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PNB स्कैम: पीएम को हेराफेरी के इस ‘गुजरात मॉडल’ से निजात दिलानी होगी

नीरव मोदी चतुर युवा गुजरातियों की लिस्ट में- हर्षद मेहता, हितेन दलाल, जतिन मेहता और केतन पारेख के साथ-शामिल हो गया है- जिनमें से हर एक बीते कुछ सालों में करदाताओं का करोड़ों रुपया हजम कर चुका है.

Aakar Patel

नीरव मोदी चतुर युवा गुजरातियों की लिस्ट में- हर्षद मेहता, हितेन दलाल, जतिन मेहता और केतन पारेख के साथ-शामिल हो गया है- जिनमें से हर एक बीते कुछ सालों में करदाताओं का करोड़ों रुपया हजम कर चुका है. मैं करदाताओं का पैसा कह रहा हूं क्योंकि पैसा हालांकि सरकारी बैंकों से गायब हुआ, लेकिन आखिरकार यह नागरिकों का पैसा था जो चोरी हो गया.

गुरुवार को पंजाब नेशनल बैंक ने कहा कि वह अपने शेयर 163 रुपए की कीमत पर बेचकर 5,500 करोड़ रुपए इकट्ठा करेगा. हालांकि इसके शेयर का मार्केट प्राइस 113 रुपए है और लगातार गिरता जा रहा है. इस तरह आप और हम एक नाकारा बैंक, जिसने हमारा पैसा फिजूल में उड़ा दिया, के लिए प्रति शेयर 50 रुपए प्रीमियम की भरपाई करेंगे.


हमें यकीन दिलाया जा रहा है कि एक बार यह अतिरिक्त पैसा आ गया तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन ये बकवास है और उसी का दोहराव है जो पहले कई बार हो चुका है और इस बार भी होना तय है. हम जिसे स्टॉक मार्केट स्कैम्स (जिसमें हर्षद मेहता और पारेख शामिल थे) के तौर पर जानते हैं वास्तव में वो नीरव और जतिन की तरह ही बैंकिंग फ्रॉड था.

पत्रकार देबाशीष बसु और सुचेता दलाल ने एक किताब लिखी थी- द स्कैमः फ्रॉम हर्षद मेहता टू केतन पारेख. अब उन्होंने इस किताब के नाम संशोधन करते हुए यह भी जोड़ दिया है- ‘आलसो इनक्लूड्स जेपीसी फियास्को एंड ग्लोबल ट्रस्ट बैंक स्कैम.’ मुझे डर है कि उन्हें आगे भी इसे लगातार संशोधित करते रहना पड़ेगा, क्योंकि इस अभागे देश में बड़े बैंकिंग घोटालों की कमी नहीं है.

हर्षद मेहता के मामले में बसु और दलाल लिखते हैं,  'यह स्कैम इतना विशाल था कि किसी चीज से तुलना करना भी मुश्किल हो रहा था. स्वास्थ्य बजट से बड़ा, शिक्षा बजट से भी बड़ा. इसने लाखों के आंकड़े को ऐसा कर दिया था, मानों चिल्लर की बात हो रही हो. बोफोर्स से पचास गुना बड़े आकार के इस घोटाले में पिछले छह महीनों में सबसे धमाकेदार और बेबुनियाद चढ़ाई के बाद देश भर में स्टॉक की कीमतें गिरना शुरू हुईं तो मध्यवर्ग के घर ताश के पत्तों की तरह भरभरा गए.'

हर्षद ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के लिए सिक्योरिटीज खरीदीं, लेकिन उसको सौंपी नहीं, और इसके बजाय इस पैसे का इस्तेमाल सट्टेबाजी में किया. बसु और दलाल लिखते हैं, “इस योजना में, इज्जतदार एएनजेड ग्रिंडलेज बैंक और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्ण स्वामित्व वाले सब्सिडियरी नेशनल हाउसिंग बैंक ने उसकी मदद की. दोनों खुले हाथों से हर्षद के खाते में चेक जमा करते रहे. हर्षद ने आरबीआई द्वारा मेंनटेन किए जाने वाले एसबीआई के खाते को संचालित करने का भी जुगाड़ कर लिया. उसने इस खाते से काल्पनिक खरीद व बिक्री की और इस खरीद/बिक्री को अपने खाते में क्रेडिट/डेबिट किया.'

बिल्कुल साफ है कि संक्रमण पूरे सिस्टम में फैला था. यह बेकार की बात है कि इसके लिए किसी बैंक के एक या दो कर्मचारी को दोषी माना जाए. इसका सिर्फ इकलौता इलाज है कि कानून का पालन सुनिश्चित किया जाए. किसी एक मामले में नहीं बल्कि सभी मामलों में- ट्रैफिक नियम तोड़ने से लेकर हत्या तक में.

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आपराधिक न्याय प्रशासन हर हाल में उपयोगी हो. सरकार हर कीमत पर निर्धारित प्रक्रिया का सम्मान और पालन करे- हमेशा और बिना अपवाद के- तब भी जब लग रहा हो कि अभियुक्त से नरमी बरती जा रही है. यह बहुत मुश्किल काम है, लेकिन और कोई रास्ता नहीं है. जब हम हाल के हाईप्रोफाइल मामलों और अपने इर्द-गिर्द हो रही घटनाओं को देखते हैं तो मन में सवाल उठना लाजमी है कि क्या हमारी सरकार ऐसे कदम उठा रही है? मैं इसका जवाब पाठकों की समझदारी पर छोड़ देता हूं.

प्रधानमंत्री मोदी अब तक नीरव के मामले पर कुछ नहीं बोले हैं. मोदी ने शुक्रवार को बिना उसका या बैंक का नाम लिए कहा, 'जिन लोगों को वित्तीय संस्थानों के लिए नियम बनाने और नैतिकता को कायम रखने का जिम्मा सौंपा गया है, मैं उन लोगों से अपील करता हूं कि वो पूरी निष्ठा से कर्तव्यपालन करें, खासकर वो लोग जिनको निगरानी और निरीक्षण का जिम्मा सौंपा गया है.'

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, 'कम कार्रवाई करना जारी रखेंगे, और सरकार द्वारा बनाई गई नई व्यवस्था में लोगों के पैसे का गलत इस्तेमाल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

बेशक, पहले भी दूसरों ने यही कहा था, जब उनके समय में पैसा गया था, और फिर भी घोटाला जारी रहा. एक देश और एक सभ्यता के तौर पर ऐसा लगता है कि हमारे बैंकिंग सिस्टम को आसानी से चूना लगा देने वाले मृदुभाषी गुजराती युवाओं के लिए कोई मुक्ति नहीं होगी.

हर्षद ने अपनी इनवेस्टमेंट फिलॉसफी को नाम दिया था- ‘रिप्लेसमेंट कॉस्ट थ्योरी.’ इसमें सोच यह थी कि कंपनी के शेयर की कीमत इसकी मौजूदा कीमत से तय नहीं होती, बल्कि कीमत इससे तय होती है कि अगर यह ना हो तो इसकी भरपाई के लिए क्या कीमत देनी होगी.

हर्षद को उम्र की चौथी दहाई में ही बिग बुल का खिताब मिल गया था, और उसे जीनियस कहा जाने लगा था. हमें बताया गया कि नीरव ने पंजाब नेशनल बैंक को सात साल पहले निचोड़ना शुरू किया था. यह महज एक संयोग नहीं हो सकता कि वह, उसका परिवार, अंकल और बाकी लोग घोटाला पकड़े जाने से चंद रोज पहले भारत से चंपत हो गए. निश्चित रूप से सरकार के अंदर की किसी वरिष्ठ शख्सियत ने उन्हें सतर्क कर दिया कि घोटाला खुलने वाला है.

ऊपर बताए गए भाषण में, प्रधानमंत्री ने निरीक्षण और निगरानी में लगे लोगों से पूरी निष्ठा से काम करने की अपील की. 'मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि मौजूदा सरकार वित्तीय अनियमितता करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाएगी. सरकार सार्वजनिक धन को अवैध तरीकों से जमा करने वालों को बर्दाश्त नहीं करेगी. यह नई अर्थव्यवस्था- नए नियम का मूल मंत्र है.'

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पहले के अनुभवों को देखते हुए कोई इन शब्दों पर यकीन करे या न करे, हम आशा करते हैं कि हमारा देश सरकारी धन की लूट से बचने की शक्ति विकसित कर लेगा. हर्षद, दलाल, जतिन, पारेख और नीरव की इस श्रृंखला का खात्मा होगा.

इस बीच हम पर बड़ी मेहरबानी होगी अगर प्रधानमंत्री कम से कम इस गुजराती मॉडल को पूरे देश में और फैलने से रोक सकें.