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कड़क चाय पिलाने की मेरी आदत रही है-मोदी

पीएम मोदी ने नोटबंदी के कड़क फैसले को अमीरी-गरीबी से जोड़कर एक बड़ी लकीर खींचने की कोशिश की है.

Amitesh

‘जब मैं चाय बनाता था तो गरीब कहते थे कि जरा कड़क चाय बनाना, लेकिन, अमीरों को कड़क चाय अच्छी नहीं लगती थी. मेरी आदत रही है कड़क फैसले लेने की. जिससे गरीबों को तो नहीं, अमीरों को परेशानी उठानी पड़ रही है.’

पीएम मोदी ने नोटबंदी के कड़क फैसले को अमीरी-गरीबी से जोड़कर एक बड़ी लकीर खींचने की कोशिश की है.


गाजीपुर की रैली में मोदी यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा ‘आपके वोट की ताकत है कि गरीब नींद से सो रहा है और अमीर नींद की गोली के लिए बाजार में चक्कर काट रहा है.’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूपी के गाजीपुर की रैली में जब यह बयान दिया तो इसमें संदेश साफ था. वो किसी भी सूरत में उनलोगों को नहीं छोड़ने वाले जिन्होंने गलत तरीके से रुपए जमा कर अमीरी हासिल की है.

कालेधन रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के बाद मोदी ने अब इस लड़ाई को ईमानदारी बनाम बेईमानी की लड़ाई में तब्दील करने की पूरी कोशिश की है. मोदी इस महायज्ञ में लोगों से आहुति मांग रहे हैं.

मोदी की कोशिश है अब इतने बड़े कदम को कैसे सही ठहराया जाए? मोदी को एहसास है आम लोगों को किस तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है. बैंकों और एटीम के सामने लगी लंबी-लंबी कतारें और जरूरत के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर जनता परेशान है. लेकिन, मोदी और मोहलत मांग रहे हैं. मोहलत 50 दिन की. मोदी इस लड़ाई को 50 दिन की तकलीफ बनाम 19 महीने के आपातकाल से भी जोड़कर बड़ा प्रहार कर रहे हैं.

मोदी के निशाने पर देश में आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस पार्टी है जिसे आपातकाल के काले कारनामे की याद दिलाकर मोदी अपने कालेधन के खिलाफ सफाई अभियान को जायज ठहरा रहे हैं.

मोदी ने कांग्रेस के अलावा एसपी, बीएसपी समेत उन दलों के उपर भी निशाना साधा जो अब तक नोटबंदी पर लोगों की परेशानियों की आड़ में उन पर हमला बोल रहे हैं. मोदी ने गाजीपुर से पलटवार करते हुए कहा कुछ राजनीतिक दलों को डर सता रहा है कि नोटों का क्या करें? कई नेताओं की तो मुंडी ही नहीं दिखती थी इतनी बड़ी नोटों की माला हुआ करती थी.

विपक्ष के हमले का जवाब देते हुए मोदी की कोशिश है कि संदेश यह जाए कि भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ मोदी अकेला खड़ा है जिसे बाकी विरोधी रोकने की कोशिश कर रहे हैं. अपने-आप को भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान का सबसे बड़ा झंडाबरदार और विपक्ष को इस राह में रोड़ा अटकाने वाला बताकर मोदी ने ईमानदारी बनाम बेईमानी की इस लड़ाई में सबको बेनकाब करने की तैयारी की है.

‘अब गरीब-अमीर सब बराबर हो गए हैं. किसी में कोई अंतर नहीं.’ यह कहकर मोदी ने लाइन में खड़े रहे गरीब, बेसहारा और उस तबके का भरोसा जीतने की कोशिश की है जो अब तक ठगा-सा महसूस कर रहा था. मोदी आम जनता के बीच ऐसे नेता की छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो गरीबी-अमीरी के बीच चौड़ी होती खाई को पाटना चाहता है.

लेकिन, सबके बावजूद मसला आम आदमी से जुड़ा है. उसके दर्द पर फिलहाल मरहम लगने के बजाए उसे सांत्वना के सिवाय कुछ मिल नहीं रहा. सरकार के लिए बेचैनी का कारण भी यही है. मोदी बड़े और साहसिक फैसले के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने बड़ा जोखिम मोल लिया है. वक्त रहते दर्द दूर नहीं हुआ तो इस बार चाय का कड़क स्वाद और भी कड़वा हो सकता है.