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मुंबई बारिश की कहानी नेवी अफसर की जुबानी, '2005 की तबाही याद कर रूह कांप जाती है'

मर्चेंट नेवी अधिकारी कैप्टन शिवराज माने के दिलो दिमाग पर 26 जुलाई, 2005 की वह दुखद यादें एक बार फिर ताजा हो गई है

Bhasha

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में लगातार बारिश हो रही है. साथ ही समुद्र से ऊंची लहरें भी उठ रही हैं. इस सब के बीच मर्चेंट नेवी अधिकारी कैप्टन शिवराज माने के दिलो दिमाग पर 26 जुलाई, 2005 की वह दुखद यादें एक बार फिर ताजा हो गई है. उस वक्त कुदरत के कहर ने मायानगरी को श्‍मशान बना दिया था.

आज से करीब 12 साल पहले इसी दिन बादलों से बरसी आफत ने करीब 500 लोगों की जान ले ली थी. कुछ गाड़ियों में फंसे रह गए, कुछ को बिजली का करंट लगा तो कुछ गिरती दीवारों के नीचे दब गए या डूब गए. उस एक दिन में मुंबई में 94 सेंटीमीटर बारिश हुई थी.


नौसेना में होने के कारण कैप्टन शिवराज को पानी की आदत थी. लेकिन निश्चित तौर पर उस दिन वह ऐसे हालात के लिए तैयार नहीं थे. उनका कहना था कि उन दिनों के बारे में सोचकर आज भी उनकी रूह कांप जाती है और तेज बारिश उन्हें बर्बादी की आशंका से डरा देती है.

उन्होंने बताया कि बिना सुरक्षा गियर के जलमग्न इलाके में वह एक भैंस पर चढ़कर आगे बढ़े और उन्होंने इस दौरान शवों को पानी में तैरते हुए देखा. दिमाग में कैद ये तस्वीरें आज भी उनको परेशान कर देती हैं. 31 वर्षीय अधिकारी ने कहा कि शहर में उस समय मौजूद अधिकतर लोगों को आज भी वह दिन याद है.

माने ने बताया, 'कुछ आधिकारिक कार्यों के सिलसिले में उस दिन मैंने अंबरनाथ से नेरूल (नवी मुंबई) के लिए सुबह की लोकल ट्रेन ली तो मॉनसून के अन्य दिनों की तरह ही मुंबई और ठाणे में बारिश हो रही थी.' दोपहर तक उनका काम खत्म हो गया और वह करीब ढाई घंटे में घर पहुंच जाते. लेकिन उनको ढाई दिन लग गए.

उन्होंने कहा, 'मेरे पास पहले से बहुत काम था, इसलिए मुझे इस बात का अहसास नहीं था कि बाहर क्या हो रहा है. मुझे यह बाद में महसूस हुआ. मैंने हार्बर लाइन पर नेरूल रेलवे स्टेशन से ट्रेन ली. लेकिन वह तिलकनगर तक ही गई, जबकि मुझे कुर्ला से ट्रेन बदलना थी.'

वह जब अन्य यात्रियों के साथ पैदल चलकर कुर्ला पहुंचे तो उनको तबाही का असली मंजर देखने को मिला. रेलवे पटरी और प्लेटफार्म जलमग्न हो गए थे. वह किसी तरह ढाई दिन में अपने घर पहुंचे और इसे वह अपने जीवन का सबसे कठिन समय बताते हैं.