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बिहार: खतरे में सुशासन बाबू की छवि, पांच महीने में डबल हुई रेप और मर्डर की घटनाएं

नीतीश कुमार की पहचान लालू के 'जंगलराज ' से मुक्ति दिलाने वाले नेता के तौर पर उभरी थी और सत्ता संभालते ही अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर नीतीश ने जनता का दिल जीता

Alok Kumar

चौबीस घंटे के भीतर बिहार की राजधानी पटना और गंगा पार वैशाली में मर्डर की तीन घटनाओं ने एक बार फिर साबित किया है कि अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं. राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर क्राइम ग्राफ के सवालों को ये कह कर खारिज करते आए हैं कि इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग बढ़ गई है, आंकड़े अलग गवाही देते हैं. लेकिन न्यूज18 के पास बिहार पुलिस से मिले आंकड़े हैं, जिसे देखकर सीएम नीतीश को शायद जवाब देने में मुश्किल हो.

बिहार में मर्डर और रेप जैसी जघन्य वारदात इस साल जनवरी से मई के बीच दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है. ये आंकड़ें जनवरी से लेकर मई तक के हैं. यहां ये बताना जरूरी है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह का वाकया जून में सार्वजनिक हुआ था, जहां 34 नाबालिग लड़कियों के साथ रेप की पुष्टि हो चुकी है. लिहाजा, जून और जुलाई में ये आंकड़े और बढ़ सकते हैं.


पिछले पांच महीनों में ढाई गुना बढ़ीं रेप की घटनाएं

सबसे पहले रेप की घटनाओं को देखें तो जनवरी महीने में 74 मामले दर्ज किए गए. ये संख्या मई में बढ़कर 184 हो गई. यानी पांच महीने में रेप की शिकार हुई महिलाओं की संख्या लगभग ढाई गुना बढ़ गई. अब मर्डर के आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी में 178 हत्याएं हुईं, जो मई में बढ़ कर 322 हो गई. यानी मर्डर ग्राफ में भी दोगुनी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई.

अपहरण, लूट और जालसाजी जैसे आपराधिक मामले भी महीना-दर-महीना बढ़ते चले गए. ये आंकड़ें बिहार पुलिस की विफलता की गवाही देते हैं. जनवरी से मई के बीच बिहार पुलिस को नया डीजीपी भी मिल चुका है लेकिन हालात संभल नहीं रहे.

सीएम नीतीश कुमार ने समाज सुधार और राजनीतिक दांव-पेच के इतर कानून-व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया तो इसका राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. विपक्ष तो हमलावर है ही, एनडीए के भीतर भी लॉ एंड ऑर्डर को लेकर बेचैनी बढ़ रही है.

लॉ एंड ऑर्डर पर उपेंद्र कुशवाहा ने तो सीधे तौर पर नीतीश कुमार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. उपेंद्र कुशवाहा यहां तक कह गए, ‘नीतीश बाबू, आखिर कितनी लाशों के बाद शासन-प्रशासन जगेगा’.

जंगलराज के खिलाफ आए थे सुशासन बाबू

नीतीश कुमार की पहचान लालू के 'जंगलराज ' से मुक्ति दिलाने वाले नेता के तौर पर उभरी थी और सत्ता संभालते ही अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर नीतीश ने जनता का दिल जीता. जिसके बूते 2010 में उन्हें और ज्यादा समर्थन हासिल हुआ. फिर जातीय समीकरणों पर 2015 में वो लालू के साथ ही हाथ मिलाकर सीएम की कुर्सी पर बैठे.

लेकिन पिछले साल जब नीतीश ने यू-टर्न लेकर बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली तो तर्क यही था कि लालू की पार्टी की ओर से लगातार प्रेशर था. ये प्रेशर ट्रांसफर- पोस्टिंग से लेकर भ्रष्टाचार के मामलों में चुप रहने के लिए था. लेकिन बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद गवर्नेंस में आई गिरावट हैरान करने वाली है.

नीतीश के लिए मुश्किल इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि बचाव में तर्कों की संख्या घट रही है. सरकार की कमान उनके पास है और गृह मंत्रालय भी उनके पास है. वो जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते और पार्टी प्रवक्ताओं की तरह क्राइम ग्राफ के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराकर पल्ला झाड़ नहीं सकते.

दो महीने में दो नुकसान तो हो चुके हैं. नीतीश कुमार ने जिस शिद्दत से ब्रांड बिहार को प्रमोट किया था, उसे 34 बच्चियों के साथ सुनियोजित रेप से तगड़ा झटका लगा है. इसके अलावा शिक्षा और नौकरियों में जेंडर जस्टिस का सिद्धांत अपना कर वाहवाही लूटने वाले नीतीश की छवि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर धूमिल हुई है.