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लापता नजीब और ओछी राजनीति

नजीब के घर वाले और दोस्त सब परेशान हैं. इन परेशानियों के बीच नजीब के परिजनों को कष्ट उनसे भी है जो इस घटना पर राजनीति कर रहे हैं.

Saqib Salim

नजीब अहमद का जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से लापता हो जाना सबके लिए चिंता की बात है. नजीब 14 अक्टूबर से गायब हैं. उनके घर वाले और दोस्त सब परेशान हैं. इन परेशानियों के बीच नजीब के परिजनों को कष्ट उनसे भी है जो इस घटना पर राजनीति कर रहे हैं.

जरा नजर फिराइए तो पता लगेगा की लेफ्ट से राइट तक हर कोई राजनीति कर रहा है. जेएनयू के छात्रसंघ पर सालों से वामदलों का कब्जा है. ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) का गठबंधन छात्रसंघ पर काबिज है. कैंपस के अंदर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का कद भी कुछ समय में काफी बढ़ा है.


अक्टूबर 14 की रात नजीब का छात्रावास चुनाव के लिए वोट मांग रहे एबीवीपी के उम्मीदवार विक्रांत से झगड़ा हुआ. विक्रांत का आरोप था कि नजीब ने उसको थप्पड़ मारा. इसके बाद कुछ छात्रों ने मिलकर नजीब की पिटाई की, जिसे कई लोगों ने देखा. इस सारे हंगामे के बीच छात्रावास के सीनियर वार्डन, छात्रसंघ अध्यक्ष और आइसा नेता मोहित पांडेय और छात्रावास अध्यक्ष अलीमुद्दीन भी घटनास्थल पर पहुंचे. अलीमुद्दीन कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के महासचिव भी हैं.

रात को ही की गई एक आपातकालीन मीटिंग में नजीब को अक्टूबर 21 तक छात्रावास खाली करने का आदेश पारित किया गया. रात ही को नजीब ने बदायूं में अपनी मां को फोन कर दिल्ली बुलवा लिया. सुबह जब तक मां आईं तब तक नजीब लापता हो चुका था. तब शुरू हुई छात्र राजनीति.

आइसा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) से जुड़ा छात्र संगठन है. इनके पोलित ब्यूरो कि एक सदस्य ने इस घटना पर एक लेख लिखा https://goo.gl/BqoBRN. इस लेख में नजीब का जिक्र कम है और अपने संगठन के कसीदे ज्यादा. उनको ये बताने में ज्यादा रुचि है कि एबीवीपी क्यों बुरा है और उनकी पार्टी क्यों अच्छी.

नजीब से जुड़े उलझे सवाल

आइसा से जुड़े छात्रसंघ अध्यक्ष मोहित पांडेय का आरोप है कि नजीब को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने उनके सामने कई बार मारा. उन्होंने दावा किया कि नजीब को जब पीटा जा रहा था तो छात्रसंघ के एक और पदाधिकारी कासिम भी वहां मौजूद थे. कासिम नजीब का रूममेट भी है और विश्वविद्यालय के भाषा विभाग का कन्वेनर भी.

ये कैसे नेता हैं जो सामने पिटते छात्र को बचा नहीं पाते, पर बाद में एबीवीपी के खिलाफ खूब नारे लगाते हैं. लेकिन गनीमत होती जो केवल इतना ही भर हुआ होता। नजीब को विक्रांत पर हमले का आरोपी बताकर छात्रावास से निकाल दिया गया. इस आदेश के लिए की गई मीटिंग पर मोहित, कासिम और छात्रावास अध्यक्ष अलीमुद्दीन ने साइन किए.

ध्यान देने वाली बात है कि नजीब द्वारा किए गए कथित हमले के प्रत्यक्षदर्शी केवल आरोपी विक्रांत और उसके दो मित्र ही थे, जबकि नजीब को मारे जाने कि बीसियों गवाह मौजूद हैं जिनमें मोहित खुद एक हैं. पर तब भी 14 अक्टूबर को हुई मीटिंग में ये बात नहीं हुई कि नजीब पर भी हमला हुआ था और उसको आरोपी बना दिया गया.

नजीब जिसको कि जेएनयू में आये अभी केवल महीना भर हो रहा था, उसने देखा कि जब उसको मारा जाता है तो छात्रसंघ अध्यक्ष या तो उसको बचाते ही नहीं हैं. कन्वेनर खुद एक कागज पर हस्ताक्षर करता है जिसमें कि नजीब को छात्रावास से निकालने कि मांग की जाती है. ये लोग अब एबीवीपी के खिलाफ चीख रहे हैं.

दूसरी ओर एबीवीपी है जिस पर नजीब के लापता होने के बाद से आरोप लग रहे हैं. एबीवीपी खामोश है, पर वो क्यों भूल रहे हैं कि नजीब भी तो एक छात्र है. क्या कारण है कि एबीवीपी को नजीब के लापता होने के बाद हुई सभाओं से गुरेज है? क्या उसका धर्म, या उसका पिछड़ी जाति से होना, या उसका गरीब परिवार से होना? क्या उनको पुलिस से तेज कार्यवाही कि मांग करना गलत लगता है?

ये हम सब को समझना होगा कि नजीब मुद्दा नहीं, एक आम छात्र है, जिसने देश की सारी बड़ी बायोटेक्नोलॉजी कि परीक्षा पास करने के बाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था.

छात्रसंघ और अन्य छात्र दलों को चाहिए कि वो मुद्दे को भटकाएं न और एक छात्र को कैसे वापस लाना है, इस पर ध्यान दें.

तू इधर उधर कि न बात कर

आइसा वाले जोर-शोर से बयान दे रहे हैं पर वो इस बात पर चुप हैं उनकी खुद की भूमिका क्या थी. नजीब के लापता हो जाने के बाद छात्रसंघ परिषद पर सारा दोष डाल रहा है. क्या ये मुजफ्फरनगर दंगों के बाद की अखिलेश सरकार जैसी नीति नहीं है, जहां अपनी सरकार होते हुए भी आप कहते हैं कि हम क्या करते, ये तो भाजपा ने कराया था. तो महाशय आपने वोट क्यों ही मांगा था?

आज छात्रसंघ पूछता है कि कुलपति ने नजीब को आरोपी क्यों लिखा? परंतु जब आप वहां उपस्थित थे तो आपने उस पत्र पर हस्ताक्षर क्यों किया जिसमें कि उसको आरोपी कहा गया था और उस पर हुए हमले का जिक्र तक नहीं था?

तू इधर उधर कि न बात कर

ये बता काफिला क्यों लुटा

मुझे रहजनों से गिला नहीं

तेरी रहबरी का सवाल है.

(रहजनों-लुटेरों, रहबरी-नेतृत्व)

(लेखक जेएनयू में इतिहास के शोधछात्र हैं और उसी छात्रावास में रहते हैं जिसमें नजीब रहते थे)