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'किस' से घबराया नक्सलवाद: आदिवासी बच्चों के पढ़ने पर मौत की सजा का फरमान

कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज बना नक्सलियों के लिए चिंता का विषय.

Nazim Naqvi

मई के पहले सप्ताह में ‘फर्स्टपोस्ट’ ने भुवनेश्वर स्थिति ‘कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइन्सेज’ (किस) के चौंका देने वाले तालीमी कारनामों से अपने पाठकों को रुबरु कराया था.

पिछले 25 वर्षों से ‘किस’ नक्सली क्षेत्र के हज़ारों आदिवासी बच्चों को जंगलों से निकाल कर अक्षरों से उनके रिश्ते मज़बूत केर रहा है. वो अक्षरों कि उंगली पकड़कर आगे बढ़ रहे हैं, कोई डॉक्टर बन रहा है, कोई इंजीनियर तो कोई खिलाड़ी.


अचुत सामंत एक अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि 'अब तक हजारों बच्चे शिक्षित हो चुके हैं, सोचिये अगर ऐसा न हुआ होता तो इन बच्चों के पास बन्दूक पकड़ने के अलावा और रास्ता ही क्या था.'

और यहीं से शुरू होती है वो घबराहट जिसने जंगलों को बेचैन कर दिया है. ‘किस’ से अर्जित अपने अनुभवों में मैं ‘शांति मुरमू’ को कैसे भूल सकता हूं जिसने मुझे ये कहकर चौंका दिया था कि वो ‘केमिस्ट्री ऑनर्स’ कर रही है.

जी हां, आप यहां आइये तो न जाने कितनी शंतियां, धर्मानंद भोई, मिनाक्षी मांझी जैसे तेजस्वी बच्चे आपको आस-पास घूमते नजर आयेंगे. शांति मुरमू मयूरभंज जिले के एक छोटे से गांव से यहां आई है. चार भाई-बहन हैं, पिता मजदूर हैं, वहीं जंगलों में.

KISS से केमेस्ट्री ऑनर्स कर रही है शांति मूरमू.

चौंकाता ये नहीं है कि वो केमिस्ट्री ऑनर्स कर रही है, हैरत ये होती है कि खुद में आये बदलाव के बाद वो अपने क्षेत्र कि दूसरी महिलाओं/लड़कियों के लिए फिक्रमंद है. उसने एक संस्था बना ली है ‘परिवर्तन’ और गर्मियों की छुट्टियों में लीजिये अक्षरशः उसकी ही जुबां में सुनिए कि वो क्या करती है:

'सर मैं एक इनीशिएटिव शुरू की हूं... जो परिवर्तन नाम की... 7 गांव में अभी मैं काम कर रही हूँ... और वहां पे गर्ल्स चाइल्ड एजुकेशन का मतलब इम्पोर्टेंस क्या है सभी को मैं बता रही हूँ... अर्ली मैरेज... जो बहुत जल्दी सादी कर देते हैं गाँव में सब... क्योंकि लड़की लोग का कोई भेल्यू नहीं... भेल्यू है लेकिन क्या है अधिक पढ़ाने से क्या फायदा ये सोच के बहुत जल्द सादी कर देते हैं... और अर्ली मैरेज का बैड इफ्फेक्ट तो सर आपको पता ही है...”

जब खबर आई कि ओडीशा के जंगलों में नक्सलियों ने काकीरीगुमां क्षेत्र में पोस्टर चिपकाए हैं, जिसमे ‘किस’ के संस्थापक अच्युत सामंत को संबोधित करते हुए लिखा गया है कि 'हम सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे हैं और आप मंत्रियों को इंस्टिट्यूट में आमंत्रित कर रहे हैं. इसे बंद नहीं किया तो प्रजा कोर्ट में सजा सुनाई जायेगी.' तो हमें नक्सली बेचैनी का अंदाजा हो जाना तो लाजमी ही था.

नक्सलियों की धमकी का पोस्टर.

दरअसल गर्मियों की छुट्टियों में जब ये हजारों बच्चे अपने गांवों को लौटते हैं तो उन्हें देखकर और उनकी बातें सुनकर स्थानीय लोगों में एक चेतना जागृत होती है. यही वो समय है जब ‘किस’ के पदाधिकारी भी नए एडमिशन के लिए माता-पिता से संपर्क करते हैं ताकि वो अपने छोटे बच्चों को पढने के लिए भेज सकें.

कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के कोरापुट में चल रही ब्रांच की दीवारों पर सीपीआई (माओवादी) द्वारा चिपकाए गए पोस्टरों पर जब हमने अच्युत सामंत से बात की तो उनका कहना था, 'ऐसी खबर हमें जरूर मिली है लेकिन इस खबर से डरकर अपना काम तो हम नहीं रोक सकते.'

हमें बरबस निदा फाजली का शेर याद आ गया:

खुदा के हुक्म से शैतान भी है आदम भी

वो अपना काम करेगा, तुम अपना काम करो