नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दिए जाने वाले जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाले यह अक्सर कहते हैं कि इससे मेरिट खराब होगी. हालांकि यह बात और है कि जाति आधारित आरक्षण का विरोध करने वाले, पैसों के आधार पर होने वाले एडमिशन के बारे में ‘मेरिट’ खराब होने का तर्क नहीं गढ़ते हैं.
देश के प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज मोटी रकम लेकर स्टूडेंट्स की भर्ती करते हैं. सवाल यह है कि क्या पैसे लेकर होने वाली इन भर्तियों से ‘मेरिट’ का नुकसान नहीं होता है?
खैर जाति-आधारित आरक्षण पर बहस इस लेख का मुद्दा नहीं है. फिर भी जिस मेरिट की दुहाई इसके विरोध के लिए दी जाती है, उसकी पड़ताल जरूरी है.
दरअसल जिस मेरिट के बारे में बार-बार कहा जाता है, उसी मेरिट के अद्भुत मापदंड ने हाल ही में एक दलित छात्रा अनीता की बलि ले ली.
सरकारी खांचे में फिट नहीं थी अनीता!
तमिलनाडु की अनीता एक दिहाड़ी मजदूर की प्रतिभाशाली बेटी थी. उसकी एक छोटी सी इच्छा थी कि वो डॉक्टर बने. पर इस डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए जो नया ‘खांचा’ हमारी सरकार ने बनाया है उसमें वह फिट नहीं बैठ रही थी. बेहतरीन नंबरों से 12 वीं पास इस दलित छात्रा ने इस खांचे को तोड़ने की भरसक कोशिश की लेकिन इस तथाकथित ‘मेरिटवादी’ व्यवस्था के आगे लाचार होकर उसने इस दुनिया को अलविदा कहने में ही अपनी भलाई समझी. बिल्कुल रोहित वेमुला की तरह.
कहने को अनीता ने आत्महत्या की है लेकिन यह एक ‘सांस्थानिक हत्या’ का उदाहरण है. कई लोग यहां यह पूछ सकते हैं कि इसे ‘सांस्थानिक हत्या’ किस बिना पर कहा जा रहा है?
इसके जवाब के लिए अखिल भारतीय स्तर पर होने वाली ‘नीट’ (NEET) की परीक्षा संबंधी नियमों की पड़ताल करनी होगी.
हमारे देश में 10+2 तक की पढ़ाई के लिए अलग-अलग बोर्ड हैं. भारत जैसे भाषाई और सांस्कृतिक विविधता वाले देश के लिए यह जरूरी भी है. अलग-अलग राज्यों के अपने-अपने शिक्षा बोर्डों के अलावा हमारे देश में दो केंद्रीय शिक्षा बोर्ड हैं- सीबीएससी और आईसीएसई.
नीट की अनिवार्यता ने तोड़ा अनीता का सपना
इसमें से सीबीएसई बोर्ड देशभर के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए नीट नामक परीक्षा लेता है. इस परीक्षा का सिलेबस सीबीएसई की 11वीं-12वीं क्लास का सिलेबस है. जबकि कई राज्यों के शिक्षा बोर्ड का सिलेबस इससे अलग है. ऐसी स्थिति में ऐसे राज्य बोर्ड्स से पढ़ने वाले मेधावी स्टूडेंट्स भी नीट की परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं. अनीता के साथ भी ऐसा ही हुआ.
तमिलनाडु बोर्ड का सिलेबस नीट के सिलेबस से बिल्कुल अलग है. मेधावी अनीता ने तमिलनाडु बोर्ड द्वारा ली जाने वाली परीक्षा में कुल 1200 अंकों में 1176 नंबर पाए थे. इतने नंबर पाने के बाद पुराने नियमों के अनुसार अनीता का एडमिशन तमिलनाडु के किसी भी मेडिकल कॉलेज में सामान्य श्रेणी में ही हो जाता.
दरअसल पहले हर राज्य के मेडिकल कॉलेजों में नीट परीक्षा के अलावा अलग-अलग राज्य बोर्डों द्वारा बनाए गए नियमों के आधार पर भी एडमिशन हुआ करता था. ये राज्य बोर्ड या तो अपने सिलेबस के हिसाब से प्रवेश परीक्षा लिया करते थे या फिर 12वीं के नंबरों के आधार पर स्टूडेंट्स को एडमिशन दिया करते थे. तमिलनाडु में 12वीं में प्राप्त नंबरों के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन हुआ करता था. इस आधार पर देखें तो अनीता के पास मेरिट की कोई कमी नहीं थी.
लेकिन यही मेरिट केंद्र सरकार के एक फैसले से 'डिमेरिट' में बदल गई. सरकार ने पुराने नियमों को बदलते हुए यह फरमान दिया कि सिर्फ नीट परीक्षा पास करने वालों को ही मेडिकल कोर्स में एडमिशन मिलेगा.
यह फरमान जारी करते वक्त सरकार को यह ख्याल नहीं आया कि राज्य शिक्षा बोर्ड से 12वीं की पढ़ाई करने वाले लाखों स्टूडेंट्स का क्या होगा, जिनकी पढ़ाई सीबीएसई बोर्ड के तहत नहीं हुई है? काफी विरोध के बाद तमिलनाडु के छात्रों को एक बार इस परीक्षा में बैठने और पास करने से छूट भी मिल गई, लेकिन सरकार ने इस बार यह छूट देने से इनकार कर दिया.
कमजोर तबके को रोकते हैं 'नीट' जैसे नियम
अनीता ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाया. काफी विरोध के बाद केंद्र सरकार ने यह कहा भी था कि वो तमिलनाडु को नीट से छूट देने पर विचार कर रही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सरकार अपने इस वादे से मुकर गई और अनीता की याचिका खारिज हो गई. इस याचिका के खारिज होने के बाद भारी विरोध होने पर केंद्र सरकार ने फिर से तमिलनाडु को नीट से छूट देने के वादे को दुहराया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. अनीता का इस व्यवस्था पर से भरोसा उठ चुका था.
सवाल यहां यह भी है कि यह कौन सी शिक्षा व्यवस्था है जिसमें अनीता को एक बोर्ड में इतने अच्छे नंबर आते हैं कि वो उस लिहाज से हर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए योग्य थी. लेकिन महज सिलेबस और नियमों में बदलाव से वह ‘अयोग्य’ हो गई.
क्या यह सरकार से नहीं पूछा जाना चाहिए कि जब 12वीं का सिलेबस हर राज्य के छात्रों के लिए अलग-अलग है तो ‘नीट’ की परीक्षा सिर्फ सीबीएसई बोर्ड के सिलेबस के ही अनुसार क्यों? क्या यह जानबूझकर राज्य शिक्षा बोर्ड्स से पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के साथ किया जाने वाला अन्याय नहीं है?
यह सर्वमान्य और सर्वज्ञात तथ्य है कि राज्य बोर्ड्स में पढ़ने वाले अधिकतर स्टूडेंट्स गरीब और कमजोर तबके से आते हैं. ‘नीट’ जैसे नियम इन छात्रों को मेडिकल जैसे प्रतिष्ठित कोर्सेज में एडमिशन लेने से रोकते हैं. अनीता के साथ भी यही हुआ.
एक 17 वर्षीय दलित छात्रा से यह व्यवस्था ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के नाम पर यह इच्छा रखती है कि वो दो तरह के सिलेबस में महारत हासिल करे, तभी उसका डॉक्टर बनने का सपना पूरा होगा. अनीता के मौत की वजह हमारी व्यवस्था द्वारा बनाए गए उटपटांग नियम हैं. ये नियम इंक्लूसिव होने की जगह एक्सक्लूशन का ही अब तक काम करते रहे हैं. इस तरह के नियमों को बदले बिना अनीता जैसे मेधावी स्टूडेंट्स को बचाना नामुमकिन ही है.