view all

अविश्वसनीय! यात्रीगण कृपया ध्यान दें, आपकी ट्रेन सिर्फ 60 सेकंड लेट है

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जब बैलेट पर सवाल उठ सकते हैं तो फिर बुलेट ट्रेन की हैसियत ही क्या है?

Kinshuk Praval

जिस देश में बैलेट पर सवाल उठ सकते हैं तो वहां बुलेट ट्रेन पर भी सवाल उठ सकते हैं. सवाल उठाए जा सकते हैं कि देश में जब लेट ट्रेन की कमी नहीं तो फिर बुलेट ट्रेन की क्या जरूरत?

वाकई ये जरूरी है कि हाई स्पीड रेल कॉरिडोर बनाने से पहले देश के रेल नेटवर्क को मजबूत बनाया जाए ताकि दुर्घटनाओं की त्रासदियों से मुक्ति मिले. लेकिन सिर्फ इसी वजह से स्पीड की नई तकनीक और तकनीक के नए अवसर को खारिज भी नहीं किया जा सकता है.


विरोध की राजनीति पर बहस की जा सकती है लेकिन सिर्फ विरोध करने के लिए ही अगर विरोध किया जाए तो फिर कोई भी तर्क बेमानी ही होगा. जरूरत उस सोच में बदलाव की है जो किसी नई तकनीक या नए कदम को स्वीकार न करने के लिए कई वजहें एक साथ गिना देती है.

बुलेट ट्रेन को लेकर विरोध कर रही राजनीतिक पार्टियों का आरोप है कि बुलेट ट्रेन का सपना आम आदमी का नही बल्कि अमीरों और व्यापारी वर्ग के लिए लाई जा रही है. सियासतदानों से ये पूछना भी जरूरी है कि क्या देश का अमीर होना या फिर व्यापारी होना गुनाह है?

क्या अमीर और व्यापारी वर्ग का देश में रोजगार देने या फिर देश के विकास में योगदान नहीं होता है? क्या समाजवाद के चश्मे से इक्कीसवीं सदी के भारत को देखते रहने की आदत बदलने की जरूरत नहीं है?

सिर्फ विरोध के लिए विरोध न हो

याद कीजिए जब देश में राजीव गांधी कंप्यूटर क्रांति लाए थे. कंप्यूटर को लेकर भी संदेह से देखा गया था और उसे लोगों की नौकरी पर दीमक माना गया था. आज तकरीबन तीस साल बाद पूरा देश कंप्यूटर होने का मतलब समझ चुका है और ये भी जान गया है कि अगर ये नहीं होता तो देश में कामकाज की रफ्तार क्या होती?

कुछ इसी तरह मशीनों-कारखानों के आने के बाद हथकरघा कारीगरों में भी असंतोष पनपा होगा तो मोटर-कार और बस आने के बाद रिक्शा-तांगे वाले भी विरोध में उतरे होंगे. लेकिन क्या तकनीक का विकल्प देश के लिए तरक्की का सबब नहीं बना?

विरोध कर रहे राजनीतिक दलों को अतीत का इतिहास देखकर वर्तमान के 'सच का सामना' करना चाहिए.

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जब बैलेट पर सवाल उठ सकते हैं तो फिर बुलेट ट्रेन की हैसियत क्या है? लेकिन बुलेट ट्रेन की हैसियत को समझने की जरूरत है. देश के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ‘मेक इन इंडिया’ की इमेज ब्रांडिंग के लिए बुलेट ट्रेन की जरूरत है.

लोगों को रोजगार देने के लिए बुलेट ट्रेन की जरूरत है. तमाम विकसित देशों की कतार में अपना दावा ठोकने के लिए भी बुलेट ट्रेन की जरुरत है. नई तकनीक को आत्मसात करने की देश को जरूरत है. आखिर देश कब तक 80 और 100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार पर निर्भर रहेगा. दुनिया 600 किमी प्रतिघंटे से ज्यादा की रफ्तार से ट्रेन चला रही है तो ‘न्यू इंडिया’ कम से कम 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार का सपना तो देख ही सकता है.

ब्रांड इंडिया का मैस्कट होगी बुलेट ट्रेन

ग्लोबल दुनिया में भारत बड़ी तेजी से अर्थव्यवस्था की रफ्तार पकड़ रहा है. भारत में दुनिया निवेश की संभावना देख रही है. जापान जैसा देश भारत का तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है. साल 2016-17 में जापान ने 4.7 अरब डॉलर का निवेश किया है और उसकी तकरीबन 12 सौ कंपनियां देश में काम कर रही हैं.

जापान खुद बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट के कुल खर्च का 88% दे रहा है. ये कर्ज सिर्फ  0.1% की ब्याज दर पर पचास साल के लिए है. जापान के निवेश के बाद ही दुनिया के दूसरे देश भी भारत के रेल नेटवर्क में अपनी दिलचस्पी दिखा सकते हैं. डोकलाम मुद्दे पर भारत को आंखें दिखाने वाला चीन भी भारत के बुलेट ट्रेन में निवेश की हिस्सेदारी का सपना देख रहा है.

बुलेट ट्रेन की वजह से न सिर्फ टेकनोलॉजी का नया दौर होगा बल्कि पर्यटन, व्यापार और रोजगार को भी रफ्तार मिल सकेगी. जापान युवाओं को हाई स्पीड रेल नेटवर्क की तकनीक सिखाएगा. राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन के तहत युवाओं को नया कौशल सीख कर रोजगार का मौका भी मिलेगा. मेक इन इंडिया के तहत देश में भविष्य में इसके कलपुर्जों के कारखाने भी बनेंगे.

जिस तरह आज भारतीय रेल से 13 लाख कर्मचारी जुड़े हैं उसी तरह भविष्य में बुलेट ट्रेन की परियोजना से भी लाखों लोगों को जुड़ने का मौका मिलेगा. 12 स्टेशनों से गुजरने वाली बुलेट ट्रेन हर स्टेशन पर निर्माण,रोजगार और व्यापार का मौका भी मुहैया कराएगी.

बुलेट ट्रेन सिर्फ रफ्तार के पैमाने पर नहीं आंकी जा सकती बल्कि इससे मिलने वाले रोजगार के मौके हर क्षेत्र में मिलेंगे. ब्रांड इंडिया की इमेज के लिए बुलेट ट्रेन सोने पर सुहागा साबित हो सकती है.

एक विकासशील देश होने के बावजूद भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में दुनिया को अपना लोहा मनवाया है. इसरो ने एक साथ 105 उपग्रह लॉन्च कर रिकॉर्ड बनाया. ऐसे में अगर बुलेट ट्रेन की भूमिका सिर्फ जापान के कर्ज और फिजूलखर्च के रूप में देखी जा रही है तो फिर उपग्रहों के लॉन्च से भी परहेज करना चाहिए.

सवाल तो ये भी उठ सकता है कि देश के कई हिस्सों में पीने का जब पानी नहीं है तो मंगल और चांद पर पानी ढूंढने में पैसा खर्च करने की फिर क्या जरूरत है?

दिक्कत सिर्फ सोच में बदलाव की है. अगर कोई भी सरकार राष्ट्र हित में फैसला ले जिससे आम जनता के हित प्रभावित न हों तो उसका स्वागत होना चाहिए. इसी तरह बुलेट ट्रेन को भी राष्ट्रीय गौरव से देखने की जरूरत है.

अगर दिल्ली का लाल किला और आगरा का ताजमहल राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक हो सकते हैं तो फिर नई सदी के न्यू इंडिया के लिए बुलेट ट्रेन को राष्ट्रीय गौरव क्यों नहीं माना जा सकता है?

न्यू इंडिया 'बुलेट इंडिया' के रूप में उभरेगा

भारत ने परमाणु परीक्षण का भी साहस जुटाया. अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद खुद को परमाणु संपन्न बनाया. तमाम अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को झेलने के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत रखा. सवाल ये भी उठ सकता है कि जिस बम का भारत पहले इस्तेमाल नहीं करेगा उसे बनाने के लिए इतनी जद्दोजहद और रिस्क की क्या जरूरत थी?

सरकार की नीतियों और फैसले के विरोध का संवैधानिक अधिकार है. लेकिन जहां राष्ट्रीय गौरव और देशहित का सवाल हो वहां सोच में बदलाव की भी जरुरत है. तभी नई सदी में एशिया से न्यू इंडिया ‘बुलेट इंडिया’ के रूप में उभर सकेगा.