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NTPC धमाका: पॉवर फार अॉल की हड़बड़ी में सेफ्टी फॉर अॉल नजरअंदाज !

सवाल उठ रहे हैं कि यदि यूनिट में काम पूरा नहीं हुअा था तो इसे बंद कर पूरी तरह से मरम्मत की बजाय कम लोड पर चलाते हुए अधूरा काम क्यों पूरा किया जाता रहा?

Ranjib

राष्ट्रीय ताप विद्यूत निगम (एनटीपीसी) के रायबरेली स्थित ऊंचाहार बिजलीघर में बुधवार को बॉयलर बलास्ट होने से मरने वालों की संख्या अब बढ़कर 30 हो गई है. हादसे में कई गंभीर रूप से घायल हैं. यह हादसा भारत के किसी पावर प्लांट में हुए सबसे बड़े हादसों में से एक है.

दुर्घटना को अब कई घंटे निकल चुके हैं. अब इसके पीछे लापरवाही की वजहें भी उभर कर सामने अाने लगी हैं. सवाल उठ रहे हैं कि पावर फॉर अॉल यानी सबको बिजली के जयकारों के बीच कहीं सेफ्टी फॉर अॉल यानी बिजलीघरों में जरूरी सुरक्षा मानकों से समझौता तो नहीं किया जा रहा?


कहां हुई चूक?

वह भी तब जबकि देश में फिलहाल करीब साढ़े तीन लाख मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है अौर बिजली की मांग बमुश्किल डेढ़ लाख मेगावाट. बीते डेढ़ दशक में उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर के कारण कई नए बिजलीघर अौर नए उत्पादन यूनिट तो लग गए. लेकिन उत्पादित बिजली को अाम लोगों तक पहुंचाने का जरूरी ट्रांसमिशन अौर डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क नहीं बन पाया.

नतीजतन कई बिजलीघरों में यूनिटों को या तो बंद रखने या क्षमता से कम पर चलाने की नौबत अाती रहती है. वैसे भी साल का यह वक्त बिजली सप्लाई के लिहाज से अादर्श माना जाता है. इस वक्त एसी ना चलने से बिजली की मांग कम रहती है. जबकि सर्दियों में मांग बढ़ाने वाला हीटर लोड अभी नहीं अाया होता है. इसके बावजूद यदि ऊंचाहार की यूनिट को जबरिया चलाया जाता रहा जिससे हादसा हुुअा तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसी क्या अाफत अा गई थी कि इसे चलाया जाता रहा?

नए पावर प्लांट में कैसे हुआ हादसा?

खास बात यह कि यह हादसा ऊंचाहार परियोजना की सबसे नई यूनिट में हुअा. 500 मेगावाट की इस यूनिट को चालू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं. लिहाजा सवाल उठ रहे कि एकदम नई यूनिट में इतना बड़ा हादसा कैसे हो गया.

ऊंचाहार परियोजना से जुड़े कई तकनीकी जानकारों का कहना है कि इस यूनिट को चलाने की कुछ अाला अफसरों की हड़बड़ी हादसे की वजह बनी. दरअसल एनटीपीसी की कार्यप्रणाली राज्य बिजली बोर्डों या बिजली निगमों से जुदा है.

राज्यों में बिजली के काम से जुड़ी संस्थाअों का अाम उपभोक्ताअों से सीधा वास्ता होता है. ये संस्थाएं बिजली वितरण (डिस्ट्रीब्यूशन) यानी उपभोक्ताअों के घरों तक बिजली पहुंचाने का काम भी करती हैं. एनटीपीसी के मामले में ऐसा नहीं.

एनटीपीसी सिर्फ उत्पादन से जुड़ी संस्था है. यानी यह बिजली बनाती है अौर राज्यों की बिजली संस्थाअों को बेचती है. बिजली उत्पादन के अाखिरी छोर यानी उपभोक्ता के घरों तक बिजली पहुंचाने से यह सीधे नहीं जुड़ी होती.

एनटीपीसी की कार्यप्रणाली को करीब से जानने वालों का यह मानना है कि सिर्फ उत्पादन से सरोकार होने के कारण नवरत्न में शुमार इस राष्ट्रीय संस्था के कर्ता-धर्ता उत्पादन में इजाफे को अपने लेखा-जोखा में शामिल करने की हमेशा हड़बड़ी में रहते रहे हैं. ऐसी हड़बड़ी में सुरक्षा मानकों से समझौता किए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता.

हादसों का दौर जारी

ऊंचाहार में जिस छठी यूनिट में हादसा हुअा उसमें भी ऐसा ही होने के संकेत मिल रहे हैं. यह यूनिट इस साल 31 मार्च को सिंक्रोनाइज कर दी गई थी. सीधे शब्दों में कहें तो चालू कर दी गई थी. 31 मार्च की तारीख इसलिए अहम है क्योंकि वह वित्तीय वर्ष का अाखिरी दिन था.

एनटीपीसी के बड़ों ने अपने अौर संस्था के नाम यह उपलब्धि दर्ज कर ली कि यूनिट तीन साल के बजाय ढाई साल में ही मौजूदा वित्तीय वर्ष के भीतर ही चालू कर ली गई. फिर इस साल इस यूनिट का कमर्शियल यानी वाणिज्यिक उत्पादन भी शुरू होना दर्ज हो गया.

ऊंचाहार परियोजना से जुड़े तकनीकी सूत्रों का दावा है कि यूनिट को अानन-फानन में चला कर वाहवाही तो लूट ली गई लेकिन हकीकत यह है कि यूनिट का काम पूरा नहीं हुअा था. इसलिए इसे कम लोड ( यानी 500 मेगावाट की कुल क्षमता से कम ) पर चलाया जाता रहा अौर साथ ही अधूरे काम भी पूरे किए जाते रहे.

यही वजह है कि हादसे के वक्त वहां करीब डेढ़ सौ से दो सौ मजदूर काम कर रहे थे. बिजली इंजीनियरों की राष्ट्रीय संस्था अॉल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे के मुताबिक 'बॉयलर फ्लोर यानी बॉयलर के पास इतने लोगों का काम करना तभी मुमकिन है जब यूनिट कमीशन होने के स्टेज यानी बनने के दौर में हो. यूनिट कमीशन अौर सिंक्रोनाइज हो जाने के बाद इतने लोगों के वहां काम करने की कोई वजह नहीं.'

कौन है जिम्मेदार? 

इसलिए ये सवाल उठ रहे हैं कि यदि यूनिट में काम पूरा नहीं हुअा था तो इसे बंद कर पूरी तरह से मरम्मत की बजाय कम लोड पर चलाते हुए अधूरा काम क्यों पूरा किया जाता रहा?

यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि जब हादसा हुअा तब 500 मेगावाट की इस यूनिट से 200 मेगावाट ही बिजली न रही थी यानी क्षमता से कम. जानकारों का अनुमान है कि यह हादसा यूनिट के चलाने के लिए कोयले की सप्लाई में अाए असंतुलन से उत्पन्न प्रेशर की वजह से हुअा.

बॉयलर के फर्नेश में जा रहे पिसे हुए कोयले क्लिंकर यानी ढेले की शक्ल में अौसत से ज्यादा तब्दील होने लगे. इन्हें तोड़ने के लिए ही बड़ी संख्या में मजदूर लगे थे. इस दौरान यूनिट चलती रही अौर उसमें जरूरी कोयले की सप्लाई प्रभावित होने से प्रेशर असंतुलित हो गया अौर बॉयलर में धमाका हुअा.

हादसे की असली वजह तो जांच से ही सामने अाएगी लेकिन यह भी तभी मुमिकन होगा जब कोई स्वतंत्र संस्था जांच करे. एनटीपीसी की खुद की जांच पर्याप्त नहीं होगी. इधर अॉल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज किए जाने पर चिंता जताते हुए कहा है कि ऐसी प्रवृति तत्काल बंद होनी चाहिए. फेडरेशन की अोर से इस मुद्दे पर जल्द ही केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री अारके सिंह को ज्ञापन सौंपने की भी तैयारी है.