view all

पार्ट 2: भारत में रहने वाले पाकिस्तानी हिंदुओं की कहानी...न खुदा मिला न विसाल-ए-सनम

वो खुद को संभालते हुए कहती है 'हिंदुस्तान वाले साथ तो दें, इस धोके से अच्छा तो वहां पाकिस्तानी मुसलमानों की मार झेल लेते, यहां तो अपने धोखा दे रहे हैं'

Nitesh Ojha

( एडीटर्स नोट: हाल के समय में भारत में अवैध रूप से रह रहे  रोहिंग्या लोगों को वापस भेजे जाने का मसला राष्ट्रीय फलक पर छाया रहा है. देश के अलग-अलग तबकों से इस पर भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएं आई हैं. ऐसे समय में फ़र्स्टपोस्ट हिंदी के लिए नीतेश ओझा ने दिल्ली में रह रहे उन पाकिस्तानी हिंदुओं की खोज-खबर ली है जो सालों से देश की राजधानी में रह रहे हैं. दो पार्ट की इस सीरीज में हमने जानने की कोशिश की है कि वो क्या कारण थे जिसकी वजह से इन लोगों ने भारत में शरण ली और यहां आने के बाद हमारी सरकार की तरफ से इन्हें क्या मदद दी जा रही है. )

पाकिस्तानी हिंदुओं के भारत में आने के और कारणों को तलाशते हुए हम केसरो के घर पहुंचे. वह घर पर नहीं था. उसकी पत्नी ने बताया कि वह काम पर गया है. जब उनसे भारत आने का कारण पूछा तो उन्होंने सीधा जवाब देते हुए कहा 'अपने पति की जिद के कारण. जैसे सति को राम के कारण आग में जाना पड़ा वैसे ही मुझे मेरे पति के साथ आना पड़ा.' यह अब तक मिले सभी जवाबों से अलग था.


केसरो की पत्नी अमिया देवी ने कहा कि उसका पति हिंदुस्तान में ही पैदा हुआ था. लेकिन आजादी के बाद रिहा किए गए कैदियों में से एक केसरो और उसकी मां को लेकर पाकिस्तान चला गया. इस बात का पता उन्हें तब लगा जब केसरो की उनसे शादी होने वाली थी तब उनकी मां ने यह बताया कि केसरो हिंदू है. अमिया देवी कहती है कि परिवार को लाने के पहले केसरो दो बार अपने रिश्तेदारों से मिलने भारत आया था.

अमिया देवी के मुताबिक केसरो के रिश्तेदार राजस्थान के बाडमेर में रहते हैं. उन्होंने पहले केसरो का बहुत स्वागत सत्कार किया. इसके बाद केसरो जब वापस पाकिस्तान गया तो परिजनों से भारत चलने के लिए जिद करने लगा. परिजनों ने इस बात से इनकार किया तो केसरो ने नीम के पेड़ से फांसी लगाने की कोशिश भी की. आखिरकार परिजनों को झुकना ही पड़ा और पूरा परिवार भारत आ गया. इसके लिए केसरो ने लगातार तीन साल मेहनत कर पासपोर्ट के लिए पैसे इकट्ठे किए.

पाकिस्तान से आई बाई खान का पासपोर्ट, भारत आ कर इनकी शादी करा दी गई लेकिन इन्हें दिल्ली छोड़कर जाने की इजाजत नहीं है

केसरो की पत्नी अमिया देवी कहती हैं, 'हम यहां आ गए. मेरी तीन बेटियां और चार बेटे हैं. रिश्तेदारों के कहने पर हमने दोनों बड़ी बेटियों को यहां आ कर ब्याह दिया. केसरो की बेटियां शादी हो जाने के बाद भी मायके यानी भाटी में ही रह रहीं हैं. उन्हें दिल्ली छोड़कर जाने की इजाजत नहीं है. इस बात पर पास में बैठी कानो देवी (बाई खान) बोल उठती हैं, 'इससे अच्छे तो हम पाकिस्तान में ही थे.'

कानो कहती हैं 'कम से कम हम रह तो रहे थे. वहां (पाकिस्तान में) हमारा प्लॉट वगैरह है. सब छोड़ कर हम यहां आ गए. यहां आए तो ना अपनों ने साथ दिया ना परायों ने. मेरी ससुराल बाडमेर में है. लेकिन मैं वहां जा नहीं सकती. अब तो हमारे घर वाले (ससुराल) भी सिर फोड़ते हैं कि कहां ब्याह दिया.' पासपोर्ट की बंदिशों के चलते वे दोनों दिल्ली छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं.

कानो ने कहा 'एक-एक पैसा बचा कर हम हिंदुस्तान आए कि कोई अपना होगा लेकिन यहां भी वैसा ही लगा.' पाकिस्तान में प्रताड़ना के सवाल पर कानो बेबाकी से बोलती हैं, 'अमरकोट मैं जिस जगह हम रह रहे थे वो तो अच्छी है और जगहों का तो नहीं पता. अमरकोट में अपन हिंदुआं की चलती है. हमें कोई समस्या नहीं थी वहां.'

अमिया देवी का कहना है कि उन्हें बस रहने की जगह और नागरिकता मिल जाए. उनका कहना है कि सारी उम्र केसरो ने वहां गढ्डे खोदे अब यहां पत्थर फोड़ रहा है. कानो देवी कहती है कि अगर सब लोग मिल कर छत उठाते हैं तो वह उठ जाती है. लोग हमारी मदद करेंगे तो शायद हम सुकून की जिंदगी जी सकेंगे. बाकी हम गरीबों की किस्मत में जो होगा वो देखेंगे.

कानो देवी भी वही कहानी सुनाती हैं. वो बताती हैं 'मेरे पापा कहते थे कि मेरे सारे परिवार वाले जब वहां (हिंदुस्तान) के हैं तो मैं यहां क्या कर रहा हूं.' कानो का कहना है कि उन्होंने हमारे बारे में भी नहीं सोचा. उनका कहना है कि जब वह परिवार के साथ यहां आए तो उनके रिश्तेदार जोधपुर में दो दिन बाद उनसे मिलने पहुंचे. वह कहती है कि शुक्र है भगवान का कि पहले से ही पाकिस्तान का रहने वाला एक जानने वाला उन्हें लेने आ गया.

हालांकि दूसरे दिन उनसे मिलने सारे रिश्तेदार पहुंच गए. कानो अपने शुरुआती दिनों को याद कर के कहती हैं 'रिश्तेदारों ने शुरुआत में हमें बहुत प्यार दिया. हम वो कभी नहीं भूल सकेंगे. लेकिन अब नहीं. अगर वो पहले ही कह देते तो न हमारी यहां शादी होती न हमारी जिंदगी बरबाद होती. कानो बताती हैं कि उनकी शादी करवाते वक्त रिश्तेदारों ने न उनकी मर्जी पूछी न ही उसकी मम्मी की मर्जी जानी.

अपना दर्द बयां करते-करते वो लोग रो पड़ते हैं

अचानक बात करते करते कानो रो पड़ती हैं और कहती हैं 'मेरा पापा अब रोता है. वो कहता है कि मेरे साथ तो बचपन से ही बुरा हो रहा है. पहले मेरी मां को धोखे से पाकिस्तान ले गया और अब यहां मुझे बुला कर मेरे अपनों ने मेरा साथ छोड़ दिया.' वो खुद को संभालते हुए कहती है 'हिंदुस्तान वाले साथ तो दें. इस धोके से अच्छा तो वहां पाकिस्तानी मुसलमानों की मार झेल लेते. यहां तो अपने धोखा दे रहे हैं.'

कानो देवी कहती है 'हिंदुस्तान वालों का सोच के आए तो अब हिंदुस्तान वाले साथ दें न. आप लोग तो कैदी बना के बैठे हो. दिल्ली से बाहर नहीं निकल सकते.' कानो कहती है 'हम लोग बेईमानी नहीं कर सकते. मेरा पापा कानून के मुताबिक चल रहा है, कानून को तोड़ता नहीं है. हुकूमत जैसा कहती है वो वैसा करता है.'

भाटी में कई लोगों को नागरिकता मिल गई है और कई लोग इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह लोग धर्म, रिश्तेदार और न जाने ऐसी ही कितनी आस लगा कर अपना देश अपनी मातृभूमि छोड़कर पलायन कर किसी अन्य देश में जाते हैं. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण अपने ही देश में प्रताड़ित किया जाना भी है. ऐसे में इन शरणार्थियों को शरण देने वाले देश के समक्ष भी कई परेशानियां होती हैं. (समाप्त)