view all

रामदेव के ‘रौद्रासन’ पर योगी सरकार के ‘शीर्षासन’ में दिखा यूपी के औद्योगीकरण का सच

पतंजलि फूड पार्क प्रकरण ने यूपी को उद्यमियों के लिए आकर्षक स्थान बनाने और औद्योगीकरण के लिए हर मुमकिन सहूलियतें देने के योगी सरकार के दावों पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है

Ranjib

आमतैर पर काम न करने के लिए बदनाम उत्तर प्रदेश के सरकारी तंत्र में बीती रात से बुधवार शाम तक गजब की फूर्ती देखी गई. ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में बाबा रामदेव के पतंजलि समूह को प्रस्तावित मेगा फूड पार्क के लिए जमीन आवंटन का प्रस्ताव बनाने में यूपी की अफसरशाही की सांसें फूलती रहीं. यह वही प्रस्ताव था जिसे रामदेव और उनके समूह के लोग योगी सरकार के सवा साल में नहीं बनवा पाए. मंगलवार की देर रात पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण के एक तीखे ट्वीट ने उसकी राह महज कुछ ही घंटों बना दी.

इस पूरे प्रकरण ने यूपी को उद्यमियों के लिए आकर्षक स्थान बनाने और औद्योगीकरण के लिए हर मुमकिन सहूलियतें देने के योगी सरकार के दावों पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. योगी सरकार ने कुछ महीने पहले इन्वेस्टर्स समिट के जरिए यह माहौल बनाने में कामयाबी पाई थी कि यूपी की छवि बदलेगी. पतंजलि प्रकरण ने फिर साबित किया है कि उत्तर प्रदेश की कार्यसंस्कृति किसी भी बदलाव में बड़ा अड़ंगा है.


बालकृष्ण ने लगाया था यूपी सरकार पर उदासीनता का आरोप

बालकृष्ण ने ट्वीट में आरोप लगाया था कि यूपी सरकार की उदासीनता के कारण फूड पार्क को केंद्र सरकार से मंजूरी नहीं मिली लिहाजा इसे यूपी से ले जाकर कहीं और लगाया जाएगा. दरअसल फूड पार्क के इस प्रकरण से जुड़े कई स्तर हैं और कई किरदार भी. पतंजलि ने जिसे मुद्दा बनाया वह करीब 50 एकड़ जमीन में प्रस्तावित मेगा फूड पार्क लगाने से संबंधित है.

मेगा फूड पार्क केन्द्र सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की महत्वाकांक्षी योजना है. यहां उल्लेखनीय है कि यूपी जैसे बड़े राज्य में मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल में एक भी मेगा फूड पार्क नहीं लग सका जबकि बाकी कई राज्य में इसमें आगे निकल चुके हैं. जरूरी शर्तें पूरा करने वाले समूह को केंद्र मेगा फूड पार्क के लिए 150 करोड़ रुपए की सब्सिडी भी देता है.

पहले ही हो चुका था पतंजलि के पार्क का शिलान्यास

अब ग्रेटर नोएडा में बाबा रामदेव का समूह केंद्र की इस योजना के तहत जो मेगा फूड पार्क लगाना चाहता है उसके लिए समूह के पास अलग से कोई 50 एकड़ जमीन नहीं है. वह उस 455 एकड़ जमीन में से करीब 50 एकड़ पर मेगा फूड पार्क बनाना चाहती है जिस पर पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क का शिलान्यास यूपी की समाजवादी पार्टी की सरकार में नवंबर 2016 में ही हो चुका था.

तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रामदेव और बालकृष्ण की उपस्थिति में लखनऊ में आयोजित समारोह में तब घोषित करीब 1600 करोड़ रुपए के निवेश से यमुना औद्योगिक विकास प्राधिकरण के क्षेत्र में बनने वाले इस पार्क का शिलान्यास किया था.

बीते सवा साल से मंजूरी के इंतजार में था पतंजलि समूह

पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क को यूपी सरकार की ओर से 455 एकड़ जमीन देने का फैसला कैबिनेट की बैठक में लिया गया था और संबंधित आदेश के मुताबिक जमीन पर पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क बनना है. ऐसे में उसी जमीन के एक हिस्से पर मेगा फूड पार्क बनाने के लिए केंद्र से जरूरी मंजूरी और सब्सिडी हासिल करने के लिए पतंजलि को यूपी सरकार से इस बाबत आदेश और स्वीकृति की जरूरत है.

यानी यूपी सरकार को कैबिनट से नया प्रस्ताव पास कराना होगा कि पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क के 455 एकड़ में से करीब 50 एकड़ मेगा फूड पार्क के लिए दिए जाते हैं. पतंजलि समूह बीते सवा साल से इसी आदेश को पाने की कोशिश कर रहा था.

यूपी सरकार की ओर से हो रही देरी के कारण पतंजलि ने लिया फैसला

बताया जा रहा है कि केंद्र ने मेगा फूड पार्क के नए प्रस्तावों को मंजूरी के लिए जून तक का ही वक्त दे रखा लिहाजा यूपी सरकार की ओर से हो रही देरी को देखते हुए पतंजलि आयुर्वेद के एमडी बालकृष्ण का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने ट्वीट कर दिया जिसका तुरंत असर भी हुआ. खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाबा रामदेव और बालकृष्ण से मंगलवार देर रात ही बात की और उन्हें मनाया कि यूपी सरकार आदेश जारी करेगी लिहाजा वे फूड पार्क कही और न ले जाएं.

उसके बाद से ही यूपी के सरकारी तंत्र में तेजी है. मेगा फूड पार्क के लिए अलग से जमीन दिए जाने का प्रस्ताव कैबिनेट की बैठक के लिए बनाया जा रहा है जिसे 12 जून की कैबिनेट बैठक में पास कराने की तैयारी है. जिसमें यमुना औद्योगिक प्राधिकरण क्षेत्र में यूपी सरकार की ओर से पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क के लिए आवंटित जमीन में से करीब 91 एकड़ जमीन को पतंजलि समूह की ही एक और कंपनी पतंजलि फूड प्रोडक्ट्स को मेगा फूड पार्क बनाने के लिए स्थानांतरित किए जाने की संभावना है.

जो तेजी अब दिखाई गई उसे पहले दिखाने की जरूरत थी

हालांकि इसमें एक पेंच यह है कि 455 एकड़ जमीन यूपी की औद्योगिक निवेश नीति, 2012 के तहत रियायतों के साथ ही फूड एंड हबर्ल पार्क के उद्देश्य से आवंटित की गई थी. जिसके निर्माण का काम भी गए दो साल में शुरू हो चुका है. अब उसके ही एक हिस्से में मेगा फूड पार्क लगाने के लिए अलग से आदेश और उस पर पतंजलि फूड प्रोडक्टस द्वारा अलग से सब्सिडी का मुद्दा कैसे सुलझेगा इसपर यूपी के कुछ अफसरों को शंका है. लेकिन वे मानते हैं कि इन शंकाओं का समाधान करने के लिए सवा साल काफी थे.

फाइलों को ठंडे बस्ते में डाल देने की अफसरशाही के रवैए और राजनीतिक नेतृत्व के महज सियासी गुणा-भाग में ही व्यस्त रहने को प्राथमिकता मिलने के कारण इस मामले में किरकिरी हो गई. इससे उबरने के लिए जो तेजी बीते कुछ घंटों में दिखाई जा रही है वह पहले भी दिखाई जा सकती थी.