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नवरात्र स्पेशल: यूपी की दिव्यांग बेटी अरुणिमा से हारा एवरेस्ट!

अरुणिमा देश की पहली दिव्यांग बेटी है जिसने एवरेस्ट को फतह किया.

Kinshuk Praval

( नवरात्र के मौके पर नवरात्र की पूजा विधि बताने या देवी की प्रार्थना के बजाय आपको मिला रहे हैं कुछ जागृत देवियों से, इन महिलाओं ने ऐसा कुछ किया है कि जो जीवन में शक्ति की मिसाल बनी हैं )

अचानक हंसती-खेलती जिंदगी में अगर कोई हादसा शरीर को अपाहिज कर दे तो बाकी जिंदगी के दिन सदियों से बीतते हैं. ये हादसा अगर किसी लड़की की जिंदगी में गुजरे तो उसके सतरंगी सपनों का संसार फीका हो जाता है.


लेकिन यूपी की एक बेटी ने अपना एक पैर गंवाने के बाद बाकी जिंदगी को बैसाखियों के हवाले करने से इनकार कर दिया.

उस लड़की ने रेलवे ट्रैक पर अपना पैर गंवाया तो उसके जुनून के आगे एवरेस्ट भी झुक कर सलाम करने लगा. नाम है अरुणिमा सिन्हा.

चार साल की उम्र में ही पिता का निधन

एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान अरुणिमा सिन्हा

उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर जिले के एक छोटे कस्बे अकबरपुर में अरुणिमा सिन्हा अपने पूरे परिवार के साथ रहती थी. घर में अरुणिमा के अलावा एक छोटा भाई और बड़ी बहन लक्ष्मी हैं.

महज चार साल की उम्र में ही अरुणिमा के पिता का निधन हो गया था. बिना पिता के परिवार को माली हालत से जूझता देख अरुणिमा घबरा जाया करती थी.

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घर की लाडली सोनू की आंखों में अपने परिवार के लिये बड़े सपने पला करते थे. अरुणिमा की मां अंबडेकर नगर में स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करती थीं. लेकिन, सैलरी इतनी नहीं थी कि परिवार का ठीक से गुजारा हो सके.

कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद मां ने बच्चों की पढ़ाई में कमी नहीं छोड़ी. लेकिन अरुणिमा का मन पढ़ाई से ज्यादा खेल में लगता था.

अरुणिमा को बचपन से पढ़ाई से ज्यादा खेल में रुचि थी

अपने खेल के बूते ही वो फुटबॉल और वॉलीबॉल में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन गईं. अरुणिमा खेल के साथ नौकरी के लिये भी कोशिश कर रही थीं.

कई जगह नौकरी के लिये आवेदन किया था. एक दिन नोएडा के सीआईएसएफ में नौकरी के लिये अकेले ही जाना पड़ गया.

लेकिन अरुणिमा को नहीं मालूम था कि एक तारीख उनकी जिंदगी पर कयामत बन कर टूटने वाली है. 10 अप्रैल 2011 की रात अरुणिमा पद्मावती एक्सप्रेस में सवार हो कर लखनऊ से दिल्ली जा रही थी.

बरेली के पास ट्रेन में अकेला होने पर अरुणिमा लुटेरों के निशाने पर आ गई. लुटेरों ने अरुणिमा को लूटने की कोशिश की लेकिन कामयाब न होने पर उन्होंने अरुणिमा को चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया. आधी रात को हुए इस हादसे में अरुणिमा गंभीर रूप से घायल हो गई थी.

गांववालों ने अरुणिमा की मदद की

सुबह करीब सात बजे गांववालों को अरुणिमा रेलवे ट्रैक के किनारे पड़ी मिलीं. उन्हें नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराया गया. वहां से फिर अरुणिमा के घर वाले उन्हें इलाज के लिये एम्स लाए.

लेकिन अस्पताल में अरुणिमा की जिंदगी बदल चुकी थी. उनकी जान बचाने के लिये आए डॉक्टरों को उनका बांया पैर काटना पड़ा.

कमजोरी को ताकत बनाया

एक खिलाड़ी की जिंदगी में इससे काला दिन क्या हो सकता था. अरुणिमा के सपनीले संसार के सपने टूट चुके थे. कभी फुटबॉल के मैदान में तो कभी वॉलीबॉल के कोर्ट पर बिजली सा नजर आने वाला जिस्म व्हील चेयर पर सिमट चुका था.

ये तय था कि बाकी पूरी जिंदगी अब कभी व्हील चेयर तो कभी बैसाखी के सहारे ही कटने वाली थी.  लेकिन एक दिन अरुणिमा ने जो फैसला किया उससे पूरा घर सकते में आ गया. अरुणिमा ने अपने परिवार से कहा कि वो इस तरह से घुट-घुट कर नहीं जी सकतीं.

वो अपाहिज जिंदगी को हराने के लिये एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला कर चुकी थीं. अस्पताल में बेबसी के बिस्तर पर बोझिल जिंदगी एक नई मंजिल छूने की तैयारी में जुट गई थी.

नकली पैरों के साथ एवरेस्ट की चढ़ाई

अरुणिमा के हौसलों का इनोवेटिव नाम से संस्था चलाने वाले डॉ राकेश श्रीवास्तव ने साथ दिया.

उन्होंने अरुणिमा के लिये कृत्रिम पैर बनवाया जिसके बाद अरुणिमा ने अपनी कमजोरी को ताकत में बदला.

एक कदम आगे बढ़ाया और फिर मंजिल का सफर तय होता चला गया. अरुणिमा ने माउंटेनियरिंग की प्रैक्टिस शुरू कर दी.

एक पैर के बूते एवरेस्ट को हराने की जिद अरुणिमा के भीतर आग बनकर जिंदा थी. अरुणिमा की मेहनत इतिहास रचने के लिये बेकरार थी.

आखिर एक दिन वो भी आया जब अरुणिमा ने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरु की, कोई नहीं सोच सकता था कि एक पैर के सहारे एक दिव्यांग लड़की आसमान को हराने का जज्बा लेकर एक एक कदम आगे बढ़ा रही थी.

अरुणिमा के जुनून के आगे एवरेस्ट भी छोटा नजर आ रहा था.

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दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर जब अरुणिमा के कदम पड़े तो उन पलों पर उन्हें यकीन ही नहीं हो पा रहा था.

कामयाबी के आसमान पर अरुणिमा सिन्हा खड़ीं थीं. हाथों में तिरंगा लेकर अरुणिमा ने कहा– 'मैं एवरेस्ट के ऊपर हूं...मुझे कोई रोक नहीं सकता.'

एवरेंस्ट पर तिरंगे के साथ अरुणिमा सिन्हा

सफेद बर्फ से ढकी पहाड़ियों और साफ नीले आसमान के बीच अरुणिमा आजाद परिंदे की मानिंद आजादी महसूस कर रही थीं.

आजादी उन सहानुभूतियों से थी...आजादी उस कमजोरी से थी....आजादी उस घुटन से थी जिसके चलते उन्हें लोग दिव्यांग की नजर से देखा करते थे.

एवरेस्ट की ऊंचाई पर पहुंच कर अरुणिमा ने अपनी तकलीफों के पहाड़ को हमेशा के लिये छोटा कर दिया.

आज अरुणिमा के कदमों पर कामयाबी का आसमान है. अरुणिमा सिन्हा देश की पहली दिव्यांग बेटी हैं जिन्होंने एवरेस्ट को फतह किया.