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झारखंडः तीर से लड़नेवालों के लिए हजार पुलिस, उग्रवादियों से निपटने को ‘चिट्ठी’

झारखंड में तृतीय प्रस्तुत कमेटी (टीपीसी) के उग्रवादी कोल परियोजनाओं से लेवी वसूलकर करोड़ों कमा रहे हैं.

Anand Dutta

झारखंड में तृतीय प्रस्तुत कमेटी (टीपीसी) के उग्रवादी कोल परियोजनाओं से लेवी वसूलकर करोड़ों कमा रहे हैं. लेवी के पैसे से टीपीसी के रीजनल कमांडर आक्रमण ने ढाई एकड़ जमीन पर एक रेस्टोरेंट और एक वाहन कंपनी का सर्विस सेंटर खोला है. आक्रमण का सर्विस सेंटर चतरा के किशुनपुर में है. स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट के मुताबिक आक्रमण मगध, आम्रपाली कोल परियोजना और एनटीपीसी रेलवे साइडिंग से लेवी की वसूली करवाता है.

टीपीसी के 14 उग्रवादियों की संपत्ति और उनके खिलाफ दर्ज मामलों पर झारखंड पुलिस मुख्यालय की एक रिपोर्ट से उग्रवादियों की जमीन खरीद और व्यापार का खुलासा हुआ है. टीपीसी के उग्रवादियों ने रांची, हजारीबाग, चतरा में कई जगहों पर जमीन खरीद कर आलीशान मकान बना लिया है.


ये उग्रवादी चतरा में मगध और आम्रपाली कोल परियोजना में व्यापारियों व ट्रांसपोर्टरों से मोटी उगाही करते हैं. पिपरवार कोयला खदान से भी टीपीसी को मोटी रकम मिलती है. चतरा में विकास योजनाओं, क्रशर व्यवसायी, तेंदू पत्ता ठेकेदार, लकड़ी तस्करी, पोस्ते की खेती, अफीम तस्कर, शराब के अवैध कारोबारियों से भी उग्रवादी लेवी वसूलते हैं.

ये रहा उग्रवादियों की संपत्ति का ब्यौरा

टीपीसी के लाइजनर सुभान मियां ने आम्रपाली परियोजना के कामता में एक करोड़ का मकान बनवाया है. उसके पास लोडर, पोकलेन सहित कई अन्य गाड़ियां हैं. उसने रांची के कटहल मोड़ में भी 15 डिसमिल जमीन खरीदी है. वहीं शांति समिति के जरिए लेवी वसूलनेवाले बिंदू गंढू ने हजारीबाग के आर्यनगर में तीन मंजिला मकान बनाया है. चतरा के होन्हें में 50 लाख का घर है. टंडवा में अपनी बहन के नाम पर 80 डिसमिल जमीन खरीदी है.

इसी संगठन के मुकेश ने चतरा के झुमरा मोहल्ले में जमीन खरीद कर 20 लाख रुपए का मकान बनाया है. यह उग्रवादी मगध कोल परियोजना और टीपीसी सुप्रीमो गोपाल सिंह भोक्ता उर्फ ब्रजेश गंझू के बीच कड़ी का काम करता है. वहीं एक और उग्रवादी विजय साव ने हजारीबाग के पंचशील नगर में मकान बनाया है. उसके अलावा ब्रजेश गंझू के साले पंकज साव, परमेश्वर गंझू, अर्जुन गंझू, महेश वर्मा की संपत्ति की जानकारी भी मिली है.

पुलिस के पास जब जानकारी तो कार्रवाई क्यों नहीं

अब सवाल उठता है कि तीर-धनुष लेकर आंदोलन करनेवाले पत्थलगड़ी समर्थकों से निपटने के लिए पूरे राज्य से बुलाकर तीन हजार से अधिक पुलिसकर्मी खूंटी में तैनात कर दिए गए तो इन घोषित उग्रवादियों से निपटने के लिए क्या कर रही है. वह भी तब जब इनके अवैध कामों और उग्रवादी गतिविधियों की पुख्ता जानकारी पुलिस के पास मौजूद है.

राज्य पुलिस प्रवक्ता आईजी आरके मलिक का कहना है कि अपराधी कोई भी हो, पुलिस की जद में आएगा ही. धीरे-धीरे उनका पता लगाया जा रहा है. 24 लोगों की संपत्ति को जब्त किया गया है. बाकियों के बारे में जानकारी मिलने पर कार्रवाई की जाएगी. एसआईटी के गठन के सवाल पर उन्होंने कहा कि एसआईटी के गठन संबंधित कोई पत्र आपके पास है तो व्हाट्सएप करें. मुझे इसकी जानकारी नहीं है.

उग्रवादी का भाई है बीजेपी का विधायक

टीपीसी प्रमुख ब्रजेश गंझू के भाई दिनेश गंझू इस वक्त चतरा जिले के सिमरिया (एससी) सीट से विधायक भी हैं. साल 2015 में उन्होंने बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम से चुनाव लड़ा और जीतने के बाद वह बीजेपी के साथ चले गए थे. खुद ब्रजेश गंझू भी साल 2016 में हुए पंचायत चुनाव लड़ चुका है. वह निर्विरोध चुना भी गया. पुलिस के रवैये का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जो अपराधी मोस्ट वांटेड हो वह नामांकन दाखिल कर चला गया, लेकिन पुलिस को भनक नहीं लगी और वह गिरफ्तार नहीं हो सका.

उग्रवादी आक्रमण की पत्नी नीलम देवी भी पंचायत समिति सदस्य के तौर पर चुनाव जीत चुकी है. लेवी वसूली का आलम यह है कि ब्रजेश गंझू सहित 15 उग्रवादियों के बैंक अकाउंट साल 2016 दिसंबर में सीज किए गए थे. इन खातों में लगभग 50 करोड़ रुपए जब्ती की जानकारी झारखंड पुलिस ने मीडिया के साथ साझा की थी. यही नहीं, उसी साल नोटबंदी के बाद खबर ये भी आई थी कि ब्रजेश गंझू छत्तीसगढ़ के दारुल हुकूमत रायपुर में होटल खरीदने गया था. वह लगभग 250 करोड़ रुपए बोरे में भरकर ले गया था. होटल मालिक ने जब इन पैसों की डिमांड चेक या ड्राफ्ट में की तो मामला बिगड़ा. इसकी जानकारी झारखंड पुलिस को भी दी गई थी.

जानिए कैसे बना उग्रवादी संगठन टीपीसी

जानकारी के मुताबिक पहली बार जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद के कार्यकाल के दौरान आतंकियों के निपटने के लिए उन्हीं के गुट से एक आतंकी को तोड़ा गया. आतंकी था कूका परे. बाद में वो विधायक भी बना. पुलिस ने उसको हर तरह की अवैध गतिविधि करने की छूट दी. लकड़ियों की अवैध कटाई से लेकर हथियार सप्लाई तक की सुविधा उसे मिली. बदले में वो हिज्बुल सहित अन्य आतंकी संगठनों के आतंकियों को मारता था. बाद में इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम का गठन किया गया.

जहां तक टीपीसी की बात है तो साल 2004 में भाकपा माओवादी की आठवीं कांग्रेस के दौरान दो पत्र पेश किए जा चुके थे. तीसरा पत्र सेंट्रल कमेटी मेंबर भरत जी ने पेश किया. जिसे तत्कालीन सेंट्रल कमेटी सदस्यों ने पढ़ने और उसपर चर्चा करने के रोक दिया. और उनसे कहा गया कि वह निचली कमेटी में जाएं. इसके बाद भरत जी ने संगठन के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर एक कमेटी बनाई, जिसका नाम तृतीय प्रस्तुत कमेटी रखा गया.

बाद में इस संगठन से ब्रजेश गंझू नाम का माओवादी जुड़ा. वह पुलिस के साथ मिलकर लेवी वसूलने, भाकपा-माओवादी के सदस्यों की हत्या करने सहित अन्य आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया. हालांकि इसके बाद भरत जी का आज तक पता नहीं चला. साल 2007 तक यह संगठन पूरी तरह के ब्रजेश गंझू के कब्जे में आ गया.

झारखंड के अलावा बिहार और बंगाल में भी सक्रिय हो चुका है संगठन

संगठन में गंझू, भोक्ता जाति के लोगों का प्रभुत्व है. यह मुख्य तौर पर झारखंड के चतरा, हजारीबाग, लातेहार, रामगढ़, पलामू, लोहरदगा जिलों में काफी सक्रिय माना जाता है. हाल के वर्षों में यह झारखंड के अलावा बिहार के गया, औरंगाबाद और पश्चिम बंगाल के कोलकाता और हुगली में भी इसका विस्तार हो चुका है. संगठन के प्रमुख ब्रजेश गंझू ने मीडिया में दिए बयानों के मुताबिक उनके संगठन की दुश्मन पुलिस नहीं है. उनका मुकाबला माओवादियों से है.

इसके अलावा झारखंड में इस समय माओवादी संगठन के इतर पिपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई), झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी), पिपुल्स वॉर ग्रुप (पीडबल्यूजी) सहित कई और उग्रवादी संगठन काम कर रहे हैं.

जानिए ऐसे टीपीसी की मदद करती रही है पुलिस

पिछले 15 सालों से झारखंड में क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार सुरजीत सिंह बताते हैं कि टीपीसी को राज्य सरकार और पुलिस खुलकर मदद करती रही है. साल 2015 तक पुलिस ने उसके उग्रवादियों के खिलाफ एक भी अभियान नहीं चलाया. छिटपुट कार्रवाई को छोड़ दें तो उसे केवल मदद ही पहुंचाई और उसका इस्तेमाल किया. खासकर जब भी माओवादियों के खिलाफ अभियान में पुलिस निकली, तो पहले टीपीसी के उग्रवादियों को आगे किया. फिर खुद आगे बढ़ी.

झारखंड के सीएम रघुबर दास

सुरजीत सिंह की इस बात की तस्दीक ऐसे भी होती है कि टीपीसी के गठन (2007) के बाद पहली बार दो जुलाई 2015 को चतरा के एसपी ने सरकार को पत्र लिखा कि हालांकि लेवी वसूली का कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन संगठन की जांच एसआईटी से करवाई जा सकती है. इसके बाद 25 अक्तूबर 2015 को लिखे पत्र में अवैध वसूली की जानकारी दी गई. 21 दिसंबर 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव राजीब गौबा ने झारखंड सरकार को पत्र लिख जांच के लिए एसआईटी के गठन की सलाह दी.

इसके बाद 27 जनवरी 2016 को चतरा एसपी ने पत्र लिखकर कार्रवाई की बात कही. 20 अक्टूबर 2016 को सेंट्रल होम मिनिस्ट्री ने सीएम को पत्र लिखकर डीआईजी बोकारो के नेतृत्व में एसआईटी गठन की सलाह दी. लेकिन अभी तक किसी तरह की एसआईटी का गठन नहीं किया गया है. हाल के दिनों में वर्तमान चतरा एसपी अखिलेश वारियर ने 50-55 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इसमें लेवी वसूलने और देने वालों को भी शामिल कर लिया गया है.

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. हमारी वेबसाइट पर इनके अन्य लेख यहां क्लिक कर पढ़े जा सकते हैं. )