view all

मोदी ने नोटबंदी पर की मन की बात

मोदी अपनी लड़ाई को राजनीति से बाहर निकालकर जनता के बीच ले जा रहे हैं.

सुरेश बाफना

आज जिन लोगों ने मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम को सुना है, उनको यह स्पष्ट हो गया होगा कि प्रधानमंत्री के लिए नोटबंदी का मामला अब केवल काले धन, भ्रष्टाचार व आंतकवाद के खिलाफ लड़ाई से ही नहीं जुड़ा हुआ है. इस कदम के माध्यम से वे लोगों के सैंकड़ों साल पुराने आर्थिक व्यवहार को बदलकर देश की अर्थव्यवस्था को कैशलैस बनाने की दिशा में तेजी के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं.

मोदी ने इस सच्चाई को स्वीकार किया कि देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह कैशलैस नहीं, लेकिन लैसकैश तो बनाया जा सकता है. इस संबंध में उन्होंने कम विकसित अफ्रीकी देश केन्या का जिक्र किया, जहां लोग ई-पैसा कार्ड का प्रयोग करके कैश की आवश्यकता को निम्नतम स्तर पर लाने में कामयाब हुए हैं.


लंबी लड़ाई के लिए लोगों को तैयार रहने का आह्वान

संसद में नोटबंदी एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, लेकिन मोदी ने आज इसे जनता के हित का मुद्दा बनाने की भावनात्मक व तार्किक कोशिश की. नोटबंदी की वजह से देश की जनता को कई स्तरों पर भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इस वास्तविकता को मोदी स्वयं स्वीकार करते हैं और इस लंबी लड़ाई के लिए आम लोगों को तैयार रहने का आह्वान करते हैं.

मोदी की आज हुई ‘मन की बात’ में एक भी मुद्दा ऐसा नहीं था, जिस पर विपक्षी दल उन्हें कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर सकें. वे अपनी इस लड़ाई को राजनीति से बाहर निकालकर जनता के बीच ले जा रहे हैं. विपक्षी दलों को भी स्पष्ट संदेश है कि नोटबंदी पर मोदी सरकार की गाड़ी इतनी आगे बढ़ गई है कि अब एक भी कदम पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता.

नोटबंदी को अमीर-गरीब के बीच का संघर्ष बनाने की कोशिश

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी राजनीतिक चतुराई का इस्तेमाल करके ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि जो भी उनके इस नोटबंदी अभियान का विरोध करता है, वह काले धनवालों के समर्थक के रूप में दिखाई देता है. आजादी के बाद की हिन्दी फिल्मों में जिस तरह गरीबों व अमीरों के बीच संघर्ष दिखाई देता था, लगभग उसी शैली में मोदी ने भी नोटबंदी को गरीब-अमीर के बीच होनेवाले संघर्ष के रूप में परिभाषित कर दिया है.

नोटबंदी पर जारी लड़ाई को मोदी ने जनता की लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश कर विपक्षी दलों के सामने नई चुनौती पेश की है. विपक्ष ने 28 नवंबर को नोटबंदी के खिलाफ आक्रोश दिवस मनाने का निर्णय लिया है. मोदी ने इस आक्रोश दिवस को फ्लॉप करने का अभियान भी शुरु कर दिया है. मोदी व विपक्ष की लड़ाई अब सड़क पर आ गई है.

मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ‘चाय पर चर्चा’ शुरु की थी, अब नोटबंदी की वजह से ‘चाय पर शादी’ हो रही है. ‘मन की बात’ को जिस तरह से स्ट्रक्चर किया गया है, वह मीडिया विशेषज्ञों के लिए शोध का विषय होना चाहिए. किसी राष्ट्राध्यक्ष द्वारा देश की वास्तविकता से लोगों को अवगत कराकर उन्हें मानसिक रूप से तैयार करने में ‘मन की बात’ एक सफल मीडिया कार्यक्रम के तौर पर देखा जाना चाहिए.

(खबर कैसी लगी बताएं जरूर. आप हमें फेसबुक, ट्विटर और जी प्लस पर फॉलो भी कर सकते हैं.)