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पत्नी के साथ ओरल सेक्स को रेप माना जाए या नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

कोर्ट ने इस मुद्दे पर आई एक याचिका का संज्ञान लेते हुए सोमवार को सुनवाई शुरू की है

FP Staff

भारत में मैरिटल रेप एक ऐसा बड़ा मुद्दा है जिसपर सही तरीके से बात नहीं होती है. शादी के बाद महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा को 130 करोड़ की आबादी का बड़ा वर्ग हिंसा मानता ही नहीं है. कानून में भी लंबे समय तक कोई पत्नी अपने पति पर बलात्कार जैसा आरोप नहीं लगा सकती थी. अब ये स्थिति बदल रही है.

गुजरात हाईकोर्ट ने शादीशुदा जीवन से जुड़े एक अहम मुद्दे पर सुनवाई शुरू की है. मामला है कि अगर कोई पति पत्नी को ओरल सेक्स करने के लिए कहे तो क्या यह बलात्कार या सोडोमी माना जाएगा. कोर्ट यह भी तय करेगा कि पत्नी को ओरल सेक्स के लिए कहने को पति की क्रूरता माना जाए या नहीं.


टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के सबरकांठा जिले में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी. महिला का कहना था कि उसका पति उसे ओरल सेक्स के लिए मजबूर करता है. इसके जवाब में पति ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की थी चूंकि दोनों विवाहित हैं तो शारीरिक संबंधों के किसी एक पक्ष को रेप या सोडोमी नहीं माना जा सकता है. जस्टिस जे बी परदीवाला ने इस मामले में सोमवार को सुनवाई शुरू की है और राज्य सरकार से जवाब भी मांगा है.

मैरिटल रेप की गंभीरता पर बात करते हुए जस्टिस परदीवाला ने कहा कि मैरिटल रेप एक सच्चाई है. देश में महिलाओं का बड़ा तबका रोज इससे गुजरता है. इसके चलते विवाह संस्था से लोगों का विश्वास कम हुआ है.

हाईकोर्ट ने सरकार से भी इस मामले पर जवाब मांगा है कि क्या एक पत्नी अपने पति पर अप्राकृतिक सेक्स और धारा 377 का मामला दर्ज कर सकती है. अगर कोई आदमी अपनी पत्नी पर जबरदस्ती ओरल सेक्स का आरोप लगाए तो क्या समान रूप से क्रूरता का मामला बनेगा?

तीन तरह से होता है मैरिटल रेप

अदालत ने मैरिटल रेप को भी तीन हिस्सों में बांटा. एक जब किसी जरूरत या काम को पूरा करने के बदले में जबरदस्ती संबंध बनाने के लिए कहा जाए.

दूसरा किसी सनक के चलते जबरदस्ती संबंध बनाए जाएं. तीसरा जब ताकत दिखाने के लिए जबरदस्ती संबंध स्थापित किए जाएं.

आपको बता दें भारत सहित दुनिया भर में कई देशों में सोडोमी और ओरल सेक्स को अप्राकृतिक और अपराध माना जाता है. वहीं कई जगहों पर कानूनी रूप से बालिग व्यक्तियों को इसकी कोई मनाही नहीं है. भारत में एक आम धारणा है कि शादी का मतलब पत्नी का हर तरह से शारीरिक हक मिल जाना है. ऐसे में दो लोगों की निजता में कानून बहुत ज्यादा सीमाएं तय नहीं कर पाएगा. अंत में जागरुकता ही ऐसे मामलों को सुलझाने में काम आएगी.