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शहीदों से बर्बरता: बेशर्म पाकिस्तान भूल गया है सारे आदर्श-उसूल

पाकिस्तान से अमन की खुशफहमी जितनी जल्द खत्म हो, उतना बेहतर होगा

Bikram Vohra

ऐसा नहीं होता. शायद आतंकियों को शहीद सैनिकों के शरीरों से खिलवाड़ कर मजा आता हो लेकिन कोई पेशेवर सैनिक ऐसा व्यवहार नहीं करते. वह दुश्मन के साथ भी एक सम्मान दिखाते हैं. किसी दुश्मन सैनिक को पकड़ने या मार गिराने के बाद उसके शरीर के साथ बर्बरता करना स्वीकार्य नहीं है. एक सच्चा सैनिक इसे नैतिक तौर पर गलत मानेगा.

1971 में शकरगढ़ में पाकिस्तानी सेना की एक इंफैंट्री प्लाटून ने भारतीय खेमे पर हमला किया. हमले का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल को भारतीय सेना ने मार गिराया. युद्ध के बाद सफेद झंडा दिखाया गया. लड़ाई रोक दी गई ताकि भारतीय सेना उनके शरीर को पाकिस्तानी सेना को वापस कर सकें.


इसकी तुलना अभी आई खबर से करिए: दो भारतीय जवानों को मारा गया और उनके शव क्षत-विक्षत किए गए. ऐसी घटनाओं से साफ है कि पाकिस्तान की सेना अपने आदर्श भूल चुकी है और लड़ाई के आम उसूलों को भी नहीं मान रही.

1977 एडिशनल प्रोटोकॉल के आर्टिकल 34(1) के अनुसार: 'कब्जे के कारण या बंदी के तौर पर या संघर्ष के दौरान मारे गए लोगों के पार्थिव शरीर का सम्मान किया जाना चाहिए.' 1949 जेनेवा कंवेंशन के आर्टिकल 16 का दूसरा पैराग्राफ कहता है, 'जहां तक सैन्य जरूरतों के अनुसार मुमकिन हों. हर पक्ष को मारे गए लोगों के शरीर के साथ गलत व्यवहार से सुरक्षित करने के कदम उठाने चाहिए.'

इसमें कोई लाग- लपेट नहीं है. ऐसा घिनौना कृत्य करने वाली पाकिस्तानी सेना को इसमें से क्या नहीं समझ आता है? ऐसे कृत्य की दुनिया भर में निंदा होनी चाहिए. आप नॉर्दर्न कमांड और पूरे देश में फैली गुस्से की लहर को समझ सकते हैं.

आखिर वर्दी में एक सैनिक के शरीर के साथ ऐसा करके आप क्या हासिल करना चाहते हैं? ये बीएसएफ जवान गश्ती पर थे. सीमा पर ये सैनिक अक्सर एक-दूसरे के काफी करीब से गुजरते हैं, इतने की एक-दूसरे को सिगरेट पास कर सकें. अगर गोलीबारी भी हुई तो एक गरिमा बनाई रखनी होती है.

क्राइम्स ऑफ वार में वेन इलियट लिखते हैं, “पहले जेनेवा कंवेंशन के आर्टिकल 15 में मृतकों के प्रति जिम्मेदारी का मुख्य ब्योरा दिया गया है. आर्टिकल में मुख्य बात घायलों की मदद की है. हालांकि यह भी कहा गया है कि सभी पक्षों को 'सदैव, और खासकर किसी लड़ाई की घटना के बाद मृतकों को ढूंढना चाहिए और उनके शवों को खराब होने से बचाना चाहिए.''

यह आर्टिकल यह भी कहता है कि “जब संभव हो,” एक संघर्षविराम की घोषणा करनी चाहिए ताकि घायलों को ढूंढा जा सके. घायलों को ढूंढते वक्त मृतक भी मिलेंगे. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस कमिटी की जेनेवा कंवेंशन पर टिप्पणी में कहा गया है कि मृतकों को घायलों के साथ जरूर वापस लाया जाए. इसका एक कारण यह भी है कि युद्धक्षेत्र के माहौल में अक्सर यह पता नहीं चल पाता कि किसकी सच में मृत्यु हो गई है और कौन गंभीर रूप से घायल है.

भारत को यह समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान हमें परेशान करने के लिए किसी भी हरकत से बाज नहीं आएगा. अगर शांतिकाल में वह ऐसा कर सकता है तो युद्ध के समय की हरकतों की तो कल्पना ही की जा सकती है.

भले ही अभी भी हमारे मन में यह छोटी सी खुशफहमी और बची-खुची उम्मीद है कि पाकिस्तान में भी शांति से रहने की थोड़ी सी भी चाहत बची है, जाधव मामले में पाकिस्तान की हरकत के बाद इस घटना से साफ है कि सीमा पार से भड़काने के ऐसे कृत्य होते रहेंगे.

जितनी जल्दी हम इस खुशफहमी से निकल जाएं, उतना ही बेहतर होगा.