बड़े अरमानों से पिछले साल शुरू हुई ग्रीन हाईवे परियोजना केंद्र सरकार के मंत्रालयों की आपसी खींचतान की वजह से अधर में लटकी है.
पिछले साल केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय ग्रीन हाईवे मिशन की शुरुआत की थी.
जिस वक्त वे इस योजना की शुरुआत कर रहे थे, उस वक्त इन्होंने इस परियोजना के जरिए कई तरह के काम करने की बात की थी.
लेकिन अपनी शुरुआत के साल भर के अंदर ही स्थिति ऐसी बनती दिख रही है जिसमें इस परियोजना को लेकर भारत सरकार के अपने मंत्रालयों में ही खींचतान की स्थिति बन गई.
इस वजह से गडकरी की इस महत्वकांक्षी परियोजना का आगे बढ़ना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है.
क्या है यह परियोजना
इसमें आगे जाने से पहले इस परियोजना के बारे में बुनियादी बातों को जान लेना जरूरी है. भारत में तकरीबन 96,260 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग हैं.
गडकरी की योजना यह थी कि राजमार्गों के आसपास पेड़-पौधे लगाए जाएं और राजमार्गों को हरित गलियारे के तौर पर विकसित किया जाए.
इसके लिए उनकी योजना यह थी कि राजमार्ग परियोजनाओं की कुल लागत का एक फीसदी अलग निकालकर एक कोष बनाया जाए और इस पैसे का इस्तेमाल राजमार्गों के आसपास हरियाली बढ़ाने में किया जाए.
गडकरी की योजना के मुताबिक हर साल इस काम पर 1,000 करोड़ रुपए खर्च किया जाना था.
गडकरी को यह लगता था कि अगर यह परियोजना ठीक से लागू हुई तो पेड़ों के रखरखाव के लिए देश भर में तकरीबन पांच लाख नए रोजगार सृजित होंगे.
निजी कंपनियों से साझेदारी का इरादा था
योजना के मुताबिक इसमें सरकारी पैसे का तो इस्तेमाल होना ही था, साथ में इस परियोजना के साथ निजी कंपनियों को भी जोड़ा जाना था.
कॉरपोरेट सोशल रिसपॉन्सबिलिटी यानी सीएसआर के तहत इस परियोजना में योगदान देने का आग्रह गडकरी के मंत्रालय द्वारा किया जा रहा था.
तकनीकी पेंच में फंसी परियोजना
वित्त मंत्रालय ने इस परियोजना को एक ऐसे तकनीकी पेंच में फंसा दिया कि यह परियोजना ठीक से शुरू होने से पहले ही दम तोड़ती नजर आ रही है.
वित्त मंत्रालय ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को कह दिया है कि वे जो काम इस परियोजना के तहत करना चाहते हैं, वह काम उनका है ही नहीं.
वित्त मंत्रालय के मुताबिक यह काम तो पर्यावरण मंत्रालय का है. इस बात का हवाला देते हुए वित्त मंत्रालय ने कुल परियोजना लागत का एक फीसदी हरित पट्टी विकसित करने की राजमार्ग मंत्रालय की परियोजना को हरी झंडी देने से मना कर दिया है.
कैसे होगा फंड का इंतजाम
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने सड़क परिवहन और राजमार्ग को इस परियोजना के लिए फंड का बंदोबस्त करने का रास्ता भी सुझाया है.
वित्त मंत्रालय ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को पर्यावरण मंत्रालय से कैम्पा फंड से पैसा लेने को कहा है.
पिछले साल ही कैम्पा फंड से संबंधित कानून संसद ने पारित किया है. इस फंड में तकरीबन 38,000 करोड़ रुपए हैं.
वित्त मंत्रालय ग्रीन हाईवे परियोजना को आगे बढ़ाने की पक्षधर नहीं है. मंत्रालय को इस बात की जानकारी है कि इस 38,000 करोड़ रुपए में तकरीबन 31,000 करोड़ रुपये राज्यों का हिस्सा है. इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय के पास सिर्फ 7,000 करोड़ रुपए बचेंगे.
पर्यावरण मंत्रालय पहले से भी कई परियोजनाएं चला रहा है. लिहाजा इस 7,000 करोड़ रुपए में से सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को पैसा दिया जाना बेहद मुश्किल लग रहा है.
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारी नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि वित्त मंत्रालय के रवैये को देखते हुए हमारे मंत्रालय को नहीं लगता कि हम इस परियोजना को आगे बढ़ा पाएंगे.
उनके मुताबिक इस स्थिति को देखते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने उस सर्कुलर को वापस ले लिया है जिसके तहत कुल परियोजना लागत का एक फीसदी ग्रीन हाईवे परियोजना के लिए अलग रखने की बात कही गई थी.
अब ऐसे में इस परियोजना को आगे बढ़ाने का एक ही रास्ता बचता है. वह रास्ता यह है कि पर्यावरण मंत्रालय इस परियोजना के लिए पैसा देने को तैयार हो जाए.
अभी की स्थिति में यह आसान नहीं लगता है. ऐसे में बड़े अरमानों के साथ शुरू हुई ग्रीन हाईवे परियोजना दम तोड़ती ही नजर आ रही है.