नीति आयोग का मानना है कि देश में पढ़ाई-लिखाई के लिहाज से खराब स्तर वाले सरकारी स्कूलों को निजी हाथों को सौंप दिया जाना चाहिए. आयोग का मानना है कि ऐसे स्कूलों को पीपीपी मॉडल के तहत निजी कंपनियों को दे दिया जाना चाहिए.
आयोग ने हाल में जारी तीन साल के एजेंडा में यह सिफारिश की है. इसमें कहा गया है कि यह संभावना तलाशी जानी चाहिए कि क्या प्राइवेट सेक्टर सरकारी स्कूल को अपना सकते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक समय के साथ सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ी है, लेकिन इसमें दाखिले में कमी आई है जबकि दूसरी तरफ निजी स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या बढ़ी है. इससे सरकारी स्कूलों की स्थिति खराब हुई है.
आयोग ने कहा कि शिक्षकों की गैरहाजिरी की ऊंची दर, शिक्षकों के क्लास में रहने के दौरान पढ़ाई पर पर्याप्त समय नहीं देना और शिक्षा की खराब गुणवत्ता महत्वपूर्ण कारण हैं, जिसके कारण सरकारी स्कूलों में दाखिले कम हो रहे हैं और उनकी स्थिति खराब हुई है. निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों के नतीजे खराब हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक इस बारे में अन्य ठोस विचारों की संभावना तलाशने के लिए इसमें दिलचस्पी रखने वाले राज्यों की भागीदारी के साथ एक टास्क फोर्स गठित किया जाना चाहिए.
सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या घटी, निजी में बढ़ी
नीति आयोग के मुताबिक, 'इसमें पीपीपी मॉडल की संभावना भी तलाशी जा सकती है. इसके तहत निजी क्षेत्र सरकारी स्कूलों को अपनाए जबकि प्रति बच्चे के आधार पर उन्हें सार्वजनिक रूप से फंडिंग किया जाना चाहिए.
यह उन स्कूलों की समस्या का समाधान दे सकता है जो बेकार हो गए हैं और उनमें काफी खर्च हो रहा है.' वर्ष 2010-2014 के दौरान सरकारी स्कूलों की संख्या में 13,500 की वृद्धि हुई है लेकिन इनमें दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 1.13 करोड़ घटी है. दूसरी तरफ निजी स्कूलों में दाखिला लेने वालों की संख्या 1.85 करोड़ बढ़ी है.
आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में करीब 3.7 लाख सरकारी स्कूलों में 50-50 से भी कम छात्र थे. यह सरकारी स्कूलों की कुल संख्या का करीब 36 प्रतिशत है.