ध इकाइयों को भारत से अमेरिका में की गई और कई मामलों में पैसे फायरस्टार को भारत में लौटा दिए गए या उसका इस्तेमाल कंपनी के संचालन की फंडिंग में किया गया.

इसमें अमेरिका में बैंकों द्वारा किए गए लोन के भुगतान का मामला भी शामिल था. इन सौदों में नीरव मोदी के निर्देश पर कथित रूप से हीरे और पैसे के ट्रांसफर की भी बात है. इस कवायद का मकसद फर्जी गतिविधियों को सहारा देने के लिए इंपोर्ट सौदों को दिखाना था. फायरस्टार डायमंड और मोदी की अन्य दो कंपनियों के साथ काफी ज्यादा वॉल्यूम वाले ऐसे सौदों में कम से कम 10 फर्जी कंपनियां शामिल थीं. इन कंपनियों में ऑराजेम कंपनी लिमिटेड, ब्रिलियंट डायमंड्स लिमिटेड, एंपायर जेम्स एफजेडई, एटर्नल डायमंड्स कॉरपोरेशन लिमिटेड, फैन्सी क्रिएशंस, पैसिफिक डायमंड्स एफजेडई, ट्राई कलर जेम्स एफजेडई, यूनीक डायमंड एंड ज्वैलरी, यूनिवर्सल फाइन ज्वैलरी और विस्टा ज्वैलरी आरजेई जैसी कंपनियां शामिल हैं.

कई रहस्यों से पर्दा उठाती है CFO की ईमेल

मसलन, 8 जून 2012 को लिखी ईमेल में फायरस्टार के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) अजय गांधी ने इस कंपनी के दो कर्मचारियों- भवेश पटेल और श्याम वाधवा को हांगकांग और दुबई में मौजूद ऐसी सभी कंपनियों के लिए 'पेएबल' के बारे में कहा था.

इसके बाद भवेश पटेल ने बताया कि दुबई में गुंजाइश नहीं है, लेकिन हांगकांग में संभावना बन सकती है. गांधी ने इसके जवाब में कहा कि ये इकाइयां- पैसिफिक, वर्ल्ड डायमंड आदि हो सकती हैं. गांधी का लक्ष्य फायरस्टार इंटरनेशनल से 10 लाख डॉलर हांगकांग या दुबई भेजना था और यह शख्स इन संदिग्ध इकाइयों को इस तरह के भुगतान को वैध बनाने का आसान साधन मानता था. फायरस्टार के कर्मचारियों ने कुछ संदिग्ध इकाइयों को किए गए भुगतान को बैक ऑफिस के खर्चों की तरह दिखाया, जबकि 'गैर-असंबद्ध इकाइयों' में इस तरह का प्रचलन नहीं है. मिसाल के तौर पर 18 मार्च 2014 को अजय गांधी ने अक्टूबर 2013 से मार्च 2014 की अवधि के बैक ऑफिस खर्चों के भुगतान के लिए फायरस्टार के खातों से 1,50,000 डॉलर यूनीक डायमंड में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया.

अमेरिकी जांचकर्ताओं ने इसी दिन फायरस्टार द्वारा यूनीक डायमंड को 1,50,00 डॉलर के भुगतान संबंधी सौदे का भी पता लगाया है. गांधी ने अक्टूबर 2010 में यूनीक डायमंड बैंक ऑफिस खर्च के लिए 2,20,000 डॉलर का फंड ट्रांसफर किया. 24 अक्टूबर 2013 को बैंक ऑफिस खर्च के लिए सिनर्जीज द्वारा ब्रिलियंट को 1,25,000 डॉलर का भुगतान किया गया. फायरस्टार के बही-खाते में यूनीक और ब्रिलियंट दोनों को कर्जदारों का ग्राहक बताया गया. इस सिलसिले में हुए पत्राचार से पता चलता है कि ये इकाइयां फायरस्टार ग्लोबल इकाइयों के साझा नियंत्रण में थीं. फायरस्टार से संबंधित फर्मों के ढांचे के भीतर इकाइयों का दिलचस्प रोल था. ऐसा लगता है कि एक इकाई में एकाउंट पेएबल की उपलब्धता का मकसद दूसरी इकाई के एकाउंट रिसीवबल का निपटारा करना था. यह काम ऑडिटरों या बैंकों की जांच को संतुष्ट करने के मकसद से किया जाता था.

सबसे बड़ा जालसाज

नीरव मोदी को 2011 में ही पता था कि उसे एक दिन फर्जी लेनदेन द्वारा हड़पे गए हजारों करोड़ रुपए के साथ गायब होना पड़ेगा. मोदी ने 20 से भी ज्यादा गुप्त रूप से नियंत्रित फर्जी कंपनियां के नेटवर्क का इस्तेमाल कर हीरा और अन्य जेम्स के इंपोर्ट के नाम पर गोरखधंधा चलाया. अमेरिकी जांचकर्ताओं को कई ऐसे सौदों के सबूत मिले हैं जहां फायरस्टार ग्लोबल इकाइयों और नीरव मोदी द्वारा बनाई गई फर्जी कंपनियों के बीच तराशे हुए हीरों की अदला-बदली की गई. जांच टीम ने मोदी की कंपनियों के सौदों से जुड़े कई एक्सपोर्ट बिलों और पैकिंग लिस्ट की पड़ताल की. इसमें पता चला कि अमेरिकी कंपनियों, अंतरराष्ट्रीय फायरस्टार कंपनियों और फर्जी कंपनियों को भेजे गए माल में एक जैसे खूबसूरत रंग वाले तराशे गए हीरे थे.

अमेरिकी एग्जामनर की रिपोर्ट में बताया गया है, 'इन हीरों का मूल्य काफी ज्यादा है और माल भेजने का ज्यादातर मामला 10 लाख डॉलर से ज्यादा का है. खूबसूरत रंग वाले इन हीरों के साथ सर्टिफिकेशन नहीं होने के बावजूद हीरों और कैरेट के बारे में इनवॉयस और पैकिंग पर्ची में दी गई जानकारी से जांचकर्ताओं को इस बात का भरोसा हुआ कि कुछ 'ऊंचे मूल्य' वाले हीरे की हेराफेरी की गई. हीरे से संबंधित विशेषज्ञ ने भी इस बात की तस्दीक करते हुए कई सौदों में उसी हीरे के इस्तेमाल की आशंका जताई और कहा कि इनवॉयस में बताई गई ऊंची कीमतों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कई तरह के सौदों में एक ही हीरे का इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा, सौदों के समय बाजार की स्थिति के आधार पर विशेषज्ञ का यह भी कहना था कि ऐसी इकाई जो खूबसूरत रंग वाले हीरे के कारोबार के लिए मशहूर नहीं थी, उस कंपनी द्वारा इतनी बड़ी बिक्री के लिए इतने बड़े पैमाने पर ऐसे हीरों का बिजनेस संभव नहीं था.'

रिपोर्ट में ऐसे कुछ खास हीरों की पहचान की गई है, जिनका 2011-12 के दौरान कई फर्जी सौदों में इस्तेमाल किया गया. जांच के मुताबिक, ये सौदे एलओयू स्कीम के अनुरूप थे और इनका इस्तेमाल डायमंड इनवेंट्री और एकाउंट रिसीवबल (प्राप्त खाता यानी कंपनी की प्राप्त करने योग्य बकाया राशि) को कृत्रिम तरीके से बढ़ाने में किया गया, ताकि एलओयू फाइनेंस की जरूरत बताई जा सके. साथ ही, इसका मकसद फर्जी एलओयू के जरिये प्राप्त रकम के लेनदेन को वैध ठहराने के लिए खरीद और बिक्री का आंकड़ा तैयार करना था. सूत्रों के मुताबिक, फायरस्टार डायमंड ने 3.27 कैरेट का फैन्सी यलो ऑरेंज कट SI1 हीरा 8 अगस्त से 13 सितंबर 2011 के दौरान तीन बार एक्सपोर्ट किया और एक बार इसका इंपोर्ट भी हुआ.

हीरे को किस तरह से इधर-उधर भेजना है, इस बारे में फायरस्टार इंडिया के स्टाफ संदीप मिस्त्री ने फायरस्टार डायमंड इंटरनेशनल (एफडीआई) अमेरिका को निर्देश दिए. इस सिलसिले में स्प्रेडशीट के साथ भारत से आई ईमेल के बारे में पता चला है, जिसमें भेजे जाने वाले प्रत्येक हीरे की पहचान की गई थी. साथ ही, एफडीआई से हीरे को कहां और किस ठिकाने पर भेजना है, इस बारे में भी बताया गया था. इन एक्सपोर्ट से जुड़े इनवॉयस का जिक्र स्प्रेडशीट में भी था.

दस्तवाजों के मुताबिक, 8 अगस्त 2011 को एफडीआई ने 'हीरे' को 10,98,802 डॉलर में बेचा. तकरीबन तीन हफ्ते बाद नीरव मोदी की एक और फर्म सोलर एक्सपोर्ट्स ने इसी हीरे को एफडीआई को तकरीबन 1,83,087 डॉलर यानी 9,00,000 डॉलर कम में एक्सपोर्ट कर दिया. हालांकि, एक्सपोर्ट का मूल्य इसके वास्तविक मूल्य के करीब था. 6 दिनों के बाद एफडीआई ने फिर से इसी हीरे को फैन्सी क्रिएशंस कंपनी लिमिटेड नामक कंपनी को बढ़ाकर पेश की गई मूल कीमत से भी ज्यादा यानी 11,56,043 डॉलर में एक्सपोर्ट किया. आखिरकार दो हफ्ते बाद मोदी की एक और अमेरिकी कंपनी ए जैफे ने इसे वर्ल्ड डायमंड को 12,18,991 डॉलर में बेचा. इसी तरह, एफडीआई ने 1.04 कैरेट का फैन्सी पिंक एमरल्ड (पन्ना) 6 महीने के भीतर दो बार एक्सपोर्ट और एक बार इंपोर्ट किया.

इस हीरे का पहला सौदा 19 अगस्त 2011 को हुआ, जब फायरस्टार इंडिया ने इसे 6,08,400 डॉलर में एफडीआई को भेजा. संदीप मिस्त्री ने इसका शिपिंग संबधी दिशा-निर्देश और भारत में तैयार इनवॉयस के साथ स्प्रेडशीट भी भेजा. मिस्त्री के निर्देशों के अनुरूप एफडीआई ने इसे 6,42,200 डॉलर में एसडीसी डिजाइंस एलएलसी को बेच दिया. शिपमेंट की वापसी को लेकर देनदारों के हस्ताक्षर के बिना मोदी की कंपनी ए जैफे ने एक महीना बाद इसी हीरे की खेप को अपने समूह से जुड़ी एक और इकाई डायमंड्स 'आर' अस को 6,82,760 डॉलर में भेज दिया. एफडीआई ने तकरीबन 27 दिनों के अंदर दो बार 15.55 कैरेट का फैन्सी यलो कुशन VS1 हीरा एक्सपोर्ट किया और एक बार इंपोर्ट भी किया. रिकॉर्ड से पता चलता है कि हीरे को एफडीआई, फायरस्टार इंडिया और हांगकांग की फर्जी कंपनी एटर्नल डायमंड्स के जरिए भेजा गया.

पहली नजर में फर्जी नजर आते हैं तमाम सौदे

हीरा विशेषज्ञ का कहना था कि हीरे की ऊंची कीमत और बाजार में उसके कम टर्नओवर के कारण इतनी तेज रफ्तार से (जो इन तमाम सौदों में दिख रहा है) सौदे नहीं के बराबर होते हैं. इनवॉयस में मौजूद फैन्सी रंगों वाले तराशे गए हीरे का मूल्य बाजार मूल्य के मुकाबले ज्यादा आंका गया था और इसका आकार इतना बड़ा था कि पैंकिंग पर्ची से संदेह पैदा हो जाना चाहिए था.

रिपोर्ट में कहा गया, 'मिसाल के तौर पर फायरस्टार इंडिया और एफडीआई के बीच 4 अक्टूबर 2011 को 12,46,765.60 डॉलर का एलओयू सौदा हुआ. शिपिंग रिकॉर्ड और संबंधित पैकिंग लिस्ट बताते हैं कि एफडीआई ने फायरस्टार इंडिया को खूबसूरत रंगों वाले कुल 73.70 कैरेंट के कुल 19 हीरे भेजे. एफडीआई ने 19 सितंबर 2011 को फायरस्टार इंडिया को हीरों का एक्सपोर्ट किया और इस सौद की राशि 12,46,765.60 डॉलर थी. एफडीआई को 4 अक्टूबर 2011 को एलओयू फंडों के साथ भुगतान मिला.

एक्सपोर्ट से दो दिन पहले एफडीआई ने हांगकांग की संदिग्ध इकाई फैन्सी क्रिएशंस से 12,33,965 डॉलर में उतनी ही मात्रा में हीरे का इंपोर्ट किया. दूसरे शब्दों में कहें, तो रिकॉर्ड बताते हैं कि दो हफ्ते की अवधि में मोदी से संबंधित इकाइयों में 12 लाख डॉलर से भी ज्यादा मूल्य के तराशे गए हीरे को हांगकांग से अमेरिका भेजा गया और उसके बाद ये भारत पहुंचे. इन तमाम लेनदेन में 12,800 डॉलर का प्रॉफिट होने की बात कही गई और अगर शिपिंग और लेनदेन संबंधी बाकी खर्चों को शामिल कर लिया जाए, तो प्रॉफिट और कम हो जाएगा.'

मुख्य तौर पर नीरव मोदी की फर्जी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए पंजाब नेशनल बैंक द्वारा तकरीबन 1,425 एलओसी जारी किए गए किए गए थे. ये फर्जी कंपनियां खुद को एक्सपोर्टर बताती थीं. हांगकांग की ऑराजेम्स को 517, यूएई की पैसिफिक डायमंड्स एफजेडई को 370, हांगकांग की सिनो ट्रेडर्स को 333, यूएई के ट्राई कलर जेम्स एफजेडई को 320, सनशाइन जेम्स लिमिटेड को 273 और डियाडेम्स एफजेडसी को 243 एलओयू जारी किए। इसके अलावा, फैंसी क्रिएशंस को 168 और यूनिटी ट्रेडिंग एफजेडई को 167 एलओयू जारी किए गए.

रहस्यमयी और संदिग्ध खेल

फायरस्टार के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर अजय गांधी ने 16 फरवरी 2017 को 'विदेशी ग्राहक और संबद्ध ग्राहक' विषय के साथ एक ईमेल भेजी. इसमें जिन इकाइयाों का ब्यौरा पेश किया गया था, वे फर्जी कंपनियां थीं. यह पूरा घटनाक्रम संदिग्ध इकाइयों के जरिए मोदी के संदिग्ध कारोबार के बारे में बयां करता है. इस ईमेल में किसी भी वैध अंतरराष्ट्रीय ग्राहक का जिक्र नहीं है और यह इस बात का सबूत है कि गांधी को पता था कि ईमेल में सूचीबद्ध इकाइयां स्वतंत्र ग्राहक नहीं बल्कि संबद्ध इकाइयां हैं. जांच में पता चला कि गांधी को अपने निजी ईमेल एकाउंट पर भारत में मौजूद नीरव मोदी की निजी सहायक का निर्देश मिला था. इसमें कहा गया था कि गांधी जीमेल पर सिर्फ इन (संदिग्ध ) इकाइयों के बारे में उनसे (सहायक) बात करें.

बहरहाल, ये फर्जी कंपनियां किस तरह से चल रही थीं? जांच रिपोर्ट के मुताबिक, यूएई में 2010 में यूनिवर्सल फाइन ज्वैलरी नामक कंपनी बनाई गई, जिसका ऑफिस शारजाह के सैफ जोन में था. दो मंजिला इमारत में मौजूद यूनिवर्सल फाइन के ऑफिस में सिर्फ एक डेस्क की जगह थी. संबंधित जगह का दौरा करने पर पता चला कि यूनिवर्सल फाइन के लिए तय ऑफिस की जगह अपोलो एनर्जी एफजेडई काबिज है. वहां ताला लगा हुआ था और जांचकर्ताओं को ईजी लाइसेंसिंग विभाग की तरफ से बताया गया कि यूनिवर्सल फाइन का ऑपरेशन मई 2018 में ही खत्म हो गया. अंदरूनी दस्तावेजों से संकेत मिलते हैं कि यूनिवर्सल और अमेरिकी कंपनी ए जैफे दोनों पर मोदी के पार्टनर्स का नियंत्रण था.

मिसाल के तौर पर नीरव मोदी के परिवार से जुड़ी न्यूयॉर्क की इकाई एसडीसी डिजाइंस के मैनेजर श्रीधर कृष्णन ने 4 फरवरी 2013 को अपने पर्सनल ईमेल का इस्तेमाल करते हुए भंसाली और मोदी के फर्म पार्टनर हेमंत भट्ट को मेल भेजी थी. कृष्णन ने भट्ट और भंसाली से कहा था कि 'आपको आज यूनिवर्सल एफजेडई में 14 लाख मिल जाएंगे. कृप्या यह रकम ए जैफे को ट्रांसफर कर दें.' दो दिनों के बाद भट्ट ने यूनिवर्सल को फंड मिलने और 5 फरवरी 2013 को 'एंपायर' द्वारा ए जैफे को 13,91,570 डॉलर के भुगतान के बारे में पुष्टि की. ऐसा लगता है कि 'एंपायर' का जिक्र एंपायर जेम्स के सिलसिले में किया गया है. एंपायर जेम्स एक और इकाई थी, जिसकी तरफ से भट्ट द्वारा सौदों को अंजाम दिया जाता था.

फैन्सी क्रिएशंस का अस्तित्व जून 2010 में आया था और इसका ऑफिस कंपनी के रजिस्टर्ड पते यानी यूनिट बीओ3, 2/एफ,समिट बिल्डिंग 30 मन युए स्ट्रीट, हंग होम, कोलून पर मौजूद है. फायरस्टार के एक कर्मचारी द्वारा 2016 में तैयार किए गए दस्तावेज मे नीलेश खेतानी को भी फैन्सी का मालिक और मैनेजर व फायरस्टार का पूर्व कर्मचारी बताया गया है.

जांच रिपोर्ट के मुताबिक, 'ऑफिस स्थायी रूप से बंद जान पड़ता है. ऑफिस में जंक मेल का ढेर लगने के कारण जांचकर्ताओं ने ऑफिस का इस्तेमाल नहीं होने के बारे में पुष्टि की. बिल्डिंग के स्टाफ ने बताया कि कभी-कभार कोई पाकिस्तानी या हिंदुस्तानी शख्स ऑफिस आता है. जांचकर्ताओं को तीन अलग-अलग पते पर इस तरह के अनुभव हुए. हर ठिकाने पर सिक्योरिटी गार्ड कंपनी का नाम नहीं पहचान पाए और फैन्सी क्रिएशंस का नाम बिल्डिंग की डायरेक्टरी में नहीं नजर आया.'