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नए विदेश सचिव पड़ोसी देशों के साथ बदलते रिश्तों को कैसे संभालेंगे?

विजय केशव गोखले की जबरदस्त रणनीतिक चक्रव्यूह और शानदार समझ-बूझ के कारण ही चीन को डोकलाम में अपनी सेना को वापस बुलानी पड़ी थी

Ravishankar Singh

1981 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के अधिकारी विजय केशव गोखले को भारत का अगला विदेश सचिव नियुक्त किया गया है. विजय केशव गोखले वर्तमान विदेश सचिव एस जयशंकर का स्थान लेंगे, जो 28 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं. विजय केशव गोखले 29 जनवरी को भारत के नए विदेश सचिव की जिम्मेदारी संभाल लेंगे.

गौरतलब है कि विजय केशव गोखले विदेश सचिव एस जयशंकर के बाद भारतीय विदेश सेवा के सबसे सीनियर अधिकारी हैं. पिछले दिनों ही कैबिनेट की अपॉइंटमेंट कमिटी ने गोखले के नाम पर मुहर लगाई थी.


चीन और ताइवान में रह चुके हैं राजदूत

विजय केशव गोखले भारतीय विदेश सेवा के इतिहास में अकेले ऐसे एक मात्र अधिकारी हैं, जिनको चीन और ताइवान में भारत के राजदूत के तौर पर सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ है. गोखले का विदेश सचिव के तौर पर कार्यकाल दो साल का होगा. नियम के मुताबिक भारत में गृह सचिव, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, सीबीआई डायरेक्टर और आईबी चीफ के निदेशक का कार्यकाल दो साल निर्धारित किया गया है.

पिछले साल ही चीन के साथ डोकलाम विवाद के बाद विजय केशव गोखले का नाम सुर्खियों में आया था. विजय केशव गोखले की जबरदस्त रणनीतिक चक्रव्यूह और शानदार समझ-बूझ के कारण ही चीन को डोकलाम में अपनी सेना को वापस बुलानी पड़ी थी.

विजय केशव गोखले 20 जनवरी 2016 से 21 अक्टूबर 2017 तक चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं. इसी दौरान चीन के साथ डोकलाम विवाद का मामला सामने आया था. वर्तमान में गोखले विदेश मंत्रालय में ही सचिव (आर्थिक संबंध) के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

डोकलाम विवाद सुलझने के पीछे गोखले

डोकलाम विवाद सुलझाने के बाद गोखले की काम की काफी तारीफ हुई थी. इस विवाद के समय विदेश सचिव एस जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल के साथ गोखले ने जो रणनीति बनाई थी, उसी के बल पर भारत की कूटनीतिक कामयाबी हासिल हुई थी. जिस तरह से अमेरिका, फ्रांस और विश्व के अन्य देशों के सामने डोकलाम का मुद्दा रखा गया था, वह काबिले-तारीफ था.

विजय केशव गोखले चीन के आलावा जर्मनी में भी लगभग तीन सालों तक भारत के राजदूत के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं. इसके आलावा न्यूयार्क, हांगकांग और हनोई में भी कई भारतीय मिशनों को सफलतापूर्वक पूरा करने का कारनामा उनके नाम है.

गोखले ने विदेश मंत्रालय में निदेशक के तौर पर पूर्वी एशिया डिवीजन को भी संभाल रखा है. पूर्वी एशिया डिवीजन में चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, मंगोलिया और ताइवान के साथ भारत के संबंधों को कवर किया जाता है. गोखले के बारे में कहा जाता है कि वह अपने फैसले पर हमेशा दृढ़ रहते हैं. लो-प्रोफाइल रहनेवाले अधिकारी के तौर पर भी गोखले को जाना जाता है.

पीएम मोदी की नजरों में खरे उतरे गोखले

हम आपको बता दें कि गोखले एक ऐसे आईएफएस अधिकारी का उत्तराधिकारी बनने जा रहे हैं, जो पिछले तीन सालों से प्रधानमंत्री मोदी के तय किए एजेंडों पर खरा उतर रहे थे. पिछले तीन सालों में 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी एस जयशंकर ने भारत की विदेश नीति को एक ठोस और नई दिशा दी है.

एस जयशंकर पीएम मोदी द्वारा बताए उन देशों के साथ भारत के संबंधों को संभालने के लिए प्रयासरत रहे हैं, जो पारंपरिक रूप से विदेश सचिव के डोमेन का क्षेत्र नहीं होता है. एस जयशंकर को 29 जनवरी 2015 को भारत का विदेश सचिव नियुक्त किया गया था. बीते साल जनवरी में ही एस जयशंकर को एक साल का सेवा विस्तार दिया गया था.

एस जयशंकर ने जिस तरह से आईएफएस अधिकारी देवयानी खोबरागडे प्रकरण के दौरान अमेरिका में भारतीय के राजदूत के तौर पर संकट से पार निकाला वह काबिले-तारीफ था. गोखले की तरह एस जयशंकर भी चीन, सिंगापुर और चेक रिपब्लिक में भारत के राजदूत के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं.

पड़ोसी राज्यों के साथ बदलते रिश्ते चुनौती

हम आपको बता दें कि नए साल की शुरुआत में ही भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में नई-नई चुनौतियां सामने आने वाली है. हमारे कुछ पड़ोसी देशों में सत्ता परिवर्तन की आहट अभी से ही सुनाई देने लगी है. नेपाल में तो पिछले दिसंबर महीने में ही सत्ता परिवर्तन हो गया है. नेपाल के निर्वाचित नए प्रधानमंत्री केपी ओली के बारे में कहा जाता है कि वह भारत के बजाए चीन को ज्यादा करीब मानते हैं.

वहीं पाकिस्तान में भी इसी साल जून महीने में आम चुनाव होने जा रहे हैं. मोदी सरकार के आने के बाद पाकिस्तान से हमारे रिश्ते ठीक नहीं रहे हैं. पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान के साथ सीज फायर की घटना में काफी तेजी आई है. पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध लगातार तनाव में रहे हैं.

एक और पड़ोसी देश मालदीव में इसी साल सितंबर महीने में चुनाव होने वाले हैं. मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन भी भारत विरोधी बयान देने के लिए जाने जाते हैं. दूसरी तरफ जिस डोकलाम को लेकर भारत भूटान के साथ खड़ी थी, वहां पर भी इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. भूटान की नई सरकार भारत के साथ अपने रिश्तों को किस रुप रखेगी यह भी नए विदेश सचिव विजय केशव गोखले के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा.

बांग्लादेश, अफगानिस्तान में भी इस साल चुनाव होने हैं. श्रीलंका को छोड़कर बाकी सभी पड़ोसी देशों के भीतर राजनीतिक समीकरण में बदलाव होने वाले हैं. ऐसे में मोदी सरकार ने एस जयशंकर के बाद गोखले की अनुभवों को लाभ उठाने के लिए विदेश सचिव के तौर पर चयन किया है.

अगले कुछ महीनों में भारत के पड़ोसी कई मुल्कों में सत्ता परिवर्तन की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में गोखले का अनुभव ही भारत के विदेश नीति को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा कर सकती है. अब देखना यह है कि विजय केशव गोखले इस अग्निपरीक्षा में कितने खरे उतरते हैं.