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नेशनल मिल्क डे: दूध और गाय की बात करने वाले वर्गीज़ कुरियन को क्यों भूल जाते हैं

डॉक्टर कुरियन कहा करते थे गाय का नहीं आदमी का विकास होना चाहिए

Animesh Mukharjee

आप ने कभी दूध वालों को दूध लाते-ले जाते देखा है. एक लोहे की खास तरह की बाल्टी होती है. इस बाल्टी के ऊपर अक्सर एक टाट का बोरा बंधा रहता है, जिसे बेहद ठंडे पानी से भिगो रखा होता है. ये सामान्य सा सस्ता तरीका दूध को गांवों-कस्बों से आस-पास के शहरों तक ले जाने में बहुत कारगर है. जब तक रेफ्रिजरेशन वाले ट्रक चलन में नहीं थे. इस तरीके ने देश के बड़े हिस्से को सुबह-सुबह दूध पहुंचाया.

ये तरीका डॉक्टर वर्गीज़ कुरियन की ईजाद है. कुरियन आज भारत के सबसे बड़े फूड ब्रांड बन चुके अमूल के संस्थापक थे. उस जमाने में बॉम्बे को दूध की जरूरत थी, गुजरात के किसान दूध भेज सकते थे, मगर दूध जैसे कुछ ही घंटों में खराब होने वाले उत्पाद को 200 किलोमीटर दूर भेजना संभव नहीं था. ऐसे में कुरियन ने ये सस्ता, आसान और कारगर तरीका निकाला.


डॉक्टर वर्गीज़ कुरियन को ऑपरेशन फ्लड का जनक माना जाता है. उनके जन्मदिन 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस उत्पाद (national milk day) मनाया जाता है. अगर जमीनी स्तर पर देखें तो कुरियन की ये उपलब्धि दूध का उत्पादन बढ़ाने से कहीं ज्यादा है.

अमूल के विज्ञापन की अपनी एक अलग शैली है

कुरियन कहते थे कि दूध साल में 365 रोज़, दिन में दो बार बनने वाला प्रोडक्ट है. इसे लंबे समय तक रखा नहीं जा सकता है. इसलिए इसको लोगों तक पहुंचाने के लिए एक कोऑपरेटिव मॉडल ही चाहिए. कुरियन ने इसके लिए आनंद में कोऑपरेटिव मॉडल बनाया. इसे आज की तारीख में आनंद मॉडल कहते हैं और दुनिया भर में इसे सफता की एक मिसाल के तौर पर देखा जाता है. आज की तारीख में जब आप सुबह अपने पड़ोस से दूध खरीदते हैं, उसका बड़ा हिस्सा इसे पैदा करने वालों के पास जाता है.

वर्ष 1973 में उन्होंने गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फ़ेडरेशन (जीसीएमएमएफ़) की स्थापना करने वाले कुरियन के बदौलत गुजरात के 20 लाख किसानों को रोजगार मिला हुआ है. उनके मॉडल की सफलता से प्रभावित तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उसे देश भर में लागू करने की बात करने के लिए कहा. कुरियन भैंस के दूध से पाउडर मिल्क बनाने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति थे.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के साथ वर्गीज़ कुरियन फोटो सोर्स- डॉक्टर कुरियन.कॉम

रोजमर्रा की चीजों से हल निकालने की कुरियन की ये स्वाभाविक स्मार्टनेस कई जगह दिखती है. अमूल के बनने की कहानी पर श्याम बनेगल ने फिल्म बनाई. इस फिल्म को कुरियन की संस्था ने ही प्रोड्यूस किया. फिल्म के लिए 5 लाख किसानों ने 2-2 रुपए दिए.

फिल्म के लिए 10 लाख का बजट कहीं और से भी जमा किया जा सकता था. या कुछ लोगों से थोड़ा ज्यादा पैसा लिया जा सकता था. मगर 5 लाख लोगों से 2 रुपए लेने का एक बड़ा फायदा हुआ. फिल्म को बिना कुछ किए ही 5 लाख दर्शक मिल गए. अगर हर किसान के साथ उसके परिवार को जोड़ दिया जाए तो 20-25 लाख दर्शक फिल्म को बिना किसी मेहनत के मिल गए. बताया जाता है कि गुजरात के किसान ट्रकों में भर कर 'अपनी फिल्म' देखने गए.

कुरियन खुद कभी दूध नहीं पीते थे, मगर उनकी बदौलत 130 करोड़ की आबादी वाले देश के बड़े तबके को पोषण मिलता है. उनकी बनाई कोऑपरेटिव संस्थाओं में बीजेपी और कांग्रेस दोनों सियासत करती हैं. कांग्रेस के ज़माने में शुरू हुए आंदोलन में इस समय बीजेपी का वर्चस्व है. देश में गाय को लेकर राजनीति होती है, मगर कुरियन का जिक्र नही होता है.

अमूल की फैक्ट्री

एक बार नारायण मूर्ति ने कहा भी था, एक सभ्य समाज वही है जो किसी के महत्वपूर्ण योगदान का आभार व्यक्त करे, अगर हमारा देश डॉ. कुरियन को भारत रत्न से सम्मानित नहीं करता तो मुझे नहीं समझ आता कि और कौन इस सम्मान के योग्य है. मगर नारायण मूर्ति को शायद याद नहीं रहा होगा कि कुरियन गुजरात के अंदर काम करने वाले एक सीरियन ईसाई थे. और देश में विकास की राजनीति तभी होती है जब विकास की जाति-धर्म का अपनी पार्टी के हिसाब से सही बैठे.

गुजरात चुनाव चल रहे हैं और नेशनल मिल्क डे पर तमाम नेता भाषण देंगे. इसके साथ ही गाय और गौरक्षा की तमाम बातें भी होंगी. अगर इस बीच कोई गौरक्षक मिल जाए तो उससे वर्गीज़ कुरियन का नाम और काम के बारे में जरूर पूछिएगा, क्योंकि कुरियन अक्सर कहा करते थे कि ज़मीन और गाय का विकास विकास नहीं है. लोगों का विकास ही विकास है.