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पड़ताल: एक शिकार, दो किलर, तीन लाख इनाम...एनकाउंटर ऐसा जिसे पब्लिक समझ रही फिल्म की शूटिंग

उस जमाने में यूपी के इस खतरनाक बदमाश से निपटने का जो ‘फार्मूला’ दिल्ली पुलिस ने खोजा, वो ब्रिजमोहन त्यागी और उसके गुंडों से कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हुआ. यह फार्मूला था कांटे से कांटा निकालने का

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

मैं तो उससे पूछताछ के इरादे से उसकी कार के पास गया था, मगर उन दोनों (ब्रिज मोहन त्यागी और अनिल मल्होत्रा) ने मुझ पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं. तीन गोलियां मेरे बदन में घुस गईं और खून से लथपथ होकर मैं मौके पर ही गिर पड़ा.’

‘पड़ताल’ की इस कड़ी में हम लेकर आए हैं करीब 24 साल पहले की वो ‘पुलिस-मुठभेड़.’ जो दिन-दहाड़े सर-ए-राह चौराहे पर हुई, जिस मुठभेड़ में दो खतरनाक अपराधी मौके पर ही ढेर हो गए. गोलियां लगने से 6 लोग (तीन पुलिस वाले और तीन नागरिक) बुरी तरह जख्मी हुए. जिस एनकाउंटर को राहगीर मुंबईया फिल्म की शूटिंग समझकर सड़क पर खड़े-खड़े देखते रहे. जिस एनकाउंटर की ‘पड़ताल’ (गहन छानबीन) घटना घटने से पहले ही कर ली गई थी, ताकि बाद में कोई बवाल खड़ा न हो.


कुख्यात ‘सुपारी किलर’ यूपी का और दुखी दिल्ली पुलिस 

बात है सन् 1994 के अगस्त-सितंबर महीने की. उन दिनों अपराध की दुनिया में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खूंखार सुपारी-किलर ब्रिज मोहन त्यागी का सिक्का चल रहा था. भाड़े पर दुश्मन की हत्या हो या फिर कोई और संगीन अपराध. अधिकांश वारदातों का सेहरा ब्रिज मोहन त्यागी के ही सिर पर बंध रहा था. 1990 के दशक में जैसे-जैसे ब्रिज मोहन त्यागी को दिल्ली अच्छी लगने लगी, वैसे-वैसे ब्रिज मोहन त्यागी दिल्ली पुलिस को ‘बुरा’ लगने लगा. उस जमाने में यूपी के इस खतरनाक बदमाश से निपटने का जो ‘फार्मूला’ दिल्ली पुलिस ने खोजा, वो ब्रिजमोहन त्यागी और उसके गुंडों से कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हुआ. यह फार्मूला था कांटे से कांटा निकालने का. इस बेजोड़ फार्मूले के जन्मदाता थे, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी (आईपीएस) दीपक मिश्रा (वर्तमान में केंद्रीय रिजर्व पुलिस के स्पेशल डायरेक्टर जनरल).

अगस्त 1994 यानि ‘कांटे से कांटा’ निकालने का शुरुआती महीना

दीपक मिश्रा उस वक्त पश्चिमी दिल्ली जिले के डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त) थे. ‘कांटे से कांटा’ निकालने के अपने फॉर्मूले पर अमल के लिए दीपक मिश्रा ने खुद की एक ‘मिनी-स्पेशल टास्क फोर्स’ टाइप छोटी सी मगर बेहद विश्वसनीय और दिलेर पुलिसकर्मियों की टीम गठित की. टीम में, उस समय तिलक नगर सब-डिवीजन के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) विजय मलिक, राजौरी गार्डन सब-डिवीजन के एसीपी श्योदीन सिंह (दोनों ही दिल्ली पुलिस से रिटायर हो चुके हैं), और मुखबिरों की उस वक्त अपने पास सबसे ज्यादा गिनती रखने वाले इंस्पेक्टर/एसएचओ तिलक नगर एल.एन. राव (लक्ष्मी नारायण राव रिटायर्ड डीसीपी) और सब-इंस्पेक्टर राजेंद्र सिंह (अब एसीपी द्वारका सब-डिवीजन, उस वक्त तिलक नगर एसीपी विजय मलिक के कार्यालय में तैनात) सहित कुल 45 जवानों को शामिल किया गया.

आईपीएस दीपक मिश्रा

‘ऑपरेशन बीएम’ मतलब आतंक के नेस्तनाबूद होने का नाम

बकौल दीपक मिश्रा, ‘तय हुआ कि, ब्रिज मोहन से पहले उसके गैंग के किसी गुर्गे को तोड़कर (पुलिस अपना मुखबिर बना ले) पुलिस टीम में मिला लिया जाए. इसके पीछे प्लान यह था कि, गैंग के भीतर का आदमी ही गैंग लीडर (ब्रिज मोहन त्यागी) के बारे में सटीक जानकारी दे पाएगा.

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उस समय तिलक नगर थाने के एसएचओ और दीपक मिश्रा के विश्वासपात्र इंस्पेक्टर एलएन राव के मुताबिक, ‘इसके कुछ दिन बाद ही अगस्त 1994 में मैंने उत्तर-पूर्वी दिल्ली जिला के भजनपुरा दयालपुर इलाके में रहने वाले केशव गुर्जर उर्फ केशौ दयालपुरिया को दबोच लिया. केशौ पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के कुख्यात सतबीर गुर्जर गैंग का सक्रिय सदस्य था. पुलिस और गैंग्स में उसकी पकड़ अच्छी थी. इसी वजह से वो पुलिस और बदमाश दोनो खेमों का भला बना रहता था.’

‘सुपारी-किलर’ की जिद’ जिसे सुनकर पुलिस को काठ मार गया

बकौल लक्ष्मी नारायण राव, केशव ने पूछताछ के दौरान दिल्ली पुलिस को बताया कि, ब्रिज मोहन त्यागी पुलिस से बुरी तरह चिढ़ा बैठा है. जब कभी भी उसका मुकाबला पुलिस से होगा, वो सरेंडर करने के बजाए सीधे पुलिस पर गोलियां चलाएगा. केशव से मिली इस जानकारी से दिल्ली पुलिस की टीम को काठ मार गया. बकौल तत्कालीन डीसीपी दीपक मिश्रा, ‘ उस समय तक के मेरे पुलिस सर्विस जीवन में ब्रिज मोहन त्यागी को पकड़ने की कोशिश का मामला ऐसी घटना होने वाली थी, जिसकी पड़ताल (गहन छानबीन) हमें अपराध होने से पहले ही पूरी कर लेनी थी.

अपराध होने के वक्त तो हालात कुछ भी हो सकते थे (जैसा कि बाद में खुलेआम सड़क पर इंस्पेक्टर एलएन राव के तीन गोलियां लगने की घटना को बदमाशों ने अंजाम दे दिया). पहले कर ली गई गहन जांच-पड़ताल (छानबीन) का ही नतीजा था, कि उस दिल-दहला देने वाली मुठभेड़ में तीन पुलिस वालों और तीन राहगीरों के गोली लगने के बाद भी ब्रिज मोहन त्यागी और उसका साथी बदमाश हमें नुकसान देकर भाग नहीं पाए.’

रहस्य जो 24 साल बाद भी नहीं खुल सका 

लक्ष्मी नारायण राव के मुताबिक, ‘छानबीन के दौरान पता यह भी चला कि, उन दिनों ब्रिज मोहन यूनिवर्सिटी से फ्री होकर अक्सर पश्चिमी दिल्ली के राजौरी गार्डन और राजा गार्डन इलाके में भी ‘शिकार’ की तलाश में चक्कर काटता है. सूत्रों के मुताबिक यह चर्चाएं भी सामने आ रही थीं कि, मुंबई के किसी बिल्डर ने दिल्ली के राजौरी गार्डन इलाके में रहने वाले एक प्रापर्टी डीलर की हत्या के लिए 50 लाख की सुपारी ब्रिज मोहन त्यागी को दे रखी थी. उसी शिकार की टोह लेने उन दिनों ब्रिज मोहन अक्सर राजा गार्डन, राजौरी गार्डन के चक्कर लगा रहा था. हालांकि ब्रिज मोहन त्यागी को ठिकाने लगे हुए 24 साल हो चुके हैं, मगर यह रहस्य आज भी बरकरार है, कि आखिर पश्चिमी दिल्ली में त्यागी ने किस प्रॉपर्टी डीलर को निपटाने की सुपारी उठा रखी थी?

एल एन राव

गलती जो पुलिस के लिए बबाल-ए-जान बन गई थी

पश्चिमी दिल्ली के राजौरी गार्डन थाने में दर्ज एफआईआर नंबर 573 दिनांक 15 सितंबर, 1994 और एल एन राव के मुताबिक, ‘ब्रिज मोहन त्यागी की कार के शीशे काले (टिंटिड) थे. कार में पिछली सीट पर कोई बैठा है या नहीं, यह देखने के लिए राजा गार्डन चौक पर मैं अपनी गाड़ी से उतरकर ब्रिज मोहन त्यागी की कार की ओर बढ़ा. जैसे ही मैने कार के अंदर झांका बदमाशों ने मुझ पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं. सवाल यह पैदा होता है कि, जब मुखबिर पहले ही बता चुका था कि, ब्रिज मोहन त्यागी पुलिस से आमना-सामना होते ही गोलियां चलाने की जिद ठानकर बैठा है, तो फिर इंस्पेक्टर राव आखिर ब्रिज मोहन त्यागी जैसे खूंखार अपराधी की कार में झांकने की उम्मीद पाले उसके करीब गए ही क्यों?

कमिश्नर से डीसीपी तक एनकाउंटर टीम के साथ वायरलेस पर थे

‘ऑपरेशन बीएम’ यानि ब्रिज मोहन त्यागी को दबोचने के लिए गठित टीम के वास्ते एक खास वायरलेस ‘कॉल-साइन’ (कोड वर्ड) रखा गया था. जिसे मैं खुद अपने वायरलेस सेट पर, डीसपी दीपक मिश्रा और टीम में शामिल बाकी सदस्य सुन रहे थे. यह खास इंतजाम इसलिए किया था दीपक ने (दीपक मिश्रा ने) ताकि अचानक हालात पलटने और पुलिस पार्टी के मुसीबत में फंस जाने पर अगला कदम उठाने में किसी तरह की देरी न हो. मैंने वायरलेस पर इंस्पेक्टर लक्ष्मी नारायण राव की तकरीबन चीखने वाली आवाज सुनी- 'सर गोली लग गई है.' इतना सुनते ही मेरे जेहन में सवाल आया राव से पूछूं कि, गोली किसके लगी है? बदमाश या पुलिस को! मगर गोली चल चुकी थी. मतलब हालात बिगड़ चुके थे.

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लिहाजा मैं यह सोचकर चुप रहा कि, वायरलेस पर मेरे सवाल पूछते ही पुलिस टीमें मुझे (पुलिस कमिश्नर को) जबाब देने में उलझ जाएंगी. मुझे विश्वास था दीपक मिश्रा और एल.एन. राव कहीं कोई गड़बड़ नहीं होने देंगे.’ बताते-बताते उस वक्त दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रहे पूर्व आईपीएस एम.बी. कौशल (मुकुंद बिहारी कौशल) दिन-दहाड़े हुए उस एनकाउंटर की यादों में खो जाते हैं. उस एनकाउंटर की सफलता का पूरा श्रेय कौशल साहब दीपक मिश्रा और एल.एन. राव को देते हैं.

एमबी कौशल के मुताबिक, ‘उस दिन कुछ भी संभव था. बाद में तमाम सवाल उठे या बवाल मचे. इसलिए नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन (एनएचआरसी) टीम को मैं पहले ही इत्तला करवा चुका था. और बाद में हुआ भी वही, जिसका मुझे डर था. हालात बिगड़े...बदमाशों ने हमारे इंस्पेक्टर लक्ष्मी नारायण राव को गोलियां मार दीं, बचाव में पुलिस को भी गोली चलानी पड़ी.

एम बी कौशल

‘मरे कोई मैं गोली जरुर चलाऊंगा’..मरते दम जिद पूरी कर गया

पूर्व डीसीपी एल.एन. राव और द्वारका सब-डिवीजन के सहायक पुलिस आयुक्त राजेंद्र सिंह के मुताबिक, ‘ब्रिज मोहन त्यागी, केशौ गुर्जर के सामने अक्सर यह जिक्र तो किया करता था कि, पुलिस से सामना होने पर वो (ब्रिज मोहन त्यागी) पुलिस पार्टी पर गोली जरुर चलाएगा, चाहे मरे कोई भी. और आखिर में उसने किया भी वही.

उस मुठभेड़ का जाल बुनने वाले आईपीएस दीपक मिश्रा के मुताबिक, ‘ मुठभेड़ वाले दिन राजा गार्डन चौक पर ब्रिज मोहन त्यागी ने सबसे पहले उसके करीब पहुंचे हमारे इंस्पेक्टर राव (लक्ष्मी नारायण राव) के ही बदन में दो-तीन गोलियां झोंक दीं. उसी वक्त राव ने वायरलेस पर कहा था कि 'गोली लग गयी है.' जिसे सुनकर कौशल साहब (उस वक्त पुलिस कमिश्नर) यह जानने के लिए परेशान हो उठे कि, आखिर गोली लगी किसे है बदमाशों को या पुलिस को!’

दिल्ली पुलिस को मंहगी पड़ी मुखबिर की नजरंदाजी

मुठभेड़ के पड़ताली अफसर रहे लक्ष्मी नारायण राव के शब्दों में, ‘मैं तो उसे जिंदा पकड़ने के इरादे से उसकी कार के पास गया था, मगर उन दोनों (ब्रिज मोहन त्यागी और अनिल मल्होत्रा) ने मुझ पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.’ जो भी हो यह तो तय है कि, उस जमाने के इस कामयाब पुलिस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस की यह बहुत बड़ी लापरवाही उजागर होकर सामने आई थी, कि ब्रिज मोहन त्यागी जैसे खूंखार कांट्रेक्ट किलर की कार चेक करने की चाहत में इंस्पेक्टर राव खुद ही अपने पांव पर चलकर उसके बिलकुल करीब आखिर क्यों जा पहुंचे थे? दिल्ली पुलिस टीम को मुखबिर से मिली जानकारियों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए था.

दिन-दहाड़े हुआ ‘एनकाउंटर’ जो ‘ढेर’ होने से बच गया

करीब 28 साल के मेरे क्राइम-रिपोर्टिंग करियर में यह एक अदद वो पुलिस मुठभेड़ थी, जो सर-ए-राह दिन-दहाड़े बीचों-बीच चौराहे पर हुई. जिसमें मौके पर दो कुख्यात बदमाश गोलियों से छलनी हुए. जिस खूनी मुठभेड़ में तीन राहगीरों के साथ तीन पुलिस वालों ने भी गोलियां खाईं. जिस मुठभेड़ को पब्लिक आंखों से देखकर पूरे वक्त उसे किसी मुंबईया फिल्म की शूटिंग ही समझती रही. इस सबके बावजूद एक ऐसा पुलिस एनकाउंटर जो, सवालों के घेरे में आकर ‘ढेर’ (बदनाम होने से बच गया हो) होने से बच गया हो. एक ऐसा एनकाउंटर जिसने किसी पुलिस वाले को जेल नहीं भेजा. न ही किसी पुलिस वाले की ‘कुर्सी’ छीनी या छिनवाई.

खूनी लड़ाई जिसके बाद सबको सम्मानित किया गया

उस समय दिल्ली के पुलिस आयुक्त रहे पूर्व आईपीएस एमबी कौशल के मुताबिक, वो एक ऐसा एनकाउंटर था, जिसमें इंस्पेक्टर एल.एन. राव जैसे जांबाज ने बदन में तीन-तीन गोलियां खाने के बाद भी वायरलेस पर खुद के गोली लगने का मैसेज न देकर, सिर्फ गोली चलने भर का मैसेज दिया. बकौल एम बी कौशल, ‘वो एनकाउंटर तो हकीकत में दीपक मिश्रा और राव की सूझबूझ का सर्वोत्तम उदाहरण था, वरना पुलिस को बहुत नुकसान हो सकता था उस दिन.'

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दिल्ली पुलिस का मुखिया होने के नाते मेरी जो जिम्मेदारी बनती थी, वो मैने उस मुठभेड़ में शामिल हर पुलिस मेंबर को ‘आउट-आफ-टर्न’ (बारी से पहले प्रमोशन) देकर पूरी की. वाकई में उस जमाने में वह एक ऐसा एनकाउंटर साबित हुआ, जिसने एक ही साथ कई ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ दिल्ली पुलिस और देश की झोली में डाल दिये. एक ऐसा पुलिस एनकाउंटर जिसने, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के आधिकारी दीपक मिश्रा को दिल्ली पुलिस में ‘एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट’ का ‘जन्मदाता’ और ‘एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट’ बनाने की ‘मशीन’ जैसे नामों से मशहूर कर दिया.