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मकान खरीदारों के हितों, अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

दायर याचिका में दिवाला संहिता के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है

Bhasha

बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा रीयल एस्टेट फर्मों को दिवालिया घोषित करने के लिए कार्यवाही शुरू होने पर लाखों मकान खरीदारों के अधिकारों और वित्तीय हितों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक नई जनहित याचिका दायर की गई है.

कोर्ट में यह जनहित याचिका वकील विवेक नारायण शर्मा ने दायर की है.


याचिका में दावा किया गया है कि नई दिवाला संहिता, 2016 में वित्तीय लेनदारों या सक्रिय लेनदारों की परिभाषा में मकान खरीदारों को शामिल नहीं किया गया है. मगर उन्हें लेनदारों की सूची में सबसे अंत में रखा गया है जिनके दावों का निपटारा दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही के दौरान किया जाएगा.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ इस याचिका पर 6 अक्टूबर को सुनवाई करेगी. इस पीठ के सामने ही रीयल एस्टेट कंपनियों यूनिटेक, सुपरटेक और आम्रपाली के खिलाफ अनेक याचिकाएं पहले से ही लंबित हैं.

इस याचिका में दिवाला संहिता के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है. साथ ही यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि जिन मकान खरीदारों को अपने घर का कब्जा नहीं मिला है, वो भी ऐसी रीयल एस्टेट कंपनी के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला प्रस्ताव प्रक्रिया शुरू करने की पात्रता रखते हैं.

इसमें यह भी कहा गया है कि मकान खरीदारों की हिमायत करने वाले कानून रेरा के प्रावधानों को इस संहिता द्वारा सीमित नहीं किया जाना चाहिए.

इस समय रीयल एस्टेट कंपनी के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही शुरू होने के साथ ही अदालतों और उपभोक्ता मंच के आदेश बेअसर हो जाते हैं क्योंकि उन पर अमल नहीं किया जा सकता है. यही नहीं, ऐसी कंपनी के खिलाफ मकान खरीदार कोई नया मामला भी नहीं ला सकते हैं.

याचिका में रीयल एस्टेट फर्मों का ‘फारेन्सिक आडिट’ करा कर मकान खरीदारों के योगदान का पता लगाने और उनके द्वारा निवेश किए गए धन की रक्षा करने का भी अनुरोध किया गया है.