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पेट्रोलियम कीमतें आसमान पर: क्या सरकार इस तेल संकट का हल जल्दी निकाल पाएगी?

जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे अगले छह महीने तक इससे राहत मिलने के आसार दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहे

FP Staff

देश में तेल की कीमतों में आग लगी हुई है. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने आम लोगों को परेशान कर दिया है, लेकिन चिंता की बात तो ये है कि जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे अगले छह महीने तक इससे राहत मिलने के आसार दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहे. जानकारों का मानना है कि आने वाले कुछ महीनों में कच्चे तेल की कीमतों में और उछाल आएगा जिसका असर घरेलू पेट्रोल और डीजलों की कीमत पर पर भी दिखाई देगा. जाहिर है कि इसका खामियाजा आम आदमी को ही भुगतना पड़ेगा.

देश की आर्थिक राजधानी कही जानी वाली मुंबई में तेल की कीमतें सबसे ज्यादा है. इंडियन ऑयल के आंकड़ों के मुताबिक वहां पर पेट्रोल की कीमत 84.99 रुपए प्रति लीटर और डीजल की कीमत 72.76 प्रति लीटर है.


वहां पर पेट्रोल की कीमत में किस तरह से इजाफा हुआ है उसे आंकड़ों के आधार पर आसानी से समझा जा सकता है. 22 मई को मुंबई में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत 84.70 पैसे थी जो कि 13 मई के पेट्रोल की कीमत से 2.22 रुपए ज्यादा थी. यानी कि लगभग दस दिनों के अंदर में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत में 2 रुपए से ज्यादा की बढ़ोतरी हो गयी. ठीक उसी तरह से डीजल की कीमतों ने भी उछाल ली.

मंगलवार को जहां डीजल की प्रति लीटर कीमत 72.48 रुपए थी वहीं 13 मई को इसकी कीमत 70.20 रुपए प्रति लीटर थी. डीजल की कीमतें में भी दस दिनों के अंदर 2 रुपए से भी ज्यादा का इजाफा हुआ. अगर पेट्रोल डीजल की कीमतों की तुलना इस साल के शुरुआत में रही कीमतों से किया जाए तो पेट्रोल पांच महीने में 6.83 रुपए और डीजल 9.21 रुपए प्रति लीटर मंहगा हो चुका है.

हालात और बिगड़ने की संभावना है क्योंकि इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि अगले छह महीनों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में और इजाफा होगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों इस महीने पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा रही है. रॉयटर्स के मुताबिक एशियाई बाजारों में मांग और अमेरिका के तेल उत्पादक देश ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाने की घोषणा, तेल की कीमतों में उछाल की सबसे बड़ी वजह माने जा रहे हैं. ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध का भारत के लिए खासा महत्व है क्योंकि ईरान भारत को काफी कच्चा तेल निर्यात करता है.

बढ़ती तेल की कीमतों से परेशान सरकार इस समस्या का हल निकालने के लिए जूझ रही है. इस सप्ताह की शुरुआत में केंद्र सरकार ने कहा है कि वो तेल संकट से निपटने के लिए कोई समाधान निकालने की कोशिश कर रही है. पेट्रोलियम मंत्री के कहा है कि सरकार इस समस्या का समाधान निकालने कि कोशिश कर रही है और उम्मीद जतायी जा रही है कि इस सप्ताह के अंत कर इस संबंध में घोषणा की जा सकती है.

घरेलू बाजार में तेल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों पर निर्भर करती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में लागातार इसलिए बढ़ोतरी हो रही है क्योंकि ईरान की तरफ से कम आपूर्ति और तेल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक वेनेजुएला और तेल निर्यातकों की सबसे बड़ी संस्था ओपेक (ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) की तरफ से तेल उत्पादन में कमी कर दी गयी है.

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इस विषय में ज्यादा कुछ करने की स्थिति में है नहीं. दरअसल अब पेट्रोल और डीजल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कीमतों के हिसाब से प्रतिदिन के आधार पर तय होती है ऐसे में सरकार लगातार बढ़ती कीमतों के बाद भी इनकी कीमतों पर नियंत्रण नहीं लगा सकती है.

खेतान एंड को. के पार्टनर दिब्यांशु सिन्हा के मुताबिक पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर से एक्साइज ड्यूटी और वैट कम कर देना इस समस्या का हल नहीं है और ऐसा करने से अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और वैसे भी कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी पर नियंत्रण सरकार से बाहर की चीज है. दिब्यांशु का मानना है कि टैक्स सरकार के लिए राजस्व का महत्वपूर्ण स्रोत है ऐसे में सरकार को चाहिए कि अगर एक निश्चित सीमा के बाद भी कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो ऐसी स्थिति में लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार को टैक्स में कमी करने की कोशिश करनी.

दिब्यांशु का मानना है कि टैक्स को खत्म कर देना ही इसका उपाय है. ऐसा मानना गलत है क्योंकि टैक्स ने केवल सरकार के राजस्व का मुख्य स्रोत है बल्कि इस माध्यम से एकत्रित हुआ धन भी आम लोगों के भले के लिए ही इस्तेमाल होता है.

पीडब्ल्यूसी में पार्टनर और लीडर कवन मुख्तयार के मुताबिक पेट्रोल और डीजल पर से वैट और एक्साईज ड्यूटी को समाप्त करना इस समस्या का केवल अस्थायी समाधान है. मुख्तयार याद दिलाते हुए कहते हैं, 'हम लोगों का राजकोषीय घाटा है और तेलों पर सब्सिडी देकर निश्चित रुप से हम इस संबंध में अच्छा नहीं कर सकेंगे'.

उनके मुताबिक तेल महंगा होता है और आज के समय में कोई भी सरकार उस पर सब्सिडी देने का जोखिम उठाने से पहले हजार बार सोचेगी. मुख्तयार का सुझाव है कि सरकार का ध्यान दक्षता पर ज्यादा होना चाहिए. ठीक उसी तरह से जिस तरह से गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के लागू होने के बाद ट्रांसपोर्ट सेक्टर की कार्य कुशलता बढ़ गयी है. मुख्तयार को लगता है कि इस तरह के उपायों से तेल को भी सहारा मिल सकता है

रुपया

कच्चे तेल की कीमतों ने 22 मई को 80 डॉलर का आंकड़ा छू लिया जो कि पिछले चार सालों में सबसे ज्यादा है. लेकिन भारत के लिए इससे भी ज्यादा चिंता की बात रुपए का लगातार नीचे गिरना है.

ऑटोमोटिव एंड ट्रांसपोर्टेशन के डायरेक्टर कौशिक माधवन के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है. माधवन के अनुसार, 'जबतक कमजोर होता रुपया अगले कुछ दिनों और हफ्तों में नहीं सुधरेगा तब तक तेलों की कीमतों में भी इजाफा होता रहेगा, भले ही कच्चे तेल की कीमतें अभी के मूल्य पर ही स्थिर क्यों न हो जाएं'.

महंगाई का दबाव

मुख्तयार आगाह करते हुए कहते हैं कि उपभोक्ताओँ को अभी पेट्रोल डीजल की कीमतों में किसी तरह के राहत की उम्मीद नहीं लगानी चाहिए. अभी तेल की कीमतें बढ़ते बढ़ते उस स्तर तक पहुंच गयी है जहां पर मंहगाई का दबाव बना हुआ है ऐसे में सामान्य इस्तेमाल की चीजों के दाम में बढ़ोतरी होनी शुरू हो गयी है. अनाज और फल सब्जियों में दाम में तो बढ़ोतरी हो भी चुकी है और जल्द ही अन्य इस्तेमाल की चीजों के भी दाम बढ़ जाएंगे.

21 मई को रुपए में 12 पैसे की और गिरावट हुई और वो डॉलर के मुकाबले पिछले 16 महीनों के सबसे निम्नतर स्तर 68.12 तक पहुंच गया. इसके पीछे आयातकों और कार्पोरेट की ज्यादा मांग और कमजोर वैश्विक संकेतों को कारण बताया जा रहा है.

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए सोमवार को केंद्र और राज्य सरकार से मांग की वो इन पर से एक्साइज ड्यूटी और वैट को कम करे.

पीटीआई के मुताबिक मोदी सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में तेल की कीमतों में से 2 रुपए प्रति लीटर की कटौती एक्साइज ड्यूटी में कमी के नाम पर की थी लेकिन इस कटौती से पहले सरकार नवंबर 2014 से जनवरी 2016 तक नौ बार इन पर टैक्स बढ़ा चुकी थी.

पिछले साल अक्टूबर में जब दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 70.88 रुपए और डीजल की कीमत 59.14 रुपए प्रति लीटर हुई तो केंद्र सरकार ने इन पर लगाए जाने वाले एक्साइज ड्यूटी में से 2 रुपए की कमी कर दी थी जिससे पेट्रोल की कीमत घट कर 68.38 रुपए और डीजल की कीमत 56.89 रुपए प्रति लीटर रह गयी थीं.

केंद्र सरकार ने नवंबर 2014 और जनवरी 2016 के बीच में एक लीटर पेट्रोल पर 11.77 रुपए की बढ़ोतरी की थी और डीजल पर 13.47 रुपए की. सरकार ने ऐसा करके अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की गिरती कीमतों से आम लोगों को मिलने वाले फायदे को छीन लिया था लेकिन इससे सरकार के राजस्व में जबरदस्त इजाफा हुआ. सरकार को जहां 2014-15 में 99,000 करोड़ का राजस्व मिला था वो बढ़ कर 2016-17 में 2,42,000 करोड़ तक पहुंच गया.