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पटना यूनिवर्सिटी एलुमनाई मीट: पीएम सहित कई दिग्गजों का होगा जमावड़ा

पटना यूनिवर्सिटी को जबतक केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक इसको आॅक्सफोर्ड की बराबरी में नहीं लाया जा सकता.

Kanhaiya Bhelari

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में बतौर चीफ गेस्ट शिरकत कर रहे हैं. ये देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जो इस विश्वविद्याालय के किसी समारोह में भाग ले रहे हैं. हालांकि, 1953 में तात्कालिक वजीरे आलम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक खण्ड दरभंगा हाउस में दरभंगा महराज के अतिथि के रूप में कुछ क्षण के लिए आए थे.

विश्वविद्यालय परिसर पीएम की शानदार और जानदार स्वागत करने के लिए सज-धजकर दुल्हन की तरह तैयार है. शताब्दी समारोह का मुख्य कार्यक्रम साइंस कॉलेज में होगा. नरेंद्र मोदी समारोह में मात्र एक घंटा और 15 मिनट रहने के बाद मोकामा चले जाएंगे जहां उनको करीब आधा दर्जन सरकारी योजनाओं का शिलान्यास करना है.


एक कमरे से शुरू हुई यूनिवर्सिटी

बिहार के पहले और देश के सातवें विश्विद्यालय पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1 अक्टूबर 1917 में की गई थी. पटना हाईकोर्ट के एक कमरे से शुरू होकर यह यूनिवर्सिटी कई क्षेत्रों खासकर शिक्षा के क्षेत्र में कई मानक स्थापित किया. ओडिशा के विभाजन के पहले तक भुवनेश्वर से लेकर कटक तक के तमाम कॉलेज इस यूनिवर्सिटी के अंग हुआ करते थे. वहीं 1938 तक नेपाल की राजधानी काठमांडू से लेकर वीरगंज तक के विभिन्न महाविद्याालय भी देश के इस प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से अटैच्ड थे.

एक दशक तक कुलपति हाईकोर्ट के कार्यालय से ही प्रशासनिक कार्यों को संचालित करते थे. यूनिवर्सिटी का अपना प्रशासनिक भवन 1927 में बनकर तैयार हुआ. पहले बैच का नामांकन 1919 में हुआ. पहले साल में फिजिक्स, केमिस्ट्री, अंग्रेजी और इतिहास की पढ़ाई शुरू की गई. 1921 में पहली परीक्षा हुई.

1927 में व्हीलर सीनेट हाल के बनने के पूर्व तक दीक्षांत समारोह राजभवन के दरबार हाल में आयोजित होता था. विषयवार टाॅपर को गर्वनर और कुलपति के हाथों संयुक्त रूप से गोल्ड मेडल प्रदान करने की परंपरा थी. पटना यूनिवर्सिटी का पहला कुलपति हायर एजुकेशन के तत्कालीन डाइरेक्टर जेजे जेनिन को बनाया गया था.

ओडिशा, झारखंड वाला बिहार

1912 में पश्चिम बंगाल के अलग होने के बाद बिहार में अलग सचिवालय, हाईकोर्ट और यूनिवर्सिटी आदि के निर्माण करने की दिशा में गंभीरता से पहल की गई. तबके बिहार, जिसमें ओडिशा और झांरखंड भी शामिल था, में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए सरकार की तरफ से एक 18 सदस्यीय कमेटी की गठन 1913 में की गई थी. इस कमेटी में 11 ब्रिटिश और 7 भारतीय शिक्षाविद और अधिकारी थे. आर नाथन को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था.

सौ साल पुराने इस यूनिवर्सिटी के बारे में अनगिनत कहानियां हैं. उन्हीं में से एक कहानी है कि अपने शुरूआती कालखंड में यह यूनिवर्सिटी आॅक्सफोर्ड का तगमा लिए हुए थी. वैसे तो देश के कई अन्य यूनिवर्सिटी को भी यह तगमा मिला था लेकिन जो शैक्षणिक वातावरण इस यूनिवर्सिटी में तैर रहा था वह दूसरे जगहों पर नहीं मिलता था. यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफेसर रामबचन राय का कहना है कि पटना यूनिवर्सिटी में करीब 5 दशक तक ज्ञानी शिक्षक और अनुशासित छात्र हुआ करते थे.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ली गई प्रेरणा

पटना यूनिवर्सिटी के छात्र रहे वरिष्ठ पत्रकार नलीन वर्मा कहते हैं, 'यूनिवर्सिटी की स्थापना ब्रिटेन के प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी आॅक्सफोर्ड की तर्ज पर की गई थी. इसमें शिक्षकों और छात्रों को रहने के लिए आवास और छात्रावास का निर्माण किया गया था. सांइस के विद्याार्थियों के लिए उच्च गुणवत्ता के लैब और लाइब्रेरी के साथ-साथ भवनों का निर्माण बहुत हद तक आॅक्सफोर्ड से मिलती-जुलती निर्धारित किया गया था. प्रमुख भवन 1940 में बनकर तैयार हो गया. इसके 15 साल बाद दरभंगा महराज ने कई विशाल भवनों को यूनिवर्सिटी को दान कर दिया जो इसकी खुबसूरती में चार चांद लगा दिया.'

अपने बिहार यात्रा के क्रम में महात्मा गांधी ने भी पटना यूनिवर्सिटी का दौरा किया था और यहां की शैक्षणिक वातावरण को देख-सुनकर प्रभावित हुए थे. आजतक इस यूनिवर्सिटी ने सैंकड़ों विभूतियों को पैदा किया है जिन्होंने अपने कौशल से समाज के विभिन्न क्षेत्रों को प्रकाशमय किया है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी यहीं से पठन-पाठन किया था. 1974 में जेपी ने संपूर्ण क्रांति की बीज यहीं के होनहार और देशभक्त छात्रों के साथ मिलकर बोया और परवान चढ़ाया था.

बड़ी-बड़ी शख्सियतों का गढ़ रही है पटना यूनिवर्सिटी

इस यूनिवर्सिटी से कम से कम 5 सीएम और दर्जनों कद्दावर राजनीतिज्ञों ने शिक्षा ग्रहण किया है. वर्तमान सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, आर के सिंह, अश्विनी कुमार चौबे और राम विलास पासवान पटना यूनिवर्सिटी के छात्र रह चुके हैं. देश के नामी इतिहासकार राम शरण शर्मा, राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर और हिंदी सिनेमा के एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा भी इसी यूनिवर्सिटी की उपज हैं. अभी तक पटना यूनिवर्सिटी कम से कम 500 से ज्यादा आईएस अफसर देश को दिया है.

बहरहाल, हाल के कुछ वर्षों में यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक वातावरण में कई कारणों से गिरावट देखा गया है. लेकिन वर्तमान कुलपति प्रोफेसर रासबिहारी प्रसाद सिंह जी जान से इसकी खोई प्रतिष्ठा को वापस खड़ी करने में लगे हैं. उनका दावा है कि 2020 तक हर हालत में पटना यूनिवर्सिटी का खोया गौरव वापस कर लिया जाएगा.

लेकिन राज्य के प्रबुद्धजन का मानना है कि जबतक इसे केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक इसको आॅक्सफोर्ड की बराबरी में नहीं लाया जा सकता. पीएम की विजिट से इसकी उम्मीद बढ़ी है. आशा ही नहीं सबको विश्वास है कि विकास पुरुष नरेंद्र मोदी बिहारवासियों की इस जायज मांग को नजरअंदाज नहीं करेंगे.