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रायन इंटरनेशनल स्कूल: असुरक्षित होते नामी स्कूल और सदमे में पेरेंट्स  

स्कूलों में बच्चे की हत्या की घटना को हादसा समझ कर कतई नहीं भुलाया जा सकता

Kinshuk Praval

मां-बाप के साथ के बिना बच्चे कहीं सुरक्षित नहीं हैं. अगर घर में बच्चे अकेले हैं तो असुरक्षित और स्कूल में हैं तो बेहद असुरक्षित. रायन इंटरनेशनल में प्रद्युम्न के साथ हुआ हादसा तमाम पेरेंट्स को झकझोर गया जो इंटरनेशनल स्कूल के ब्रांड में बच्चे का भविष्य देखते हैं.

लेकिन वास्तविकता की ये त्रासदी सभी पेरेंट्स का दिल दहलाने के लिए काफी है. प्रद्युम्न के मां-बाप ने जो खोया उसकी भरपाई ताउम्र नहीं हो सकती और जो विश्वास मंदिर कहलाने वाले स्कूल खोते जा रहे हैं उस पर भरोसा कायम रहना अब मुश्किल दिखाई देता है.


सवाल ये है कि आखिर दूसरी क्लास में पढ़ने वाले मासूम का दुश्मन कौन हो सकता है? एक इंटरनेशनल स्कूल में प्रदुम्न का गला रेत दिया जाता है और स्कूल प्रबंधन से लेकर वहां के स्टाफ को इतनी बड़ी घटना का पता नहीं चल पाता? एक माली की नजर खून से लथपथ मासूम पर पड़ती है और फिर उसे अस्पताल ले जाया जाता है. लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो चुका होता है.

क्या देश के नामी स्कूलों का हाल सरकारी अस्पतालों जैसा होता जा रहा है? रायन इंटरनेशनल स्कूल में हर क्लास और हर गलियारे में सीसीटीवी लगे थे. लेकिन बाथरूम के दरवाजे की तरफ सीसीटीवी नहीं लगा था.

जबकि बच्चों के साथ देशभर के स्कूलों में यौन-दुर्व्यवहार के मामलों को देखते हुए सुरक्षा के लिहाज से स्कूलों को सीसीटीवी से चाकचौबंद होना चाहिए. इसके बावजूद एक इंटरनेशनल स्कूल सीसीटीवी लगाने के मामले में कोताही बरतता है जिसकी वजह से एक मासूम किसी हत्यारे का शिकार बन जाता है.

पहले भी हुई दर्दनाक घटनाएं

इससे पहले भी पिछले साल जनवरी में वसंत कुंज के रायन इंटरनेशनल स्कूल में एक बच्चे की कथित तौर पर पानी के टैंक में गिरने से मौत हो गई थी. बच्चे के साथ यौन दुर्व्यहार की आशंका जताई गई थी.

पिछले महीने ही गाजियाबाद के इंदिरापुरम के जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल में भी कथित तौर पर गिरने की वजह से एक बच्चे की मौत हो गई थी. बच्चा चौथी कक्षा में पढ़ता था जिसका नाम अरमान सहगल था. अरमान के पिता स्कूल छोड़कर घर पहुंचे ही थे कि उनके बेटे की मौत की खबर आई.

अरमान के सिर पर चोट बताई गई थी. सवाल यहां भी यही उठता है कि आखिर सिर में ऐसी कौन सी चोट लगी जिससे बच्चे की मौत हो गई? यहां भी सीसीटीवी फुटेज में कुछ नहीं मिल सका था.

बड़ा सवाल ये भी है कि क्या नामी स्कूलों में लगे सीसीटीवी किसी बड़ी दुर्घटना के बाद खुदबखुद बंद हो जाते हैं या फिर स्कूल की बदनामी से बचने और मामले को रफा-दफा करने के लिये फुटेज ही उड़ा दी जाती है?

रायन इंटरनेशनल स्कूल में सुबह के वक्त दूसरी क्लास के प्रद्युम्न की हत्या होना दूसरी तरफ भी इशारा करता है. स्कूलों में कभी बच्चे की हत्या, मौत के अलावा बलात्कार की घटनाएं भी बच्चों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही हैं.

राजधानी के नामी स्कूलों में बच्चों की रहस्यमयी मौत और हत्या की खबरों से देश के दूसरे इलाकों के सरकारी स्कूलों में बच्चों की हालत का अंदेशा लगाया जा सकता है.

हत्या से लेकर यौन उत्पीड़न तक का खतरा

स्कूलों में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है. बेंगलुरु में एक छह साल की बच्ची के साथ स्कूल में ही रेप हुआ था. जयपुर में एक शिक्षक ने दस साल तक बच्चों का शारीरिक शोषण किया और तकरीबन दो सौ बच्चों को ब्लैकमेल करते हुए उनका उत्पीड़न करता रहा.

बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों में कहीं शिक्षक तो कहीं स्कूल बस का ड्राइवर, कंडक्टर, या स्कूल का  कर्मचारी शामिल पाया गया. शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों के ऐसे घृणित कामों में लिप्त होने के मामले ज्यादा सामने आए हैं.

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 65 फीसदी बच्चे स्कूलों में यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं. इनमें 12 साल से कम उम्र के लगभग 41.17 फीसदी, 13 से 14 साल के 25.73 फीसदी और 15 से 18 साल के 33.10 फीसदी बच्चे शामिल हैं.

वहीं महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर तीन में से दो स्कूली बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार होते हैं. जबकि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक पिछले तीन साल में स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाले शारीरिक प्रताड़ना, यौन शोषण, दुर्व्यवहार और हत्या जैसे मामलों में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है.

पेरेंट्स के लिये ये जरूरी है कि वो खुद भी जागरूक हों और साथ ही अपने बच्चों को ‘गलत टच’ के बारे में समझा सकें. लेकिन वो पेरेंट्स क्या करें जो नामी स्कूलों के दावों और विज्ञापनों से अभिभूत हो कर अपने बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिये महंगे स्कूलों का रुख करते हैं लेकिन अरमान और प्रद्युम्न जैसी घटनाएं उन्हें जिंदगी भर का पछतावा दे जाती है.

मासूम बच्चों की खातिर कब जागेगा प्रशासन?

क्या स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर अलग से गाइडलाइंस नहीं होनी चाहिए? स्कूलों में बच्चों की मौत या हत्या की घटना को समय के साथ हादसा समझ कर नहीं भुलाया जा सकता है. जो आज किसी बच्चे के साथ अनहोनी हुई है वो कल किसी और बच्चे के साथ हो सकती है.

आठ से दस घंटे बच्चे स्कूल प्रबंधन की बड़ी जिम्मेदारी का हिस्सा होता है. एक तरफ स्कूलों में सुविधाएं बढ़ाने के नाम पर हर साल मनमाने तरीके से फीस बढ़ाई जाती है तो दूसरी तरफ बच्चों के साथ होने वाली घटनाएं रोकने में स्कूलों की लापरवाही सामने आती है.

प्रद्युम्न की हत्या के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. लेकिन सवालों और जिम्मेदारी के घेरे से स्कूल प्रबंधन को बाहर रख कर कौन सी मिसाल पेश की जा रही है?