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नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म

फिल्म 2002 के बाद से 15 साल से ज्यादा वक्त में तैयार हुई है

Bhasha

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन पर ‘एन आर्गुमेंटेटिव इंडियन’ नाम से एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनी है जिसे अर्थशास्त्री और फिल्मकार सुमन घोष ने बनाया है. उनके लिए सेन न सिर्फ अर्थशास्त्री बल्कि एक संवेदनशील व्यक्ति हैं.

सेन ने इसी नाम से एक पुस्तक भी लिखी है.


फिल्म 2002 के बाद से 15 साल से ज्यादा वक्त में तैयार हुई है और इसमें सेन और उनके छात्र अर्थशास्त्री कौशिक बसु के बीच बातचीत है.

फिल्म में प्रतिष्ठित विद्वान पॉल सैमुएलसन, केनेथ ऐरो, सुगाता बोस और पूर्व प्रधानमंत्री तथा अर्थशास्त्री डॉ मनमोहन सिंह ने सेन बारे में अपने विचार साझा किए हैं.

फिल्म में सेन सामाजिक चयन सिद्धांत, विकास अर्थशास्त्र, दर्शन और भारत सहित समूची दुनिया में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद के उभार के बारे में बात करते हैं.

सेन ने बसु से कहा, ‘सामाजिक चयन के तकनीकी पहलुओं को एक तरफ रखते हैं लेकिन विचार यह था कि समाज के लिए क्या अच्छा हो सकता है... भुखमरी और गरीबी से निपटने के लिए.’ उन्होंने 1998 में अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने को भी याद किया.

सेन की मां भी हैं डॉक्यूमेंट्री में 

डॉक्यूमेंट्री में सेन की मां दिवंगत अमिता सेन की भी प्रतिक्रिया है जो 2005 में उनके निधन से पहले की है. वह साक्षात्कारकर्ता से कहती है, ‘उन्होंने (सेन) ने मुझे विदेश से नोबेल पुरस्कार मिलने की खबर देने के लिए फोन किया. मैंने कहा मुझे यकीन नहीं है और उन्होंने कहा कि मेरे शब्द पर यकीन करें. फिर मैंने शांतिनिकेतन (जहां सेन का पैतृक घर है) में मेरे छोटे से कमरे के बाहर टीवी कैमरों और संवाददाताओं की भीड़ देखी.’

फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान घोष ने सेन को नवचेतन व्यक्ति और एक ऐसा शख्स बताया जो विरले ही होते हैं. उन्होंने कहा कि उनके मूल्यांकन के मुताबिक वह एक संवेदनशील अर्थशास्त्री हैं.सेन खुद स्क्रीनिंग के मौके पर मौजूद थे.

जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि अगर आम चुनावों का ऐलान होता है तो वह किसे वोट देंगे? सेन (जिन्होंने अपनी भारतीय नागरिकता बरकरार रखी हुई है) ने कहा, ‘क्या मुझे यह अभी तय करना है?...अभी प्रमुख मुद्दा क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता है.’