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तीन तलाक पर सरकार से लड़ने की बजाए जनजागरण करें मुस्लिम संगठन

तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम समाज की फजीहत हो रही है. राजनीतिक दल अपने सियासी फायदे के लिए इस मसले का इस्तेमाल कर रहे हैं.

Syed Mojiz Imam

ट्रिपल तलाक पर सरकार ने अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. ये बिल राज्यसभा में लंबित है. सरकार और विपक्ष में मतभेद की वजह से बिल को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है. सरकार के इस नए दांव से मुस्लिम समाज में हलचल है. लेकिन मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक से पीड़ित महिलाओं को इंसाफ मिलने की उम्मीद है.

चार राज्यों के चुनाव से पहले सरकार के फैसले के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे है. विपक्ष का आरोप है कि पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ रहे दाम से ध्यान बटाने के लिए सरकार ने ये फैसला किया है.


विपक्ष पर दबाव

सरकार के इस फैसले से विपक्ष पर दबाव बढ़ गया है. सरकार को लग रहा है कि विपक्ष इससे बैकफुट पर रहेगा. विपक्ष सरकार को कई मसले पर सरकार पर हमलावर है. ये अध्यादेश उसका जवाब माना जा सकता है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मसले पर रुख स्पष्ट करने की चुनौती दी है.

रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ टीवी डिबेट में इस कानून का समर्थन करती है. संसद के भीतर कांग्रेस का रूख बदल जाता है. हालांकि इस पूरे मामले में टाइमिंग का महत्व है. सरकार चारों तरफ से घिरी है. लड़ाकू विमान खरीदने के मामले से लेकर तेल के दाम बढ़ने से सरकार कटघरे में है.

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सरकार का प्रयास है कि बहस को तीन तलाक के मसले पर मोड़ दिया जाए. जिससे बीजेपी को राजनीति फायदा मिलने की उम्मीद है. एमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवेसी ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय है.इस कानून से न्याय नहीं मिल सकता है.

हालांकि कांग्रेस इसे ट्रैप के तौर पर लेकर चल रही है. इसलिए कांग्रेस ने अपना फोकस मूल मुद्दे पर रखा है. बीजेपी चाहती है कि कांग्रेस इस पर प्रतिकार करे तो बीजेपी इससे सियासी फायदा उठाने की कोशिश करेगी. तीन बड़े राज्यों में चुनाव है. बीजेपी के लिए चुनाव की डगर डगमगा रही है. इस मुद्दे को भुनाने से बीजेपी एक बार फिर सेंटर स्टेज पर आ सकती है.

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार इस मसले को राजनीतिक फुटबॉल बना रही है. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पलटवार करते हुए कहा कि सरकार ने कांग्रेस के सुझाव को दरकिनार किया है. कांग्रेस ने कहा था कि जो लोग त्वरित ट्रिपल तलाक देते हैं उनकी संपत्ति सीज करने का प्रावधान इस बिल में होना चाहिए था.लेकिन ऐसा नहीं है. कांग्रेस त्वरित तीन तलाक के विरोध में है. पीड़ित महिलाओं की ओर से कांग्रेस के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और मनीष तिवारी ने पैरवी की है. कांग्रेस चाहती है कि त्वरित तलाक हर हाल में खत्म हो जाना चाहिए

हालांकि कांग्रेस को अंदेशा है कि बीजेपी और सरकार का मकसद अलग है. इस मुद्दे के जरिए कांग्रेस पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया जा रहा है. बीजेपी इससे सियासी फायदा उठाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस को लेकर मुस्लिम समुदाय में संशय का माहौल बनेगा कि कांग्रेस उनके साथ नहीं है. इसलिए पार्टी नपा-तुला बयान दे रही है.

कांग्रेस को लग रहा है कि राहुल गांधी के मानसरोवर यात्रा से बीजेपी परेशान है. बीजेपी के पास इसका तोड़ नहीं है. राहुल गांधी का सॉफ्ट हिंदुत्व बीजेपी के हिंदुत्व से बराबर टक्कर ले रहा है. इसलिए बीजेपी ने नया दांव चला है. प्रधानमंत्री की बनारस यात्रा के बाद ये फैसला लेना इस ओर इशारा करता है.

बिल की जगह अध्यादेश ?

जो बिल लोकसभा में सरकार ने पास कराया था. उस पर विपक्ष को एतराज था. जिसके बाद से ही ये बिल राज्यसभा में लंबित है. विपक्ष के सुझाव के बाद सरकार की तरफ से इस बिल में बदलाव किया गया था. लेकिन मॉनसून सत्र में ये बिल कानून नहीं बन पाया है. सरकार ने जल्दबाजी में ये दांव खेला है. क्योंकि सरकार को लग रहा है कि यूपी चुनाव में इसका फायदा मिला था.

अब एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस कार्ड का इस्तेमाल किया जाएगा. जिस तरह से बीजेपी अध्यक्ष ने ट्वीट किया है. उससे साफ है कि बीजेपी का निशाना कहां है. अमित शाह ने सीधे कांग्रेस पर हमला किया है. अमित शाह के ट्वीट किया है कि तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से मुस्लिम महिलाए इस कुप्रथा का शिकार हो रही थी.

हालांकि अध्यादेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रवैया सख्त रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अध्यादेश कानून की जगह नहीं ले सकता है. लेकिन सरकार ने अध्यादेश का रूट अख्तियार किया है. सुप्रीम कोर्ट के वकील फुजैल अहमद अय्यूबी का कहना है कि अध्यादेश में अर्जेंसी का ध्यान रखा जाता है. लेकिन इस मसले पर कोई ऐसी जरूरत नहीं थी. अगला सत्र आने वाला है. ऐसा लगता है कि सरकार ने राजनीतिक तौर पर ये काम किया है.

क्या मिलेगी मुस्लिम महिलाओं को राहत

त्वरित ट्रिपल तलाक को तलाक-ए-बिद्त कहा गया है. हिंदुस्तान में ये प्रथा चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इसको गैर-कानूनी कहा और सरकार से कानून लाने के लिए कहा था. जिसके बाद इस पर सियासत तेज हो गई है. मुस्लिम तंजीमों ने भी इसका विरोध किया है. इन संगठनों ने मुस्लिम महिलाओं का मार्च भी कराया और कहा कि शरीयत के मामले में दखल नहीं होना चाहिए.

हालांकि कई मुस्लिम देश में इस कानून का प्रचलन काफी समय से बंद कर दिया गया है. मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय की उम्मीद जगी है. जिससे धीरे-धीरे इस कुप्रथा को रोका जा सकता है. मुस्लिम तंजीमों को सरकार से लड़ने के बजाय इस पर जन जागरण करना चाहिए.

तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम समाज की फजीहत हो रही है. राजनीतिक दल अपने सियासी फायदे के लिए इस मसले का इस्तेमाल कर रहे हैं. 1986 में शाह बानो केस में ये मामला सुलझ जाता तो शायद सरकार और कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं पड़ती.