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सुकमा हमला: माओवादियों के प्रवक्ता ने जारी की ऑडियो क्लिप

जवानों की हत्या को सही ठहराया

Debobrat Ghose

24 अप्रैल को सुकमा जिले के बुर्कापाल में माओवादियों ने सीआरपीएफ पर हमला कर 25 जवानों की हत्या कर दी थी.

हमले के दो दिन बाद जारी एक ऑडियो क्लिप में माओवादियों के प्रवक्ता ने उस हत्याकांड को सही ठहराया है. उस ऑडियो क्लिप में इस बात का जिक्र किया गया है कि उन जवानों की जान क्यों ली गई?


कहा जा रहा है कि इस ऑडियो क्लिप को माओवादियों के एक राजनीतिक संगठन, सीपीआई (माओवादी) दंडकारण्य स्पेशल जोन कमेटी ने जारी किया है. कमेटी ने दावा किया है कि उसने 11 मार्च और 24 अप्रैल के हमले के जरिये सरकार, उसकी फासिस्ट ताकतों और ऑपरेशन हंट को मुंहतोड़ जवाब दिया है. ये ऑडियो क्लिप हिन्दी में है और सिर्फ 42 सेकेंड की है.

इस क्लिप में प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के प्रवक्ता विकल्प ने पीपल्स लिब्रेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए), पार्टी कार्यकर्ताओं और उन तमाम लोगों की तारीफ की है, जिन्होंने घात लगाकर किए जाने वाले इस हमले को अंजाम देने में मदद की.

क्या है हमले का आधार?

क्लिप में दावा किया गया है कि केन्द्र के अर्द्धसैनिक बलों से उनकी कोई दुश्मनी नहीं है. लेकिन हमले को इस आधार पर सही ठहराया गया है कि यह भी सरकारी मशीनरी का एक हिस्सा है और इसलिए उनकी क्रांति की राह में रोड़ा है.

2016 में सरकार ने हमारे कार्यकर्ताओं पर बर्बर हमले किए थे और उस हमले में हमारे लोग सहित छत्तीसगढ़ के 9 ग्रामीण मारे गए थे. इसके अलावा ओडिशा में 21 लोगों की जानें गई थीं.

चिंतनगुफा में घात लगाकर सीआरपीएफ पर किए गए इस हमले को इन बर्बर हत्याओं और महिलाओं के खिलाफ किए जाने वाले यौन हिंसा की रौशनी में ही देखा जाना चाहिए. विकल्प ने कहा कि हम इस कार्रवाई को करने के लिए मजबूर थे.

क्या है इनका मकसद?

पीएलजीए (पीपल्स लिब्रेशन गुरिल्ला आर्मी) सीपीआई (माओवादी) का हथियारबंद संगठन है, जिसका मकसद लोगों को लड़ाई के लिए उकसा कर सरकार को उखाड़ फेंकने का है.

माओवादियों का यही संगठन सीआरपीएफ के जवानों और पुलिस पर हमले करती रही है. इस तरह के हमले को सही ठहराने का तर्क देते हुए कहता है कि सरकार और सरकारी एजेंसी देश की दौलत को लूट रही है और हम उसकी सुरक्षा में ऐसे हमले को अंजाम देते हैं.

जारी ऑडियो फाइल में प्रवक्ता ने बताया है कि हमारी पार्टी शोषण, दमन के शिकार और सरकारी मशीनरी के निशाने पर रह रहे लोगों के हितों में ही चिंतनगुफा जैसे हमलों की घटनाओं को अंजाम देती हैं.

गुरुवार को जारी हुआ यह क्लिप

गुरुवार को जारी यह क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. हालांकि 11 मार्च के हमले के बाद नक्सल खामोश रहे और उस कार्रवाई की जिम्मेदारी भी नहीं ली.

https://soundcloud.com/firstpostin/2017-04-27-audio-00000002

उन्होंने अपनी बर्बर कार्रवाई को यह कहकर सही ठहराया कि वह सरकार की उन फासिस्ट ताकतों के खिलाफ है, जिनका समर्थन साम्राज्यवादी, बहुराष्ट्रीय कंपनी और पूंजीपति करते हैं.

इस ऑडियो की सच्चाई और सीपीआई (माओवादी) की ओर से किए जा रहे दावे की पुष्टि नहीं की गई है. हालांकि छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने फर्स्टपोस्ट को बताया कि उन्हें बस्तर के माओवादी संगठन की तरफ से जारी

ऑडियो क्लिप के बारे में पता है.

क्या है ऑडियो क्लिप?

ऑडियो क्लिप के आखिर में अर्द्धसैनिक बलों और निचले दर्जे के पुलिस अधिकारियों से अपील की गई है कि वो उन सरकारी पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के लिए काम नहीं करें, जो सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, एनजीओ और यहां तक कि विपक्षी पार्टियों को निशाना बनाते हैं.

ऑडियो क्लिप में माओवादी संगठन ने यह आरोप लगाते हुए हमला किया है कि बीजेपी सरकार के संरक्षण के तहत काम करने वाली पुलिस आदिवासियों और दलितों पर अत्याचार करती है, महिलाओं का बलात्कार करती है और गांव

वालों को मुठभेड़ में मार गिराती है.

ऑडियो क्लिप के आखिर में सीपीआई (माओवादी) दंडकारण्य स्पेशल ज़ोन कमेटी के आधिकारिक प्रवक्ता, विकल्प दावा करते हैं, 'पुलिस को चाहिए कि वो इन शोषितों को शिकार बनाने के बजाय सरकार को अपना निशाना बनाए.

सरकार के बनाए इस लोकतांत्रिक विरोधी और फ़ासिस्ट माहौल का विरोध करने के लिए हम चिंतनगुफा जैसी वारदात को अंजाम देने के लिए मजबूर हैं.'

ऑडियो की मुख्य बातें

मिशन 2017 को परास्त करने के लिए पीएलजीए और क्रांतिकारी जनता की जय-जयकार चिंतनगुफा की घटनाएं (माओवादी हमले) क्रांतिकारी जन-आंदोलन पर लगाम लगाने वाले और ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाने वाले फ़ासिस्ट बलों के ख़िलाफ़ एकदम सही जवाब है

चिंतनगुफा वारदात को अंजाम देने वाले पीएलजीए कमांडरों, कॉमरेडों और सक्रिय सहयोग देने वाले आम लोगों को लाल सलाम

हमारी क्रांति को बचाने के लिए यह हमला (24 अप्रैल को बुर्कापाल का हमला) 11 मार्च को हुए हमले की ही एक कड़ी है.

असल में हम हिंसा के पक्षधर नहीं हैं और न ही अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के खिलाफ हैं. बल्कि हम तो उन लोगों के साथ खड़े हैं, जिनका सरकार दमन करती है और जो सरकार साम्राज्यवादी ताकतों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े

कॉर्पोरेट और पूंजीपतियों की नुमाइंदगी करती है. हम उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूर हैं.

फासिस्ट सरकार के कहने पर ही अर्द्धसैनिक बलों के जरिए हमारे कार्यकर्ताओं को मारा जाता रहा है. हमारी उन शहीद महिला साथियों की फोटो खींची गई, जिन्हें मुठभेड़ के दौरान मारा गया, उनकी अश्लील फोटो बनाई गई और

उन्हें इंटरनेट और मोबाइल फोन पर जारी कर दिया गया.

आदिवासियों के हक वाले खनिज पदार्थों और प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए उन इलाकों में सरकारी एजेंसियां रेलवे लाइन बिछा रही हैं.

हम पुलिस कर्मचारियों, सीआरपीएफ और छोटे दर्जे के पुलिस अधिकारियों से अपील करते हैं कि वो उन शोषकों, विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, पूंजीपतियों, बड़े ठेकेदारों, कारोबारियों और बड़े व्यापारियों, गुंडों, माफिया और ब्राह्मणवादी हिन्दुत्व फ़ासीवादियों का साथ देना बंद करें, जो गरीब विरोधी हैं, आदिवासियों का हक़ छीनते हैं, पिछड़ी जातियों, दलितों और महिलाओं के खिलाफ खड़े हैं.

आप इन लोगों को बचाने के लिए अपनी जिंदगी मत गंवाइये. व्यक्तिगत तौर पर ये जवान हमारे दुश्मन नहीं हैं, लेकिन ये उस शोषक सरकारी मशीनरी का ही हिस्सा हैं, जो हमारी पार्टी और पीएलजीए की क्रांति की राह का एक रोड़ा है, इसी कारण हम उन पर हमला करते हैं.

हम अपील करते हैं कि आप मासूम और शोषितों को अपना निशाना बनाने के बजाय सरकारी नौकरी छोड़ दीजिए और शोषकों को अपना निशाना बनाइये.

सुरक्षा मामलों के जानकार क्या कहते हैं ?

सुरक्षा विश्लेषक कर्नल (अवकाश प्राप्त) जयबंस सिंह कहते हैं, 'माओवादियों ने जीत के नशे में अपनी ऑडियो क्लिप में बड़े ही हल्के बयान दिए हैं. इससे यही साबित होता है कि उन्हें इतिहास की बहुत कम जानकारी है और यहां तक

कि उनकी विचारधारा भी बहुत कमजोर है.'

अगर ऐसा नहीं होता, तो लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई एक बेहद लोकप्रिय सरकार को वे फासिस्ट नहीं कहते. वो निश्चित रूप से नहीं जानते हैं कि फासिस्ट का मतलब आखिर होता क्या है? और भारत के राजनीतिक माहौल से उसका कोई लेना-देना नहीं है.

वो भारतीय सुरक्षा बलों के लचीलेपन को इतना कम आंकते हैं क्योंकि भारतीय सुरक्षा बल कई आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से अच्छी तरह से निपट चुकी है और ऐसा करते हुए वो हमेशा विजेता बनकर सामने आई है.

'25 बहादुर जवानों की शहादत की घटना सुरक्षा बलों की ताकत को आखिरकार बढ़ाएगी और इस तरह के ख़तरे को जल्द ही खत्म करने के लिए सीआरपीएफ के संकल्प को और मजबूत करेगी. उन्हें सलाह दी जाएगी कि वो हिंसा का रास्ता छोड़ दें और भारत को एक मजबूत वैश्विक शक्ति के रूप में विकसित होने में मदद करने के लिए मुख्यधारा में आ जाएं'

आतंकवाद के खिलाफ़ चलने वाली कार्रवाई के विश्लेषक अनिल कंबोज कहते हैं, 'माओवादी भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं करते हैं. वो किसी भी तरह सत्ता पर अपना इख्तियार चाहते हैं.

क्या इनका संबंध इस्लामिक कट्टरवादियों से है? 

इस घटना से ये सच्चाई भी सामने आई है कि इनका संबंध इस्लामिक कट्टरवादियों से भी है, क्योंकि इसी तरह की ऑडियो क्लीप अल-कायदा भी जारी करता रहा है. यह बात दिखाती है कि माओवादी किसी बाहरी ताकत के इशारे पर चल रहे हैं.

वो खुद को बार-बार एक क्रांतिकारी ताकत कहते हैं और खुद को सरकार के खिलाफ पेश करते हैं. इनकी यह विशेषता भी उन इस्लामिक आतंकवादी और चरमपंथी संगठनों से मिलती जुलती है, जो किसी भी सरकार को नहीं मानते.

कंबोज आगे कहते हैं, 'उन्होंने यह कहते हुए अपने हत्याकांड को सही ठहराया है कि सरकारी एजेंसियों ने खनिज पदार्थों को जमकर लूटा है और हमारी कार्रवाइयों का मकसद उन खनिज पदार्थों को लूट से बचाना है. खनिज पदार्थ

देश के हैं और यह किसी सरकार या किसी शख्स की बपौती नहीं है. देश के खजानों पर फैसला करने वाले वो आखिर होते कौन हैं?

वो कोई विकास नहीं चाहते हैं और यही कारण है कि वो सीआरपीएफ की सड़क उद्धाटन पार्टी पर हमला करते हैं. सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि उनसे लड़ने के लिए हमारे देश के पास कोई रणनीति नहीं है और आखिरकार जो इस काम में सबसे आगे हैं, वही मारे जा रहे हैं.