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शोपियां स्कूल बस पर हमला: घाटी में फैल रही कट्टरता को खत्म करने से बनेगा काम

मुख्यमंत्री की यह रटंत जारी रहेगी कि केंद्र घाटी के नौजवानों से बातचीत का रास्ता निकाले लेकिन यही मुख्यमंत्री ये नहीं बतायेंगी कि आखिर नौजवानों को रोजगार देने के लिए उनके पास क्या योजना है

Prakash Katoch

बीते रोज सुबह-सबेरे एक कायराना और नीचता भरा वाकया पेश आया. दक्षिण कश्मीर के शोपियां इलाके में पत्थरबाजों ने रेनबो इंटरनेशनल स्कूल की एक बस पर हमला बोला जबकि इस बस में 50 स्कूली बच्चे सवार थे. टेलिविजन पर आ रही तस्वीरों में दिख रहा है कि बस के शीशे चकनाचूर हो गये हैं. दूसरी जमात में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी रेहान गंभीर रुप से घायल है. इसके अलावा दो और छात्र घायल हुए हैं.

एक खबर के मुताबिक, अभी तक यह जाहिर नहीं हो पाया है कि पत्थरबाजों के निशाने पर स्कूल की बस थी या चल रहे किसी झगड़े के दौरान रास्ते में आ जाने के कारण स्कूल की बस हमले की चपेट में आ गयी. लेकिन यहां एक सवाल यह भी बनता है कि पत्थरबाजी किन गुटों के बीच चल रही थी. फिर यह ध्यान रखना होगा कि पत्थरबाजी की यह घटना दिन में 9 बजकर 25 मिनट पर पेश आयी, यह कोई रात ढले का मामला नहीं था जो पत्थरबाजों ने भूल से स्कूली बच्चों को ले जा रही बस को टूरिस्ट बस या आम सवारी गाड़ी समझ लिया. यह बिल्कुल जाहिर सी बात है कि पत्थरबाजों के निशाने पर स्कूल की बस ही थी.


निंदा भी, गिरफ्तारियां भी लेकिन फिर क्या?

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्वीट में कहा है, 'शोपियां में स्कूली बस पर हुए हमले की बात सुनकर गुस्से और सदमे में हूं. इस कायराना और बेमानी हरकत को अंजाम देने वालों को बख्शा नहीं जायेगा.' हमले में गंभीर रूप से घायल छात्र रेहान के पिता का कहना है कि 'मेरा बेटा पत्थरबाजी की घटना में घायल हुआ है, यह इंसानियत के खिलाफ है. चोट किसी के भी बच्चे को लग सकती थी.' पुलिस के मुताबिक, 'इलाके को हिफाजत में ले लिया गया, पत्थरबाजों की खोज जारी है और उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा.' यह तो बिल्कुल साफ है कि राजनीतिक स्तर पर घटना की व्यापक निन्दा हो रही है और इस दबाव के कारण निश्चित ही गिरफ्तारियां होंगी लेकिन सवाल तो ये है कि उसके बाद क्या होगा?

कश्मीर घाटी और खासतौर से दक्षिण कश्मीर कट्टरपंथी भावनाओं की जकड़ में है. हुर्रियत के रुढ़िवादी नेता पाकिस्तान के आईएसआई की शह पर बरसों से नौजवानों को बरगलाने के काम में लगे हैं. इन नेताओं को अपने काम में कट्टरपंथी मौलानाओं से मदद मिलती है. इन मौलानाओं ने सूफी तेवर और मिजाज वाले मौलानाओं को एकदम से एक किनारे कर दिया है. कश्मीर घाटी के दो मुख्य दल आपस में धींगामुश्ती करने में लगे रहते हैं क्योंकि आतंकवाद यहां एक उद्योग की तरह पनपा है, उससे धन की आमद हुई है. पार्टियों को सत्ता में आने या सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखने में आतंकवाद के उद्योग से एक ना एक तरह से मदद मिली है.

पत्थरबाजों का कोई एजेंडा नहीं, आकाओं के इशारों पर कर रहे हैं काम

नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने अपने ट्वीट में सवाल किया है कि, 'स्कूली बच्चों या टूरिस्ट बसों पर पत्थर मारने से इन पत्थरबाजों को अपना एजेंडा आगे में कैसे मदद मिलेगी?' लेकिन बात ये है कि इन पत्थरबाजों का अपना कोई एजेंडा नहीं है. ये पत्थरबाज अपने आकाओं के इशारे पर काम कर रहे हैं जो उन्हें इस काम के लिए रोजाना के हिसाब से पैसे देते हैं. साथ ही ये पत्थरबाज उन लोगों के इशारे पर काम कर रहे हैं जो ऐसी करतूतों को विचारधारा का जामा पहनाते हैं. इसकी एक मिसाल पाकिस्तान में देखने में आयी जहां 16 दिसंबर 2014 को पेशावर में एक आर्मी स्कूल पर तालिबानियों ने हमला बोला. हमले में 140 छात्र मारे गये थे. इस हमले में पाकिस्तान की एसएसजी (स्पेशल सर्विस ग्रुप) की भागीदारी थी. एसएसजी के मुदस्सर इकबाल ने एक वीडियो में स्वीकार किया कि पेशावर के आर्मी स्कूल पर हुए हमले में उसने हिस्सा लिया था.

उमर अब्दुल्ला ने एक ट्वीट में यह भी कहा है कि, 'पत्थरबाजों को माफी दी गई थी ताकि उन्हें जिम्मेदारी भरा बरताव करने के लिए बढ़ावा मिले लेकिन उनमें से कुछ गुंडे इस मौके का इस्तेमाल और ज्यादा पत्थर फेंकने में कर रहे हैं.' लेकिन क्या माफी देने के इस बरताव ने अब चलन का रूप नहीं ले लिया है? ध्यान रहे कि जिस वक्त माफी फराहम की जाती है तकरीबन उसी वक्त के आसपास आतंकवाद की घटनाएं भी होती हैं. याद कीजिए कि 2016 की जुलाई में जिस वक्त बुरहान वानी मारा गया उसके ठीक तीन रोज पहले सैकड़ों पत्थरबाजों को माफी दी गई थी. ठीक इसी तरह का वाकया 2017 की जनवरी में शोपियां में पेश आया. उस वक्त 250 पत्थरबाजों के एक जत्थे ने सेना के एक काफिले पर हमला किया, एक जेसीओ (जूनियर कमीशन्ड ऑफिसर) को पीटकर जान से मारने की कोशिश की, उसके सर्विस आर्म्स छिन लिए. इस जत्थे ने सेना के 11 वाहनों को जलाया और सेना को आत्मरक्षा में मजबूरन गोली चलानी पड़ी.

जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में तेजी आयी है. अवंतीपोरा और श्रीनगर के डल लेक में टूरिस्ट बसों और कैब पर पत्थरबाजी हुई है. इस साल अप्रैल महीने में ऐन श्रीनगर में पत्थरबाजी की घटना में सीआरपीएफ के दो जवान मारे गये और तीन घायल हुए, इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है? ऐसा हो रहा है तो इसकी वजह ये है कि बाकी दुनिया पत्थरबाजों से जिस तरीके से निपटती है उस ढंग से निपटने के साहस की हमारे भीतर कमी है. हम बस ट्वीट करते हैं, ट्वीट पर मीठे बोल बोलते हैं, जिन्दगियां चली जाती हैं लेकिन हमें फर्क नहीं पड़ता. मुख्यमंत्री की यह रटंत जारी रहेगी कि केंद्र घाटी के नौजवानों से बातचीत का रास्ता निकाले लेकिन यही मुख्यमंत्री ये नहीं बतायेंगी कि आखिर नौजवानों को रोजगार देने के लिए उनके पास क्या योजना है- क्या उन्होंने ऐसी कोई योजना बनायी भी है?

स्कूल बस पर हुए हमले का शोर कुछ दिनों में थम जायेगा और इसकी जगह कुछ और घटनाओं का शोर टीवी चैनलों पर गूंजेगा. माफी के जारी रहने तक गिरफ्तार किए गए पत्थरबाज पुलिस की मेहमानवाजी का लुत्फ उठायेंगे. और जमीनी हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि घटनाओं का यही चक्र आगे भी चलता रहेगा.

(लेखक सेना में लेफ्टिनेंट जेनरल के पद पर रह चुके हैं.)