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अब परेश रावल के बयान पर सोशल मीडिया में कोई तूफान क्यों नहीं मच रहा?

जाहिर है सोशल मीडिया गुस्सा भी चुन-चुन कर जताता है

Akshaya Mishra

एक्टर से नेता बने परेश रावल ने हाल में ही एक 'अपराध' किया और चौंकाने वाली बात यह है कि इस पर सोशल मीडिया में कोई बवाल नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तानी फिल्मों में काम करना चाहते हैं और उन्हें पाकिस्तानी टेलीविजन सीरियल्स पसंद हैं. उनका यह बयान ऐसा था जिसे आंख बंद करके देशद्रोह माना जा सकता था. उन्होंने कहा कि वह दोनों देशों के कलाकारों को एक-दूसरे के यहां काम करने पर लगे बैन के खिलाफ हैं.

सोशल मीडिया के राष्ट्रभक्त और अति-देशभक्त रावल के इस बयान पर वैसे उत्तेजित नहीं हुए जैसे वे इस तरह के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हैं. माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर आग नहीं लगी हुई है और गुस्से से भरी प्रतिक्रियाएं बेहद कम हैं.


कुछ हफ्ते पहले की बात करते हैं. रावल के ट्विटर पर एक पोस्ट में कहा गया था कि कश्मीर में पत्थरबाजों की जगह पर अरुंधति रॉय को सेना की गाड़ी से बांधना चाहिए. उनका संदर्भ आर्मी के उस मेजर से था जिसने कश्मीर में पत्थरबाजों से निपटने के लिए एक शख्स को आर्मी की जीप से बांधकर मानव ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया था.

रावल की पोस्ट ने उन्हें सोशल मीडिया में तत्काल उच्च दर्जे का देशभक्त बना दिया और रॉय देश की दुश्मन बन गईं. टेलीविजन चैनलों ने प्राइमटाइम पर जहर उगलना शुरू कर दिया. इन बहसों में रावल को शेर बना दिया और रॉय को धिक्कारना शुरू कर दिया.

रावल के बयान पर हल्ला क्यों नहीं

आज लेकिन माहौल हटकर है. हम यह देखने के लिए बेकरार हैं कि रावल के एक न्यूज एजेंसी को दिए गए बयान पर कितने चैनल्स और उनके एंकर होहल्ला काटते हैं. हालांकि, सोशल मीडिया पर उनके इस बयान पर एकदम चुप्पी छाई हुई है. हमें देखना होगा कि चीजें किस तरह की शक्ल अख्तियार करती हैं. हम यह कहकर कैसे बच सकते हैं कि हमारे टीवी शो बोरिंग हैं और पाकिस्तान के शो हर मामले- स्टोरी, लेखन और भाषा सब में अच्छे हैं? रावल ने यह भी कहा है कि कलाकार और क्रिकेटर्स बम फोड़ने के लिए नहीं आते हैं.

यह कहकर कि सिनेमा और क्रिकेट से दोनों मुल्कों के बीच खाई पाटने में मदद मिलती है और वह इन पर लगे बैन को खारिज करते हैं. उन्होंने अपनी पार्टी के रौद्र रूप वाले राष्ट्रवाद के आइडिया को पलीता लगा दिया है. इससे उनकी पार्टी के लाखों सोशल मीडिया योद्धाओं के मन में चिंता पैदा हो गई होगी, जिन्हें आमतौर पर ट्रोल कहकर पुकारा जाता है.

रावल के बयान उन्हें एक शांतिप्रिय शख्स बनाते हैं. एक ऐसा शख्स जो कि पाकिस्तान से मसलों का निपटारा युद्ध की बजाय अन्य तरीकों से करने को तरजीह देता है. लेकिन, वह ऐसा कैसे कर सकते हैं?

यह एक जबरदस्त साहस की बात है. ऐसे वक्त में जब पार्टी में मौजूद उनके जैसे सिनेमा जगत के सेलेब्रिटीज समेत तकरीबन हर कोई युद्धोन्मादी बयान देने के लिए बाध्य हो रहे हैं और यह साबित करने के लिए मजबूर हो रहे हैं कि हम सब एक हैं, रावल का यह बयान उन्हें दूसरों से अलग खड़ा करता है.

बीजेपी के हिसाब से देखा जाए तो सीनियर लीडर्स के लिए यह चीज सही नहीं जान पड़ती है कि वे बेमतलब के उल्टे-सीधे बयान दें. पार्टी ने रावल के अरुंधति रॉय वाले बयान से भी दूरी बना ली है. लेकिन, पार्टी के वैचारिक साथी कई वजहों से यह मानते हैं कि अगर वे इस तरह के फालतू बयान नहीं देंगे तो वे पार्टी से अपनी करीबी साबित नहीं कर पाएंगे. गायक अभिजीत को इसकी एक मिसाल माना जा सकता है. निश्चित तौर पर इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे पक्ष के ट्रोल बहुत ज्यादा समझदार और सभ्य हैं.

गुस्सा सेलेक्टिव है

शायद सोशल मीडिया नाम के दानव की यही प्रकृति है. अगर आप सिरफिरे नहीं हैं तो आप पर कोई ध्यान नहीं देगा. यही वजह है कि निजी जीवन में काफी सभ्य रहने वाले लोग भी सोशल मीडिया पर आकर असभ्य और क्रूर हो जाते हैं. हालांकि, समझदार लोग जानते हैं कि ट्रोल्स से कैसे निपटना है और सीमा रेखा क्या है. रावल यह शायद समझ गए हैं कि उनके पिछले बयान गलत थे और शायद इसीलिए वह चीजों को अब दुरुस्त करना चाहते हैं. बाकी कई लोगों से इतर रावल ने यह हौसला दिखाया है कि वह भारतीय दक्षिण पंथ के ज्यादातर लोगों की राय से अलग खड़े हो सकते हैं. उनके बयान को स्वीकार करना बीजेपी के लिए ही अच्छा होगा.

अब ट्रोल उनके प्रति क्या व्यवहार करेंगे? निश्चित तौर पर यह सोचिए कि अगर ऐसा ही बयान किसी कांग्रेसी नेता ने दिया होता तो क्या होता? सोशल मीडिया हर ट्वीट के साथ और ज्यादा घृणास्पद हो गया होता. यह देखा जाना चाहिए कि गुस्सा जताने का यह तरीका सेलेक्टिव है, और इसमें केवल चुनिंदा दुश्मनों को ही निशाना बनाया जाता है. टेलीविजन चैनल भी खास तरीके से ही व्यवहार करते हैं. इस बात से यह खुलासा हो रहा है कि इनका देशभक्ति का राग केवल अपनी सुविधा पर टिका हुआ है.